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हिमाचल में 2021 में 40 बार कांपी धरती, डरने की नहीं सतर्क रहने की जरूरत - reason for earthquake in Himachal

छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल में साल 2021 के शुरुआती पांच महीनों में 40 बार भूकंप आए हैं. सबसे ज्यादा भूकंप के झटके चंबा जिले में महसूस किए गए हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि हिमाचल प्रदेश चौथे और 5वें सिस्मिक जोन में आता है. यहां हर समय भूकंप का खतरा बना रहता है. ऐसे में लोगों को डरने के बजाय सतर्क रहने की जरूरत है.

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Published : May 22, 2021, 9:34 PM IST

शिमला: भूकंप की दृष्टि से हिमाचल प्रदेश पांचवें सेंसिटिव जोन में है. यहां हर समय भूकंप का खतरा बना रहता है. साल 2021 में यहां 40 बार धरती कांप चुकी है. गनीमत यही है कि भूकंप की तीव्रता अधिक नहीं रही. शुक्रवार रात को चीन में भारी भूकंप आया. यदि हिमाचल के नजरिये से देखें तो 20 मई को चंबा में धरती हिली. चंबा में आये भूकंप की तीव्रता 3.2 रही. जान माल का कोई नुकसान तो नहीं हुआ, लेकिन दहशत का माहौल जरूर पैदा हो गया. विशेषज्ञ चेतावनी दे चुके हैं कि हिमालयी रीजन में बड़ा भूकंप आ सकता है.

हिमाचल पहले भी भूकंप की भयावह त्रासदी झेल चुका है. वर्ष 1905 में कांगड़ा में आये भीषण भूकंप से 20 हजार लोगों की मौत हुई थी. इसी तरह 1975 में किन्नौर में भी तबाही मची थी. साल 2016 में भारत के पड़ोसी मुल्क नेपाल में भूकंप से भारी जान माल का नुकसान हुआ था. ऐसे में हिमाचल को सतर्क रहने की जरूरत है.

शिमला में आए भूकंप से लोगों में हुई थी दहशत

हिमाचल में चंबा, कांगड़ा और मंडी भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील इलाकों में आते हैं. इस साल 6 जनवरी को चंबा में 3.2 तीव्रता का भूकंप आया था. जनवरी में ही रात के समय मंडी, कांगड़ा, कुल्लू और बिलासपुर में तीन बार भूकंप के झटके महसूस किए गए. मई महीने में 8 तारीख को धर्मशाला में भूकंप आया. अप्रैल महीने में 5 और 16 तारीख को चंबा और लाहौल स्पीति में धरती हिली. राहत की बात यह रही कि सभी भूकंप कम तीव्रता के थे.

इससे पहले 22 अप्रैल को भी मंडी में भूकंप आया था. वहीं 13 फरवरी 24 अप्रैल और 22 मई को शिमला में भूकंप से दहशत हुई थी. 13 फरवरी को उत्तर भारत में रात के समय भूकंप आया. भूकंप का पहला केंद्र तजाकिस्तान और दूसरा केंद्र अमृतसर था. इस भूकंप के झटके हिमाचल के हमीरपुर, सोलन, सिरमौर, ऊना, कांगड़ा कुल्लू, चंबा और बिलासपुर जिलों में भी महसूस किए गए. मार्च महीने में तो तीन दिन में तीन बार प्राकृतिक आपदा के झटके आए. किन्नौर व चंबा में कम तीव्रता के झटके आये.

वीडियो रिपोर्ट.

हिमाचल में थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद आ रहे भूकंप

इस तरह देखें तो हिमाचल प्रदेश में नियमित अंतराल में भूकंप आ रहे हैं. पिछले साल यानी वर्ष 2020 में भी बीच बीच में धरती कांपती रही. उससे पहले 20 दिसंबर 2019 को अफगानिस्तान के हिंदुकुश रीजन में भूकंप का केंद्र था. जिसका असर कुल्लू, ऊना और कांगड़ा में भी दिखाई दिया. इस साल 9 जनवरी को कांगड़ा की करेरी झील में भूकंप का केंद्र बना तो उसके झटके मनाली में भी महसूस किए गए. यदि इन स्थितियों का आकलन करें तो एक चीज स्पष्ट होती है कि हिमाचल में थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद हल्के झटके आ रहे हैं. कहा जाता है कि यदि कुछ अंतराल के बाद कम तीव्रता के भूकंप आते रहें तो बड़े भूकंप का खतरा कुछ हद तक टल जाता है.

