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आग से धधक रहे हिमाचल के जंगल, सरकार के तमाम दावे फेल  

पिछले कुछ ही दिनों में प्रदेश के जंगलों में 877 जगह पर आग लगने की घटनाएं सामने आई है. अब तक कुल मिलाकर 6961.75 हैक्टेयर क्षेत्र आग की (Cases of forest fire in Himachal Pradesh) चपेट में आया है. जिसमें 5672.77 हेक्टेयर प्राकृतिक वन भूमि और 1246.98 हैक्टेयर प्लांटेशन वाला क्षेत्र शामिल है. आग लगने से कई वन्य जीव भी काल का ग्रास बन गए हैं. इस सीजन में यानी एक महीने के अंदर 1 करोड़ 84 लाख 38 हजार 588 रुपए का नुकसान हो चुका है.

Cases of forest fire in Himachal Pradesh
आग से धधक रहे हिमाचल के जंगल
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Published : May 2, 2022, 8:44 PM IST

शिमला: सरकार के तमाम दावों के बावजूद हिमाचल के जंगल आग से धधक रहे हैं. हर साल वनों को आग से बचाने के लिए योजनाएं तो बहुत बनाई जाती हैं, लेकिन उन पर अमल नहीं होता है. इस समय लगभग हर जिले में जंगलों में आग लगी है. पिछले कुछ ही दिनों में प्रदेश के जंगलों में 877 जगह पर आग लगने की घटनाएं सामने आई है. अब तक कुल मिलाकर 6961.75 हैक्टेयर क्षेत्र आग की (Cases of forest fire in Himachal Pradesh) चपेट में आया है. जिसमें 5672.77 हेक्टेयर प्राकृतिक वन भूमि और 1246.98 हैक्टेयर प्लांटेशन वाला क्षेत्र शामिल है. आग लगने से कई वन्य जीव भी काल का ग्रास बन गए हैं. इस सीजन में यानी एक महीने के अंदर 1 करोड़ 84 लाख 38 हजार 588 रुपए का नुकसान हो चुका है.

आग लगने के सबसे अधिक मामले धर्मशाला डिवीजन में: प्रदेश में लंबे समय से सूखे की स्थिति के कारण इस बार जंगलों की आग अनियंत्रित होती जा रही है. जंगलों में आग लगने के सबसे अधिक 215 मामले धर्मशाला डिवीजन में सामने (fire case in Dharamshala Division) आए हैं. रामपुर सर्कल में 135 मामले, शिमला में 112 मामले, चंबा में 142 मामले, मंडी में 115 मामले, नाहन में 46 मामले, हमीरपुर में 29 मामले, बिलासपुर में 25 मामले, कुल्लू में 19 मामले, वाइल्ड लाइफ एरिया धर्मशाला में 2 मामले, वाइल्ड लाइफ एरिया शिमला में 3 मामले और जीएचएनपी शमशी में आग लगने के 17 मामले सामने आए हैं. पीसीसीएफ हॉफ अजय श्रीवास्तव का कहना है कि वन विभाग द्वारा आग पर काबू पाने के लिए हर संभव प्रयास किया गया है. उन्होंने कहा कि चीड़ की पत्तियों को इकट्ठा कर कंट्रोल फायर की गई ताकि जंगलों को भयंकर आग से बचाया जा सके. इसके अलावा बड़े जंगलों में ड्रेन भी बनाई हैं ताकि अगर आग लग जाए तो उसे नियंत्रित किया जा सके. हिमाचल के कुल वन क्षेत्र में 15 प्रतिशत से अधिक चीड़ व देवदार हैं. यह दोनों ही आग जल्दी पकड़ लेते हैं. चीड़ की पत्तियों में लगी आग को नियंत्रित करना भी बेहद कठिन कार्य है जिसके कारण जंगलों में आग तेजी से फैलती है.

