शिमला: आज के इस दौर में लड़कियां हर क्षेत्र में आगे हैं. आज की बेटी बाधाओं से लड़ते हुए सफलता की नई कहानी लिख रही है. वहीं, अगर बात करें समाज की तो लड़कियों के प्रति समाज की सोच में भी काफी बदलाव आ रहा है. आज अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस (INTERNATIONAL GIRL CHILD DAY) है. इस साल की थीम है 'यह समय हमारा है, हमारे अधिकार और भविष्य पर बात हो'. आइए जानें कुछ ऐसी ही हिमाचल की युवा लड़कियों की प्रेरक कहानी जिन्होंने पहाड़ की ऊंचाईयों को खुद के सामने बौना साबित कर दिखाया....
बलजीत कौर का पहाड़ चढ़ने का सफर: स्कूल टाइम में एक न्यूजपेपर में एवरेस्ट फतह करने वाली महिला की कहानी पढ़कर ही तय किया की मुझे भी पहाड़ों पर चढ़ाई करनी है. लेकिन घर की आर्थिक स्थिति सही न होने के चलते ये सपना बस सपना ही रह गया. लेकिन जब बलजीत कॉलेज आई तो वहां एनसीसी ज्वाइन की और एनसीसी के जरिए उन्हें मांउटेनियरिंग कैंप में जाने का मौका मिला. काफी ट्रेनिंग लेने के बाद आखिर बलजीत को वो मौका मिला जिसका सपना तो हर कोई देखता है लेकिन उस सपने को हकीकत में पूरा करना सबके बस की बात नहीं होती. मौका था दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट को फतेह करने का. बलजीत (Mountaineer Baljeet Kaur) अपने ग्रुप के साथ एवरेस्ट फतेह करने के लिए निकल पड़ी. लेकिन इस बार बलजीत को जीत से महज कुछ दूरी से ही वापस लौटना पड़ा. लेकिन बलजीत ने हिम्मत नहीं हारी और अपना यह सफर जारी रखा.
नहीं हारी हिम्मत और आखिर सपना किया पूरा: बलजीत ने कभी भी हार नहीं मानी. बीते साल उन्होंने नेपाल के 7161 मीटर ऊंची पुमोरी शिखर पर चढ़ने में सफलता प्राप्त की और ऐसा करने वाली वह पहली भारतीय महिला बनीं. बलजीत इसके बाद भी नहीं रूकी और उन्होंने पुमोरी चोटी के बाद धौलागिरी पर्वत पर भी जीत हासिल कर वहां तिरंगा शान से लहराया. इसी तरह माउंट लहोत्से पर चढ़ाई करने वाली भी वह पहली भारतीय महिला पर्वतारोही बनीं. माउंट ल्होत्से दुनिया की चौथी सबसे ऊंची पर्वत चोटी है. इसके अलावा एक सीजन में आठ हजार मीटर ऊंची चार चोटियों माउंट एवरेस्ट, लहोत्से, मकालू और महालंगूर पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं. उन्होंने दस दिनों में 8 हजार मीटर से अधिक ऊंची 5 पर्वत चोटियों पर चढ़ाई की है. बलजीत कौर के नाम 78000 मीटर ऊंची पर्वत चोटियों पर चढ़ाई करने का रिकार्ड भी दर्ज है.
बगैर ऑक्सीजन के मनास्लु पर्वत पर चढ़ाई की चढ़ाई: हाल ही में हिमाचल की पर्वतारोही बलजीत कौर ने बगैर ऑक्सीजन के मनास्लु पर्वत पर चढ़ाई करने में कामयाबी हासिल की है. बगैर ऑक्सीजन के मनास्लु पर्वत पर चढ़ाई करने वाली बलजीत कौर विश्व की सबसे युवा पर्वतारोही बन गई हैं. बलजीत का कहना है कि अपने लक्ष्य को पाने के लिए मेहनत की जरूरत है. जब आपको पता है कि आप सही हैं तो समाज क्या कहेगा उसकी परवाह न करें.