2006 से 2016 तक हिमाचल में 75 बार आए भूकंप

आंकड़ों पर निगाह डालें तो वर्ष 2006 से 2016 तक 10 साल की अवधि में पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में कुल 75 भूकंप आये. चम्बा और लाहौल स्पीति में सबसे अधिक बार धरती डोली इन 75 भूकंपों में से 40 की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 4 से कम रही. इस दौरान 60 बार हिमाचल में भूकंप का केंद्र रहा है जबकि पंद्रह बार नेपाल, जम्मू-कश्मीर, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में भूकंप का केंद्र होने से हिमाचल में झटके महसूस किए गए हैं. बीते दस साल में हिमाचल में आए भूकंपों में 42 प्रतिशत का केंद्र जिला चंबा और चंबा की जम्मू-कश्मीर के साथ लगती सीमा रही है.

चंबा जिले में भूकंप की सबसे अधिक आशंका

लाहौल स्पीति जिला और जम्मू-कश्मीर से लगती सीमा 23 प्रतिशत बार भूकंप का केंद्र रही है. कांगड़ा (आठ प्रतिशत), किन्नौर (पांच प्रतिशत), मंडी (छह प्रतिशत), शिमला (छह प्रतिशत) और सोलन (दो प्रतिशत) भी भूकंप का केंद्र रहा है. जिला चंबा में भूकंप आने की सबसे अधिक आशंका है.

1905 में कांगड़ा में आया था 7.8 तीव्रता का भूकंप

हिमाचल में सबसे बड़ा भूकंप 4 अप्रैल 1905 को कांगड़ा में आया था. उसकी तीव्रता 7.8 थी और उस त्रासदी में 20 हजार लोगों ने जान गवाई. अगले ही साल यानी 1906 में 28 फरवरी को कुल्लू में 6.4 तीव्रता का भूकंप आया था. जब भी हिमाचल में भूकंप आते हैं तो लोगों के दिमाग में 1905 का भूकंप और उससे हुई तबाही तैर जाती है.

सतर्क रहें और ऐसे करें भूकंप से बचाव

आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ और नेपाल में भूकंप के बाद पुनर्वास अभियान में सक्रिय भूमिका निभाने वाली मीनाक्षी रघुवंशी का कहना है कि भूकंप से डरने नहीं बल्कि सतर्क रहने की जरूरत है. उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश चौथे और पांचवें सिस्मिक जोन में आता है. यहां हर समय भूकंप का खतरा बना रहता है. ऐसे में लोगों को सतर्क रहने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि भूकंप से कई प्रकार से नुकसान होता है. फिर चाहे वो मानवीय क्षति हो या आर्थिक रूप से नुकसान. जिस प्रकार कांगड़ा में 1905 में भूकंप आया था अगर आज के समय में यह भूकंप आता है तो क्षति 50 गुना बढ़ जाएगी. उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन नियमों के तहत भवन निर्माण करना चाहिए. इसके अलावा जब भी भूकंप आये तो एकदम खुले में चले जाएं. रात को सोते समय पानी और टॉर्च अपने आसपास रखनी चाहिए.

ये भी पढ़ें: योजना का हाल: हिमाचल में करीब साढ़े पांच लाख बच्चों को अप्रैल से नहीं मिला मिड-डे मील

शिमला: भूकंप की दृष्टि से हिमाचल प्रदेश पांचवें सेंसिटिव जोन में है. यहां हर समय भूकंप का खतरा बना रहता है. साल 2021 में यहां 40 बार धरती कांप चुकी है. गनीमत यही है कि भूकंप की तीव्रता अधिक नहीं रही. शुक्रवार रात को चीन में भारी भूकंप आया. यदि हिमाचल के नजरिये से देखें तो 20 मई को चंबा में धरती हिली. चंबा में आये भूकंप की तीव्रता 3.2 रही. जान माल का कोई नुकसान तो नहीं हुआ, लेकिन दहशत का माहौल जरूर पैदा हो गया. विशेषज्ञ चेतावनी दे चुके हैं कि हिमालयी रीजन में बड़ा भूकंप आ सकता है.

हिमाचल पहले भी भूकंप की भयावह त्रासदी झेल चुका है. वर्ष 1905 में कांगड़ा में आये भीषण भूकंप से 20 हजार लोगों की मौत हुई थी. इसी तरह 1975 में किन्नौर में भी तबाही मची थी. साल 2016 में भारत के पड़ोसी मुल्क नेपाल में भूकंप से भारी जान माल का नुकसान हुआ था. ऐसे में हिमाचल को सतर्क रहने की जरूरत है.

शिमला में आए भूकंप से लोगों में हुई थी दहशत

हिमाचल में चंबा, कांगड़ा और मंडी भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील इलाकों में आते हैं. इस साल 6 जनवरी को चंबा में 3.2 तीव्रता का भूकंप आया था. जनवरी में ही रात के समय मंडी, कांगड़ा, कुल्लू और बिलासपुर में तीन बार भूकंप के झटके महसूस किए गए. मई महीने में 8 तारीख को धर्मशाला में भूकंप आया. अप्रैल महीने में 5 और 16 तारीख को चंबा और लाहौल स्पीति में धरती हिली. राहत की बात यह रही कि सभी भूकंप कम तीव्रता के थे.