लोगों को किया जा रहा जागरूक: उन्होंने कहा कि लोगों को गांव-गांव जाकर जागरूक किया जा रहा है. ग्रामीणों को बताया जा रहा कि आजकल जंगलों के समीप कहीं भी आग न लगाई जाए. उन्होंने कहा कि सड़कों के साथ सटे जंगलों में अग्निशमन विभाग के कर्मचारी आग पर काबू पा रहे हैं. लेकिन वन विभाग की ऐसी हजारों हेक्टेयर भूमि है, जहां यह अग्निशमन वाहन नहीं पहुंच पाते. ऐसे में आग की लपटों पर काबू पाना कर्मचारियों के लिए मुश्किल हो गया है. उन्होंने कहा कि आग बुझाने में अग्निशमन विभाग की मदद भी ली जा रही है. इसके अलावा होमगार्ड के जवानों की सहायता भी ली जा रही है. गांवों के स्तर पर युवा मंडलों और स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद भी ली जा रही है. कुछ लोगों को वन विभाग की तरफ से प्रशिक्षण भी दिया गया है. इन लोगों को आग बुझाने के यंत्र मुहैया करवाए जा रहे हैं. ताकि खुद सुरक्षित रहकर आग पर काबू पाया जा सके.

हेलीकॉप्टर का प्रयोग करने के पक्ष में नहीं विभाग: अजय श्रीवास्तव ने कहा कि वह फिलहाल आग बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर का प्रयोग करने के पक्ष में नहीं हैं. उत्तराखंड सहित कुछ पहाड़ी राज्यों ने जंगल की आग बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर का प्रयोग पिछले सीजन में भी किया था लेकिन इसके अपेक्षाकृत सार्थक परिणाम नहीं मिले हैं. ऐसे में हिमाचल में भी विभाग, सरकार को कोई और प्रभावी कदम उठाने की सलाह देगा. पहाड़ी राज्यों में जंगलों की आग को नियंत्रित करने में हेलीकॉप्टर सशक्त माध्यम नहीं है. उन्होंने कहा कि लोगों को जागरूक करके ही आग लगने की घटनाओं को नियंत्रित किया जा सकता है.

जंगलों में आग लगने का बड़ा कारण मानवीय भूल: अजय श्रीवास्तव ने मानवीय भूल को भी जंगलों में आग लगने का बड़ा कारण बताया. उन्होंने कहा कि कुछ लोग चीड़ की पत्तियों को नष्ट करने के लिए जगलों में आग लगा देते हैं जोकि कानूनी (cause of forest fire) अपराध है और पकड़े जाने पर न्यायिक प्रक्रिया के अनुसार उन्हें बड़ी सजा का प्रावधान भी है. इसके अलावा निजी भूमि पर भी खरपतवार और कांटे आदि जलाने के लिए (Cases of forest fire in Himachal Pradesh) कुछ लोग आजकल के दिनों में आग लगा देते हैं. भारी सूखा होने के कारण यह आग अनियंत्रित हो जाती है. जानकारी के अनुसार एयर फोर्स हेलीकॉप्टर की एक उड़ान के लिए आठ लाख रुपये चार्ज करता है और उड़ान आधा घंटे की होती है. जिसमें नजदीक के डैम या बांध से 3000 लीटर का वाटर बैग भरकर आग वाले क्षेत्र पर डाला जाता है.

वन भूमि में आग लगने से ना केवल वन संपदा को नुकसान पहुंचता है बल्कि सैंकड़ों वन्य प्राणी भी आग की चपेट में आ जाते हैं. जंगल नष्ट हो जाने के कारण वन्य जीव आवासीय क्षेत्रों का रुख करने को मजबूर हो जाते हैं. जिसके कारण वनों के साथ सटे गांवों में लोगों की भी भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इन इलाकों में ग्रामीण आजकल सब्जियां, टमाटर और अन्य फसलें उगाते हैं. भोजन की तलाश में यह जानवर इन फसलों की भी नष्ट कर देते हैं. इसके अलावा कुछ वन्य जीव सुरक्षित स्थानों की तलाश में दूर-दराज के क्षेत्रों में हमेशा के लिए पलायन भी कर जाते हैं.

ये भी पढ़ें: 600 बार जंगलों में लगी आग, जयराम ठाकुर ने जताई चिंता

ये भी पढ़ें: आग में जल रहे हिमाचल के जंगल, आखिर जिम्मेदार कौन?

