ETV Bharat / city

कोरोना से मुक्ति की प्रार्थना लिए शक्तिपीठों में पहुंच रहे श्रद्धालु, हिमाचल के मंदिरों में आस्था का संगम

author img

By

Published : Oct 17, 2020, 2:36 PM IST

नवरात्रों में लाखों लोगों के जुटने की तस्वीर पेश करने वाले हिमाचल के शक्तिपीठ इन दिनों गिने-चुने श्रद्धालुओं की उपस्थिति दिखा रहे हैं. मंदिर खुले तो हैं, लेकिन प्रशासन के हाथ नियमों से बंधे हैं. प्रदेश के शक्तिपीठों की बात की जाए तो यहां गर्भ गृह में दर्शन की अनुमति नहीं है. लंगर भी नहीं लगाए जा सकेंगे. श्रद्धालुओं की थर्मल स्कैनिंग की जा रही है. नैना देवी में टोकन सिस्टम लागू किया गया है.

Devotees arriving at temples on the occasion of Sharadiya Navratri IN HIMACHAL
शक्तिपीठ.

शिमला: कोरोना संकट के इस दौर में शारदीय नवरात्रों का रंग-ढंग पहले से अलग है. नवरात्रों में लाखों लोगों के जुटने की तस्वीर पेश करने वाले हिमाचल के शक्तिपीठ इन दिनों गिने-चुने श्रद्धालुओं की उपस्थिति दिखा रहे हैं. मंदिर खुले तो हैं, लेकिन प्रशासन के हाथ नियमों से बंधे हैं. इस कारण श्रद्धालुओं की संख्या भी कम है. हालांकि प्रदेश में मंदिरों के कपाट 10 सितंबर से खुल चुके हैं, लेकिन कोरोना के बाद शारदीय नवरात्रि का ये पहला मौका है.

प्रदेश के शक्तिपीठों की बात की जाए तो यहां गर्भ गृह में दर्शन की अनुमति नहीं है. लंगर भी नहीं लगाए जा सकेंगे. श्रद्धालुओं की थर्मल स्कैनिंग की जा रही है. नैना देवी में टोकन सिस्टम लागू किया गया है. प्रसाद चढ़ाने की अनुमति भी नहीं है. इतना होने के बाद भी आस्थावान लोगों की भक्तिभावना पहले की तरह दृढ़ है। श्रद्धालु मंदिर के दूर से ही दर्शन करके भी प्रसन्न हैं. हालांकि नैना देवी सहित अन्य मंदिरों में श्रद्धालुओं के लिए लाइव दर्शन की व्यवस्था भी है.

हिमाचल के सभी शक्तिपीठ स्थानीय जिला प्रशासन संचालित करता है. मंदिर न्यास के साथ मिलकर व्यवस्था की जाती है. कोरोना संकट की ये स्थिति पहली बार पेश आई है. मंदिरों में कीर्तन, भंडारे आदि की रौनक बेशक पहले जैसी न हो, लेकिन आस्था में कोई कमी नहीं है.

हिमाचल के शक्तिपीठों में यूं तो साल भर श्रद्धालु आते रहते हैं, परंतु नवरात्रि में देश-विदेश से लाखों लोग दर्शनों के लिए पहुंचते हैं. हिमाचल में मां नैना देवी का मंदिर जिला बिलासपुर में स्थित है. इसके अलावा अधिकांश शक्तिपीठ जिला कांगड़ा में है. जिला कांगड़ा में मां ज्वालामुखी, मां चामुंडा देवी, मां बगुलामुखी, मां बज्रेश्वरी देवी के मंदिर हैं. जिला ऊना में मां चिंतपूर्णी का शक्तिपीठ है. इसी तरह जिला शिमला के सराहन में मां भीमाकाली का मंदिर विख्यात है.

वीडियो.

नैना देवी: पौराणिक कथा के अनुसार, देवी सती ने अपने स्वामी भगवान शिव के अपमान से व्यथित होकर खुद को पिता दक्ष के यज्ञ में जीवित जला दिया था. इससे भगवान शिव क्रोध से भर उठे और उन्होंने सती के शव को कंधे पर उठाकर तांडव नृत्य शुरू कर दिया. भगवान शिव का ऐसा क्रोधित रूप देखकर देवताओं ने भगवान विष्णु से यह आग्रह किया कि अपने चक्र से सती के शरीर को टुकड़ों में काट दें. श्री नैना देवी मंदिर वह जगह है जहां सती की आंखें गिरीं थीं. इस कारण ये स्थान नैना देवी कहलाया.