इससे पहले 22 अप्रैल को भी मंडी में भूकंप आया था. वहीं 13 फरवरी 24 अप्रैल और 22 मई को शिमला में भूकंप से दहशत हुई थी. 13 फरवरी को उत्तर भारत में रात के समय भूकंप आया. भूकंप का पहला केंद्र तजाकिस्तान और दूसरा केंद्र अमृतसर था. इस भूकंप के झटके हिमाचल के हमीरपुर, सोलन, सिरमौर, ऊना, कांगड़ा कुल्लू, चंबा और बिलासपुर जिलों में भी महसूस किए गए. मार्च महीने में तो तीन दिन में तीन बार प्राकृतिक आपदा के झटके आए. किन्नौर व चंबा में कम तीव्रता के झटके आये.

वीडियो रिपोर्ट.

हिमाचल में थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद आ रहे भूकंप

इस तरह देखें तो हिमाचल प्रदेश में नियमित अंतराल में भूकंप आ रहे हैं. पिछले साल यानी वर्ष 2020 में भी बीच बीच में धरती कांपती रही. उससे पहले 20 दिसंबर 2019 को अफगानिस्तान के हिंदुकुश रीजन में भूकंप का केंद्र था. जिसका असर कुल्लू, ऊना और कांगड़ा में भी दिखाई दिया. इस साल 9 जनवरी को कांगड़ा की करेरी झील में भूकंप का केंद्र बना तो उसके झटके मनाली में भी महसूस किए गए. यदि इन स्थितियों का आकलन करें तो एक चीज स्पष्ट होती है कि हिमाचल में थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद हल्के झटके आ रहे हैं. कहा जाता है कि यदि कुछ अंतराल के बाद कम तीव्रता के भूकंप आते रहें तो बड़े भूकंप का खतरा कुछ हद तक टल जाता है.

2006 से 2016 तक हिमाचल में 75 बार आए भूकंप

आंकड़ों पर निगाह डालें तो वर्ष 2006 से 2016 तक 10 साल की अवधि में पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में कुल 75 भूकंप आये. चम्बा और लाहौल स्पीति में सबसे अधिक बार धरती डोली इन 75 भूकंपों में से 40 की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 4 से कम रही. इस दौरान 60 बार हिमाचल में भूकंप का केंद्र रहा है जबकि पंद्रह बार नेपाल, जम्मू-कश्मीर, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में भूकंप का केंद्र होने से हिमाचल में झटके महसूस किए गए हैं. बीते दस साल में हिमाचल में आए भूकंपों में 42 प्रतिशत का केंद्र जिला चंबा और चंबा की जम्मू-कश्मीर के साथ लगती सीमा रही है.

चंबा जिले में भूकंप की सबसे अधिक आशंका

लाहौल स्पीति जिला और जम्मू-कश्मीर से लगती सीमा 23 प्रतिशत बार भूकंप का केंद्र रही है. कांगड़ा (आठ प्रतिशत), किन्नौर (पांच प्रतिशत), मंडी (छह प्रतिशत), शिमला (छह प्रतिशत) और सोलन (दो प्रतिशत) भी भूकंप का केंद्र रहा है. जिला चंबा में भूकंप आने की सबसे अधिक आशंका है.

1905 में कांगड़ा में आया था 7.8 तीव्रता का भूकंप

हिमाचल में सबसे बड़ा भूकंप 4 अप्रैल 1905 को कांगड़ा में आया था. उसकी तीव्रता 7.8 थी और उस त्रासदी में 20 हजार लोगों ने जान गवाई. अगले ही साल यानी 1906 में 28 फरवरी को कुल्लू में 6.4 तीव्रता का भूकंप आया था. जब भी हिमाचल में भूकंप आते हैं तो लोगों के दिमाग में 1905 का भूकंप और उससे हुई तबाही तैर जाती है.

सतर्क रहें और ऐसे करें भूकंप से बचाव

आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ और नेपाल में भूकंप के बाद पुनर्वास अभियान में सक्रिय भूमिका निभाने वाली मीनाक्षी रघुवंशी का कहना है कि भूकंप से डरने नहीं बल्कि सतर्क रहने की जरूरत है. उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश चौथे और पांचवें सिस्मिक जोन में आता है. यहां हर समय भूकंप का खतरा बना रहता है. ऐसे में लोगों को सतर्क रहने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि भूकंप से कई प्रकार से नुकसान होता है. फिर चाहे वो मानवीय क्षति हो या आर्थिक रूप से नुकसान. जिस प्रकार कांगड़ा में 1905 में भूकंप आया था अगर आज के समय में यह भूकंप आता है तो क्षति 50 गुना बढ़ जाएगी. उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन नियमों के तहत भवन निर्माण करना चाहिए. इसके अलावा जब भी भूकंप आये तो एकदम खुले में चले जाएं. रात को सोते समय पानी और टॉर्च अपने आसपास रखनी चाहिए.

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