स्की खिलाड़ी आंचल ठाकुर की सफलता की कहानी: दिल में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो कोई भी बाधा मंजिल के आड़े नहीं आ सकती. इस बात को सार्थक कर दिखाया है अंतरराष्ट्रीय स्कीयर बन चुकी मनाली के एक छोटे से गांव बुरूआ की आंचल ठाकुर ने. आंचल ने न सिर्फ अपनी मेहनत से ऊंचाइयां छुई बल्कि देश को स्कीइंग में पहला मेडल भी दिलाया. गांव के स्कूल सरस्वती विद्या मंदिर में प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के दौरान वह कई बार स्कूल से छुट्टी के बाद सीधे घर नहीं आती थी, बल्कि बस्ते और किताबों की परवाह किए बगैर बर्फ की ढलानों की ओर चली जाती और देर शाम ही घर वापस लौटती. कई बार आंचल के पिता को उसे घर वापिस लाने के लिए खुद जाना पड़ता था. हालांकि, आंचल के पिता भी साहसिक खेल स्कीइंग के काफी शौकीन रहे हैं जिसके चलते वह अपनी बेटी की जिद्द पर कभी भी उसे फटकार नहीं लगाते थे.
छोटी सी उम्र में ही कोचिंग के लिए यूरोपियन देश गई आंचल: आंचल ने बर्फ के दिनों स्कीइंग के खेल (Aanchal Thakur Indian skier) को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया था.आंचल का मकसद केवल और केवल स्कीइंग जैसे खतरनाक और साहसी खेल में महारत हासिल कर अपने परिवार, समाज व प्रदेश का गौरव बढ़ाना था. वह किसी से भी पीछे नहीं रहना चाहती थी. बर्फीली ढलानों पर अनेक जगहों से खिलाड़ी अपने करतब दिखाते अक्सर देखे जा सकते हैं. मन में हमेशा आगे निकलने की सोच को पाले आंचल इन खिलाड़ियों से अपने-आप में कहीं न कहीं स्पर्धा करती रहती. 1996 में जन्मी आंचल की प्रतिभा पर महज 13 साल की उम्र में जब भारतीय शीतकालीन खेल संघ की नजर पड़ी तो संघ ने उन्हें कोचिंग के लिए यूरोपियन देशों में भेजा.
देश का नाम किया ऊंचा: आंचल ने ऑस्ट्रिया, इटली, फ्रांस, स्विट्जरलैंड में स्कीइंग की कोचिंग प्राप्त की. पांच साल की आयु में स्कीइंग शुरू करने वाली आंचल ने 10 साल की आयु में ही विभिन्न स्कीइंग प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू कर दिया था. वर्ष 2006 में मनाली में हिमालय स्की कप प्रतियोगिता में तीसरा स्थान हासिल किया. 2007 में विंटर स्पोर्टस कार्निवाल मनाली में पहले स्थान पर रही. 2008 में नारकंडा में आयोजित कनिष्ठ चैंपियनशिप में दूसरा स्थान अर्जित किया. 2009 में मनाली में आयोजित बसन्त जुनियर चैंपियनशिप में पहले स्थान पर रही.
2011 में उत्तराखण्ड के औली में राष्ट्रीय प्रतियोगिता में दूसरा स्थान जबकि 2011 में जुनियर स्की ओपन चैंपियनशिप मनाली में शीर्ष पर रही. उनका ये सफर बस चलता गया और वह देश व प्रदेश का नाम रौशन करती रही. 2017 में स्वीट्जरलैण्ड के मोरिस में विश्व स्की चैम्पियनशिप में अंतिम रेस के लिए क्वालीफाई किया. जापान के सापोरो में 2017 में एशियन विंटर खेलों में भाग लिया. आंचल ने तुर्की में 2018 में आयोजित एफआईएस इण्टरनेशनल एल्पाईन स्कीइंग प्रतियोगिता में भारत के लिए आज तक का पहला कांस्य पदक अर्जित कर देश व प्रदेश का गौरव बढ़ाया. अब वह 2026 विंटर ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करना चाहती हैं.
आंचल को मिले ये सम्मान: आंचल ठाकुर को उनकी उपलब्धियों पर उन्हें हिमाचल परशुराम पुरस्कार-2019 से अलंकृत किया गया. इससे पूर्व उन्हें अनेक अन्य पुरस्कार मिले हैं, जिनमें हिमाचल गौरव पुरस्कार-2018, हिमाचल महिला आयोग पुरस्कार-2018, बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ पुरस्कार, एडवेंचर स्पोर्टस एक्सपो एशिया पुरस्कार-2018, जी टीवी स्पोर्टस पुरस्कार-2018 और हिंदुस्तान टाईम्स आउटस्टैंडिंग यूथ फोरम पुरस्कार-2015 शामिल हैं.