Devotees arriving at temples on the occasion of Sharadiya Navratri IN HIMACHAL
नैना देवी मंदिर.

एक अन्य कहानी नैना नाम के गुज्जर लड़के की है. एक बार वह अपने मवेशियों को चराने गया तो पाया कि एक श्वेत रंग की गाय अपने थनों से एक पत्थर पर दूध बरसा रही है. उसने अगले कई दिनों तक इसी बात को देखा. एक रात जब वह सो रहा था, उसने देवी मां को सपने मे यह कहते हुए देखा कि वह पत्थर उनकी पिंडी है. बाद में वहां मंदिर का निर्माण हुआ. श्री नैना देवी मंदिर महिशपीठ नाम से भी प्रसिद्ध है क्योंकि यहाँ पर मां श्री नैना देवी जी ने महिषासुर का वध किया था.

Devotees arriving at temples on the occasion of Sharadiya Navratri IN HIMACHAL
मां ब्रजेश्वरी मंदिर.

बज्रेश्वरी देवी: हिमाचल में जिला कांगड़ा में मां बज्रेश्वरी का मंदिर विख्यात है. कुल 52 शक्तिपीठों में बज्रेश्वरी देवी मंदिर ऐसा शक्तिपीठ है, जिस पर आस्था रखने वालों का हर दुख-तकलीफ दूर होता है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार मां सती ने भगवान शिव के अपमान से कुपित होकर पिता राजा दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे. तब क्रोध में भरे शिव भगवान ने मां सती की देह को लेकर संपूर्ण ब्रह्मांड का भ्रमण किया.

भगवान शिव का मां सती के प्रति मोह भंग करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के शरीर को कई टुकड़ों में बांट दिया. मां सती के शरीर के अंग धरती पर जहां-जहां गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए. मान्यता है कि कांगड़ा में माता सती का बायां वक्ष गिरा था, इसलिए यह स्थल बज्रेश्वरी शक्तिपीठ कहलाया.

Devotees arriving at temples on the occasion of Sharadiya Navratri IN HIMACHAL
ज्वालामुखी शक्तिपीठ.

मां ज्वालामुखी: मां ज्वाला के मंदिर का इतिहास पांडवों से जुड़ता है. मान्यता है कि यहां देवी सती की जिह्वा गिरी थी. उसके बाद से ही यहां भूमि से देवी की शक्ति के प्रतीक के तौर पर अग्नि ज्वालाएं निकल रही हैं. पांडवों ने सबसे पहले इस शक्ति स्थल को खोज निकाला था. ज्वालामुखी मंदिर में देवी के किसी रूप की पूजा नहीं होती. यानी यहां कोई मूर्ति नहीं है. सिर्फ ज्वालाओं को ही मां का रूप माना जाता है. इस कारण शक्तिपीठ को मां ज्वाला के नाम से पुकारते हैं.

स्थानीय लोग इसे ज्वालाजी, ज्वालामुखी, मां ज्वाला आदि के नाम से पुकारा जाता है. यहां कुल नौ ज्वालाएं निकल रही हैं. इन्हें महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, महालक्ष्मी, सरस्वती, विंध्यवासिनी, अंबिका व अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है. बताया जाता है कि इस मंदिर का प्रारंभिक निर्माण राजा भूमि चंद ने करवाया. बाद में महान सिक्ख शासक महाराजा रणजीत सिंह ने वर्ष 1835 में इस मंदिर का नए सिरे से निर्माण करवाया.

Devotees arriving at temples on the occasion of Sharadiya Navratri IN HIMACHAL
बगलामुखी मंदिर.

