वाराणसी: पूरे देश में धूम-धाम के साथ गणेश उत्सव की शुरुआत हो चुकी है. इस दौरान कहीं 10 तो कहीं 8 दिन और 5 दिनों तक चलने वाले गणेश उत्सव को लेकर लोगों में काफी उत्साह देखने को मिल रहा है. महाराष्ट्र के पुणे से सन् 1894 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत की थी. वहीं अब महाराष्ट्र समेत पूरे भारत में इसका वृहद रूप देखने को मिलता है, लेकिन बहुत कम लोग ही जानते हैं कि पुणे में जब लोकमान्य तिलक ने सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत की थी, तो उसके ठीक चार साल बाद धर्म नगरी काशी में देश के दूसरे गणेश उत्सव की शुरुआत हुई, जो आज भी 122 सालों से लगातार चली आ रहा है.
ऐतिहासिक है आंग्रे का बाड़ा
काशी के ब्रह्मा घाट समेत शहर के कई अन्य इलाकों में बड़ी संख्या में मराठी समुदाय के लोग रहते हैं. महाराष्ट्र के अलग-अलग हिस्सों से आकर काशी में सैकड़ों साल पहले बसे मराठी लोगों ने यहां पर गणेश उत्सव की शुरुआत की. काशी में गणेश उत्सव बाड़ा में संपन्न किया जाता है. यह आंग्रे का बाड़ा अपने आप में काफी ऐतिहासिक जगह है.
गणेश उत्सव में दिखता है देशभक्ति का रंग
पेशवाओं के सरदार आंग्रे ने इस स्थान को बनवाया था, जिसे 1922 में गणेश उत्सव कमेटी ने एक हिस्सा लेकर यहां पूजा की शुरुआत की थी. इस गणेश उत्सव की सबसे खास बात यह है कि लोकमान्य तिलक की अपील पर शुरू हुए इस गणेश उत्सव में आज भी देशभक्ति का रंग दिखता है. देशभक्ति के रंग में रंगे छोटे-छोटे बच्चे हाथों में डांडिया पकड़कर जिस तरह से मराठी और हिंदी में पद्य गान करते हैं, इस दृश्य को देखकर हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
1920 में लोकमान्य तिलक पूजा में हुए थे शामिल
122 साल पुरानी इस गणेश पूजा को 7 दिनों तक आयोजित किया जाता है. देशभक्ति के रंग में रंगा यह गणेश उत्सव आज भी अपनी परंपराओं के लिए काशी में खासा प्रसिद्ध है. गणेश पूजा में शामिल होने के लिए देश के बड़े नामचीन कलाकार खुद यहां आया करते थे. गुदई महाराज, कंठे महाराज, किशन महाराज, गिरजा देवी समेत कई बड़े कलाकारों ने यहां अपनी हाजिरी दर्ज कराई है. 1920 में खुद लोकमान्य तिलक यहां पर आकर पूजा में शामिल हो चुके हैं. इतना ही नहीं इस पूजा में हिंदी फिल्म सिनेमा के पितामह कहे जाने वाले दादा साहब फाल्के भी शरीक हो चुके हैं. वहीं जिस कमरे में दादा साहब फाल्के रुकते थे, उसे आज भी सुरक्षित रखा गया है.