शिमला: नन्हे बच्चों की सबसे प्यारी दोस्त रंग-बिरंगी तितलियां अब वैज्ञानिकों के लिए भी ये शोध व कौतूहल बनने जा रही हैं. समूचे भारतवर्ष में तितलियों की 1400 किस्में पाई जाती हैं. इनमें से 300 से अधिक किस्मों की तितलियां हिमाचल में उड़ती रही हैं इनमें अपोलो बटरफ्लाई, कैबेज बटरफ्लाई मुख्य रूप से पाई जाती हैं. ये प्रजातियां जलवायु परिवर्तन के प्रति बेहद संवेदनशील हैं, इसको देखते हुए हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान (Himalayan Forest Research Institute) ने व्यापक शोध कार्य को अंजाम देने के लिए एक खाका तैयार कर लिया है.
दरअसल हिमाचल की भौगोलिक परिस्थितियां एवं जलवायु तितलियों व इनसे संबंधित शोध कार्यों के लिए उपयुक्त हैं. इस क्षेत्र में प्रदेश एक बड़े अध्ययन केंद्र के रूप में उभर सकता है. तितली की ये प्रजातियां तापमान, वायु दाब व जलवायु से जुड़े अन्य पहलुओं में बदलाव आने पर पलायन कर जाती हैं या इनका प्रजनन प्रभावित होता है. इनकी संख्या में गिरावट देखने को मिलती है. तितलियों का यही व्यवहार वैज्ञानिकों के लिए अध्ययन में सहायक सिद्ध होता है. तितलियों की आम दिनचर्या व मूवमेंट में हर बदलाव वैज्ञानिकों के लिए शोध का महत्वपूर्ण विषय होता है. कंजर्वेटर फॉरेस्ट वाइल्ड लाइफ (Conservator Forest Wildlife) अनिल ठाकुर ने कहा कि प्रदेश सरकार तितलियों के संरक्षण के कार्य कर रही है.
इसके लिए ऐसे पौधे लगाए जा रहे हैं जो कि तितलियों के लिए सहायक हों. फूलों वाले पौधों को बढ़ावा दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि कांगड़ा जिले के गोपालपुर, कुल्लू जिले के ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क, घुमारवीं, श्री रेणुका जी में भी तितलियों के अनुकूल पर्यावरण बनाने के लिए विशेष पार्क बनाने पर कार्य चल रहा है. उन्होंने कहा कि प्रदेश में अनेक स्थानों पर पार्क आदि बनाने का कार्य किया गया है. कुल्लू के ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क (Great Himalayan National Park) में तितलियों की विभिन्न प्रजातियों के लिए साइरोपा में प्रजनन केंद्र भी स्थापित किया है.
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वैज्ञानिकों के अनुसार विशेष भौगोलिक परिस्थितियों, जलवायु व जैव विविधता के कारण हिमाचल की वादियां तितलियों की कई प्रजातियों के लिए काफी अनुकूल हैं. साइरोपा में तितलियों के लिए प्रजनन केंद्र की स्थापना की है. तितलियों को आकर्षित करने व उन्हें अनुकूल परिस्थितियां प्रदान करने के लिए पौधों की विशेष प्रजातियां लगाई जा रही हैं. एक दशक के अरसे में हिमाचल से तितलियों की 22 प्रजातियां लुप्त हो गई हैं. इससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि कुल 250 प्रजातियों की संख्या घटकर पचास फीसदी से कम रह गई हैं.
अब तो सरसों फूलने पर खेतों में मंडराने वाली मस्टर्ड बटरफ्लाई भी न के बराबर दिखती है. समूचे भारतवर्ष में तितलियों की 1400 किस्में पाई जाती हैं. इनमें से 300 किस्मों की तितलियां सदियों से हिमाचल में उड़ती रही हैं, लेकिन पर्यावरण में बदलाव से उनका रहने का स्थान भी बदलता है, चिंता की बात यह कि अब तो ये लुप्त ही हो रही हैं. राज्य में तितलियां कांगड़ा जिले के नूरपुर से सिरमौर जिले के पांवटा साहिब, सोलन से धर्मशाला व जनजातीय जिला किन्नौर से चंबा जिले की पांगी घाटी के बीच विभाजित की जाती हैं.
कीट वैज्ञानिकों ने हाल ही में किए शोध व सर्वेक्षण में पाया है कि हिमाचल की लोअर शिवालिक बेल्ट में तितलियों की सिर्फ दस प्रजातियां ही दर्ज हुई हैं. इसी बेल्ट में माध्यम और ऊपरी हिस्सों में भी कई प्रजातियां लुप्त हुई हैं. जिला चंबा के खजियार और कालाटोप पतंगा क्षेत्र में पाई जाती हैं. सिरमौर जिले के रेणुका में एक दशक पहले तितलियों की 48 प्रजातियां थीं, लेकिन अब ये घटकर 28 रह गयी हैं. सोलन में एक दशक पहले 105 किस्म की तितलियां मन मोहा करती थीं, अब उनकी संख्या घटकर 75 रह गयी हैं. शिमला में सिल्वर मियाड़ो नमक तितली की प्रजाति विलुप्त हो रही है.
यह सेब व अन्य फलों के परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी. जिला चंबा की पांगी घाटी से लेकर किन्नौर के चांगो, हर्लिंग की बेल्ट में सबसे दुर्लभ किस्म की तितलियां थीं, परंतु मौजूदा समय में यहां लॉन्ग ग्रीन, ब्लू वाइट, पर्पल वेणी, स्नो ग्रीन व बॉथ जैसी तितलियों की प्रजातियां गायब हैं. कीट विशेषज्ञों के अनुसार इनके विलुप्त होने का सबसे बड़ा कारण प्राकृतिक स्थलों में पर्यटन के नाम पर इनसानी गतिविधियों में बेतहाशा बढ़ोतरी है.
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