मां बगलामुखी: पौराणिक कथाओं में मां बगलामुखी को दस महाविद्याओं में आठवां स्थान प्राप्त है. मां की उत्पत्ति ब्रह्मा द्वारा आराधना करने की बाद हुई थी. मान्यता है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का ग्रंथ एक राक्षस ने चुरा लिया और पाताल में छिप गया. उसे वरदान प्राप्त था कि पानी में मानव और देवता उसे नहीं मार सकते. ऐसे में ब्रह्मा ने मां भगवती की आराधना की. इससे बगलामुखी की उत्पत्ति हुई. मां ने बगुला का रूप धारण कर उस राक्षस का वध किया और ब्रह्मा को उनका ग्रंथ लौटाया. पांडुलिपियों में मां के जिस स्वरूप का वर्णन है, मां उसी स्वरूप में यहां विराजमान हैं. मंदिर के पुजारी ने बताया कि मां हल्दी रंग के जल से प्रकट हुई थीं. पीले रंग के कारण मां को पीतांबरी देवी भी कहते हैं. इन्हें पीला रंग सर्वाधिक पसंद है, इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग ही होता है. मां बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है.

मां भीमाकाली: शिमला की रामपुर तहसील में सराहन का भीमाकाली मंदिर पौराणिक काल से स्थापित है. पुराणों के अनुसार सराहन का पुराना नाम शोणितपुर था और यह इलाका बाणासुर की राजधानी था. भीमाकाली ने बाणासुर का वध किया था. मंदिर का इतिहास अगणित साल का है. यहां प्राचीन पहाड़ी शैली का मंदिर अपना कलात्मकता के लिए मशहूर है। यह देवी हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री व बुशहर रियासत के राजा वीरभद्र सिंह की कुलदेवी का मंदिर भी है.


कितने अमीर है देवभूमि हिमाचल के मंदिर
हिमाचल सरकार द्वारा अधिगृहित 35 मंदिरों के खजाने में अरबों रुपए बैंक जमा के तौर पर हैं. साथ ही सोना-चांदी का भी अकूत भंडार है. विश्वप्रसिद्ध शक्तिपीठ चिंतपूर्णी माता का मंदिर खजाने के मामले में सबसे ऊपर है. मंदिर ट्रस्ट के पास एक अरब रुपए से अधिक की एफडी है. साथ ही एक क्विंटल से अधिक सोना भी है. इसी तरह शक्तिपीठ मां नैना देवी के पास भी खजाने की कमी नहीं है. मंदिर के पास 58 करोड़ रुपए से अधिक की एफडी व एक क्विंटल से अधिक सोना है. सरकार ने प्रदेश के विभिन्न जिलों के कुल 35 मंदिर अधिगृहित किए हैं.

जानकारी के मुताबिक बिलासपुर जिला के शक्तिपीठ मां श्री नैनादेवी के खजाने में 11 करोड़ रुपए से अधिक नकद, 58 करोड़ रुपए से अधिक एफडी के तौर पर है. मंदिर के पास एक क्विंटल 80 किलो सोना और 72 क्विंटल से अधिक की चांदी है. सोना-चांदी के हिसाब से केवल दो मंदिर ही भरपूर हैं. चिंतपूर्णी मां के खजाने में सबसे अधिक संपन्नता है. एक अरब रुपए से अधिक की एफडी के साथ मंदिर के पास एक क्विंटल 98 किलो सोना है. मंदिर ट्रस्ट के पास 72 क्विंटल चांदी भी है. अन्य शक्तिपीठों में मां ज्वालामुखी के पास 23 किलो सोना, 8.90 क्विंटल चांदी के अलावा 3.42 करोड़ रुपए की नकदी है.

कांगड़ा के शक्तिपीठ मां चामुंडा के पास 18 किलो सोना है. सिरमौर के त्रिलोकपुर में मां बालासुंदरी मंदिर के पास 15 किलो सोना और 23 क्विंटल से अधिक चांदी है. चंबा के लक्ष्मीनारायण मंदिर के पास भी 15 किलो सोना और करोड़ों रुपए की संपत्ति है. मां दुर्गा मंदिर हाटकोटी के पास 4 किलो सोना, 2.87 करोड़ की एफडी व 2.33 करोड़ रुपए नकद हैं. सरकार द्वारा अधिगृहित इन मंदिरों की संपत्ति से साधनहीन परिवारों की कन्याओं के विवाह को भी आर्थिक मदद दी जाती है. इसके अलावा मंदिर परिसर के सौंदर्यीकरण, सुविधाओं के विस्तार पर खर्च किया जाता है. मंदिर ट्रस्ट का मुखिया डीसी होता है.

हाईकोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान वर्ष 2018 में राज्य सरकार ने ब्यौरा दिया था कि दस साल में हिमाचल के 12 मंदिरों में 361 करोड़ रुपए का चढ़ावा आया.
वहीं, अगस्त 2016 के आंकड़ों के अनुसार ऊना जिला चिंतपूर्णी के पास सबसे अधिक 95 करोड़ रुपए का बैंक बैलेंस था. चिंतपूर्णी के साथ प्रदेश के 36 मंदिरों के पास भी भारी खजाना है. तब के आंकड़ों के अनुसार इन 36 अधिसूचित मंदिरों में 2 अरब, 84 करोड़, 26 लाख, 27 हजार 495 रुपए बैंक बैलेंस था. इसके अलावा इन मंदिरों के पास एक क्विंटल तीस किलो से अधिक सोना और 27 क्विंटल, 72 किलो से अधिक चांदी थी. उस समय के आंकड़ों के अनुसार यानी चार साल पहले नयना देवी मंदिर बिलासपुर की संपत्तियों में 54 किलो सोना व 44 करोड़ रुपए से अधिक बैंक जमा के तौर पर था. इसी जिला की जमीन पर स्थित बाबा बालकनाथ की तपोभूमि शाहतलाई के विभिन्न मंदिर समूहों के पास 10.5 करोड़ रुपए से अधिक का बैंक बैलेंस है.

हमीरपुर जिला में स्थित बाबा बालकनाथ गुफा मंदिर दियोटसिद्ध के पास 23 किलो सोना और 44 करोड़ से अधिक बैंक जमा राशि थी. इसी तरह कांगड़ा के ज्वालामुखी शक्तिपीठ के पास 17 किलो सोना और 22 करोड़ से अधिक बैंक बैलेंस था. सबसे अधिक जमा राशि ऊना जिला के चिंतपूर्णी मंदिर के पास थी. इस मंदिर की बैंक में जमा राशि 95 करोड़ रुपए से अधिक थी. मंदिरों का बीस फीसदी सोना स्टेट बैंक की गोल्ड बांड स्कीम में प्रयोग होता है. पचास फीसदी सोने के बिस्किट व सिक्के बनाकर श्रद्धालुओं को मार्केट रेट पर दिए जाने का प्रावधान है. इसके अलावा 20 फीसदी सोना मंदिरों में रिजर्व रखा जाता है.

शिमला: कोरोना संकट के इस दौर में शारदीय नवरात्रों का रंग-ढंग पहले से अलग है. नवरात्रों में लाखों लोगों के जुटने की तस्वीर पेश करने वाले हिमाचल के शक्तिपीठ इन दिनों गिने-चुने श्रद्धालुओं की उपस्थिति दिखा रहे हैं. मंदिर खुले तो हैं, लेकिन प्रशासन के हाथ नियमों से बंधे हैं. इस कारण श्रद्धालुओं की संख्या भी कम है. हालांकि प्रदेश में मंदिरों के कपाट 10 सितंबर से खुल चुके हैं, लेकिन कोरोना के बाद शारदीय नवरात्रि का ये पहला मौका है.

प्रदेश के शक्तिपीठों की बात की जाए तो यहां गर्भ गृह में दर्शन की अनुमति नहीं है. लंगर भी नहीं लगाए जा सकेंगे. श्रद्धालुओं की थर्मल स्कैनिंग की जा रही है. नैना देवी में टोकन सिस्टम लागू किया गया है. प्रसाद चढ़ाने की अनुमति भी नहीं है. इतना होने के बाद भी आस्थावान लोगों की भक्तिभावना पहले की तरह दृढ़ है। श्रद्धालु मंदिर के दूर से ही दर्शन करके भी प्रसन्न हैं. हालांकि नैना देवी सहित अन्य मंदिरों में श्रद्धालुओं के लिए लाइव दर्शन की व्यवस्था भी है.

हिमाचल के सभी शक्तिपीठ स्थानीय जिला प्रशासन संचालित करता है. मंदिर न्यास के साथ मिलकर व्यवस्था की जाती है. कोरोना संकट की ये स्थिति पहली बार पेश आई है. मंदिरों में कीर्तन, भंडारे आदि की रौनक बेशक पहले जैसी न हो, लेकिन आस्था में कोई कमी नहीं है.

हिमाचल के शक्तिपीठों में यूं तो साल भर श्रद्धालु आते रहते हैं, परंतु नवरात्रि में देश-विदेश से लाखों लोग दर्शनों के लिए पहुंचते हैं. हिमाचल में मां नैना देवी का मंदिर जिला बिलासपुर में स्थित है. इसके अलावा अधिकांश शक्तिपीठ जिला कांगड़ा में है. जिला कांगड़ा में मां ज्वालामुखी, मां चामुंडा देवी, मां बगुलामुखी, मां बज्रेश्वरी देवी के मंदिर हैं. जिला ऊना में मां चिंतपूर्णी का शक्तिपीठ है. इसी तरह जिला शिमला के सराहन में मां भीमाकाली का मंदिर विख्यात है.

वीडियो.

नैना देवी: पौराणिक कथा के अनुसार, देवी सती ने अपने स्वामी भगवान शिव के अपमान से व्यथित होकर खुद को पिता दक्ष के यज्ञ में जीवित जला दिया था. इससे भगवान शिव क्रोध से भर उठे और उन्होंने सती के शव को कंधे पर उठाकर तांडव नृत्य शुरू कर दिया. भगवान शिव का ऐसा क्रोधित रूप देखकर देवताओं ने भगवान विष्णु से यह आग्रह किया कि अपने चक्र से सती के शरीर को टुकड़ों में काट दें. श्री नैना देवी मंदिर वह जगह है जहां सती की आंखें गिरीं थीं. इस कारण ये स्थान नैना देवी कहलाया.

Devotees arriving at temples on the occasion of Sharadiya Navratri IN HIMACHAL
नैना देवी मंदिर.

एक अन्य कहानी नैना नाम के गुज्जर लड़के की है. एक बार वह अपने मवेशियों को चराने गया तो पाया कि एक श्वेत रंग की गाय अपने थनों से एक पत्थर पर दूध बरसा रही है. उसने अगले कई दिनों तक इसी बात को देखा. एक रात जब वह सो रहा था, उसने देवी मां को सपने मे यह कहते हुए देखा कि वह पत्थर उनकी पिंडी है. बाद में वहां मंदिर का निर्माण हुआ. श्री नैना देवी मंदिर महिशपीठ नाम से भी प्रसिद्ध है क्योंकि यहाँ पर मां श्री नैना देवी जी ने महिषासुर का वध किया था.

Devotees arriving at temples on the occasion of Sharadiya Navratri IN HIMACHAL
मां ब्रजेश्वरी मंदिर.

बज्रेश्वरी देवी: हिमाचल में जिला कांगड़ा में मां बज्रेश्वरी का मंदिर विख्यात है. कुल 52 शक्तिपीठों में बज्रेश्वरी देवी मंदिर ऐसा शक्तिपीठ है, जिस पर आस्था रखने वालों का हर दुख-तकलीफ दूर होता है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार मां सती ने भगवान शिव के अपमान से कुपित होकर पिता राजा दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे. तब क्रोध में भरे शिव भगवान ने मां सती की देह को लेकर संपूर्ण ब्रह्मांड का भ्रमण किया.

भगवान शिव का मां सती के प्रति मोह भंग करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के शरीर को कई टुकड़ों में बांट दिया. मां सती के शरीर के अंग धरती पर जहां-जहां गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए. मान्यता है कि कांगड़ा में माता सती का बायां वक्ष गिरा था, इसलिए यह स्थल बज्रेश्वरी शक्तिपीठ कहलाया.

Devotees arriving at temples on the occasion of Sharadiya Navratri IN HIMACHAL
ज्वालामुखी शक्तिपीठ.

मां ज्वालामुखी: मां ज्वाला के मंदिर का इतिहास पांडवों से जुड़ता है. मान्यता है कि यहां देवी सती की जिह्वा गिरी थी. उसके बाद से ही यहां भूमि से देवी की शक्ति के प्रतीक के तौर पर अग्नि ज्वालाएं निकल रही हैं. पांडवों ने सबसे पहले इस शक्ति स्थल को खोज निकाला था. ज्वालामुखी मंदिर में देवी के किसी रूप की पूजा नहीं होती. यानी यहां कोई मूर्ति नहीं है. सिर्फ ज्वालाओं को ही मां का रूप माना जाता है. इस कारण शक्तिपीठ को मां ज्वाला के नाम से पुकारते हैं.

स्थानीय लोग इसे ज्वालाजी, ज्वालामुखी, मां ज्वाला आदि के नाम से पुकारा जाता है. यहां कुल नौ ज्वालाएं निकल रही हैं. इन्हें महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, महालक्ष्मी, सरस्वती, विंध्यवासिनी, अंबिका व अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है. बताया जाता है कि इस मंदिर का प्रारंभिक निर्माण राजा भूमि चंद ने करवाया. बाद में महान सिक्ख शासक महाराजा रणजीत सिंह ने वर्ष 1835 में इस मंदिर का नए सिरे से निर्माण करवाया.

Devotees arriving at temples on the occasion of Sharadiya Navratri IN HIMACHAL
बगलामुखी मंदिर.

मां बगलामुखी: पौराणिक कथाओं में मां बगलामुखी को दस महाविद्याओं में आठवां स्थान प्राप्त है. मां की उत्पत्ति ब्रह्मा द्वारा आराधना करने की बाद हुई थी. मान्यता है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का ग्रंथ एक राक्षस ने चुरा लिया और पाताल में छिप गया. उसे वरदान प्राप्त था कि पानी में मानव और देवता उसे नहीं मार सकते. ऐसे में ब्रह्मा ने मां भगवती की आराधना की. इससे बगलामुखी की उत्पत्ति हुई. मां ने बगुला का रूप धारण कर उस राक्षस का वध किया और ब्रह्मा को उनका ग्रंथ लौटाया. पांडुलिपियों में मां के जिस स्वरूप का वर्णन है, मां उसी स्वरूप में यहां विराजमान हैं. मंदिर के पुजारी ने बताया कि मां हल्दी रंग के जल से प्रकट हुई थीं. पीले रंग के कारण मां को पीतांबरी देवी भी कहते हैं. इन्हें पीला रंग सर्वाधिक पसंद है, इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग ही होता है. मां बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है.

मां भीमाकाली: शिमला की रामपुर तहसील में सराहन का भीमाकाली मंदिर पौराणिक काल से स्थापित है. पुराणों के अनुसार सराहन का पुराना नाम शोणितपुर था और यह इलाका बाणासुर की राजधानी था. भीमाकाली ने बाणासुर का वध किया था. मंदिर का इतिहास अगणित साल का है. यहां प्राचीन पहाड़ी शैली का मंदिर अपना कलात्मकता के लिए मशहूर है। यह देवी हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री व बुशहर रियासत के राजा वीरभद्र सिंह की कुलदेवी का मंदिर भी है.


कितने अमीर है देवभूमि हिमाचल के मंदिर
हिमाचल सरकार द्वारा अधिगृहित 35 मंदिरों के खजाने में अरबों रुपए बैंक जमा के तौर पर हैं. साथ ही सोना-चांदी का भी अकूत भंडार है. विश्वप्रसिद्ध शक्तिपीठ चिंतपूर्णी माता का मंदिर खजाने के मामले में सबसे ऊपर है. मंदिर ट्रस्ट के पास एक अरब रुपए से अधिक की एफडी है. साथ ही एक क्विंटल से अधिक सोना भी है. इसी तरह शक्तिपीठ मां नैना देवी के पास भी खजाने की कमी नहीं है. मंदिर के पास 58 करोड़ रुपए से अधिक की एफडी व एक क्विंटल से अधिक सोना है. सरकार ने प्रदेश के विभिन्न जिलों के कुल 35 मंदिर अधिगृहित किए हैं.

जानकारी के मुताबिक बिलासपुर जिला के शक्तिपीठ मां श्री नैनादेवी के खजाने में 11 करोड़ रुपए से अधिक नकद, 58 करोड़ रुपए से अधिक एफडी के तौर पर है. मंदिर के पास एक क्विंटल 80 किलो सोना और 72 क्विंटल से अधिक की चांदी है. सोना-चांदी के हिसाब से केवल दो मंदिर ही भरपूर हैं. चिंतपूर्णी मां के खजाने में सबसे अधिक संपन्नता है. एक अरब रुपए से अधिक की एफडी के साथ मंदिर के पास एक क्विंटल 98 किलो सोना है. मंदिर ट्रस्ट के पास 72 क्विंटल चांदी भी है. अन्य शक्तिपीठों में मां ज्वालामुखी के पास 23 किलो सोना, 8.90 क्विंटल चांदी के अलावा 3.42 करोड़ रुपए की नकदी है.

कांगड़ा के शक्तिपीठ मां चामुंडा के पास 18 किलो सोना है. सिरमौर के त्रिलोकपुर में मां बालासुंदरी मंदिर के पास 15 किलो सोना और 23 क्विंटल से अधिक चांदी है. चंबा के लक्ष्मीनारायण मंदिर के पास भी 15 किलो सोना और करोड़ों रुपए की संपत्ति है. मां दुर्गा मंदिर हाटकोटी के पास 4 किलो सोना, 2.87 करोड़ की एफडी व 2.33 करोड़ रुपए नकद हैं. सरकार द्वारा अधिगृहित इन मंदिरों की संपत्ति से साधनहीन परिवारों की कन्याओं के विवाह को भी आर्थिक मदद दी जाती है. इसके अलावा मंदिर परिसर के सौंदर्यीकरण, सुविधाओं के विस्तार पर खर्च किया जाता है. मंदिर ट्रस्ट का मुखिया डीसी होता है.

हाईकोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान वर्ष 2018 में राज्य सरकार ने ब्यौरा दिया था कि दस साल में हिमाचल के 12 मंदिरों में 361 करोड़ रुपए का चढ़ावा आया.
वहीं, अगस्त 2016 के आंकड़ों के अनुसार ऊना जिला चिंतपूर्णी के पास सबसे अधिक 95 करोड़ रुपए का बैंक बैलेंस था. चिंतपूर्णी के साथ प्रदेश के 36 मंदिरों के पास भी भारी खजाना है. तब के आंकड़ों के अनुसार इन 36 अधिसूचित मंदिरों में 2 अरब, 84 करोड़, 26 लाख, 27 हजार 495 रुपए बैंक बैलेंस था. इसके अलावा इन मंदिरों के पास एक क्विंटल तीस किलो से अधिक सोना और 27 क्विंटल, 72 किलो से अधिक चांदी थी. उस समय के आंकड़ों के अनुसार यानी चार साल पहले नयना देवी मंदिर बिलासपुर की संपत्तियों में 54 किलो सोना व 44 करोड़ रुपए से अधिक बैंक जमा के तौर पर था. इसी जिला की जमीन पर स्थित बाबा बालकनाथ की तपोभूमि शाहतलाई के विभिन्न मंदिर समूहों के पास 10.5 करोड़ रुपए से अधिक का बैंक बैलेंस है.

हमीरपुर जिला में स्थित बाबा बालकनाथ गुफा मंदिर दियोटसिद्ध के पास 23 किलो सोना और 44 करोड़ से अधिक बैंक जमा राशि थी. इसी तरह कांगड़ा के ज्वालामुखी शक्तिपीठ के पास 17 किलो सोना और 22 करोड़ से अधिक बैंक बैलेंस था. सबसे अधिक जमा राशि ऊना जिला के चिंतपूर्णी मंदिर के पास थी. इस मंदिर की बैंक में जमा राशि 95 करोड़ रुपए से अधिक थी. मंदिरों का बीस फीसदी सोना स्टेट बैंक की गोल्ड बांड स्कीम में प्रयोग होता है. पचास फीसदी सोने के बिस्किट व सिक्के बनाकर श्रद्धालुओं को मार्केट रेट पर दिए जाने का प्रावधान है. इसके अलावा 20 फीसदी सोना मंदिरों में रिजर्व रखा जाता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.