शिमला: सरकार के तमाम दावों के बावजूद हिमाचल के जंगल आग से धधक रहे हैं. हर साल वनों को आग से बचाने के लिए योजनाएं तो बहुत बनाई जाती हैं, लेकिन उन पर अमल नहीं होता है. इस समय लगभग हर जिले में जंगलों में आग लगी है. पिछले कुछ ही दिनों में प्रदेश के जंगलों में 877 जगह पर आग लगने की घटनाएं सामने आई है. अब तक कुल मिलाकर 6961.75 हैक्टेयर क्षेत्र आग की (Cases of forest fire in Himachal Pradesh) चपेट में आया है. जिसमें 5672.77 हेक्टेयर प्राकृतिक वन भूमि और 1246.98 हैक्टेयर प्लांटेशन वाला क्षेत्र शामिल है. आग लगने से कई वन्य जीव भी काल का ग्रास बन गए हैं. इस सीजन में यानी एक महीने के अंदर 1 करोड़ 84 लाख 38 हजार 588 रुपए का नुकसान हो चुका है.

आग लगने के सबसे अधिक मामले धर्मशाला डिवीजन में: प्रदेश में लंबे समय से सूखे की स्थिति के कारण इस बार जंगलों की आग अनियंत्रित होती जा रही है. जंगलों में आग लगने के सबसे अधिक 215 मामले धर्मशाला डिवीजन में सामने (fire case in Dharamshala Division) आए हैं. रामपुर सर्कल में 135 मामले, शिमला में 112 मामले, चंबा में 142 मामले, मंडी में 115 मामले, नाहन में 46 मामले, हमीरपुर में 29 मामले, बिलासपुर में 25 मामले, कुल्लू में 19 मामले, वाइल्ड लाइफ एरिया धर्मशाला में 2 मामले, वाइल्ड लाइफ एरिया शिमला में 3 मामले और जीएचएनपी शमशी में आग लगने के 17 मामले सामने आए हैं. पीसीसीएफ हॉफ अजय श्रीवास्तव का कहना है कि वन विभाग द्वारा आग पर काबू पाने के लिए हर संभव प्रयास किया गया है. उन्होंने कहा कि चीड़ की पत्तियों को इकट्ठा कर कंट्रोल फायर की गई ताकि जंगलों को भयंकर आग से बचाया जा सके. इसके अलावा बड़े जंगलों में ड्रेन भी बनाई हैं ताकि अगर आग लग जाए तो उसे नियंत्रित किया जा सके. हिमाचल के कुल वन क्षेत्र में 15 प्रतिशत से अधिक चीड़ व देवदार हैं. यह दोनों ही आग जल्दी पकड़ लेते हैं. चीड़ की पत्तियों में लगी आग को नियंत्रित करना भी बेहद कठिन कार्य है जिसके कारण जंगलों में आग तेजी से फैलती है.

लोगों को किया जा रहा जागरूक: उन्होंने कहा कि लोगों को गांव-गांव जाकर जागरूक किया जा रहा है. ग्रामीणों को बताया जा रहा कि आजकल जंगलों के समीप कहीं भी आग न लगाई जाए. उन्होंने कहा कि सड़कों के साथ सटे जंगलों में अग्निशमन विभाग के कर्मचारी आग पर काबू पा रहे हैं. लेकिन वन विभाग की ऐसी हजारों हेक्टेयर भूमि है, जहां यह अग्निशमन वाहन नहीं पहुंच पाते. ऐसे में आग की लपटों पर काबू पाना कर्मचारियों के लिए मुश्किल हो गया है. उन्होंने कहा कि आग बुझाने में अग्निशमन विभाग की मदद भी ली जा रही है. इसके अलावा होमगार्ड के जवानों की सहायता भी ली जा रही है. गांवों के स्तर पर युवा मंडलों और स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद भी ली जा रही है. कुछ लोगों को वन विभाग की तरफ से प्रशिक्षण भी दिया गया है. इन लोगों को आग बुझाने के यंत्र मुहैया करवाए जा रहे हैं. ताकि खुद सुरक्षित रहकर आग पर काबू पाया जा सके.

हेलीकॉप्टर का प्रयोग करने के पक्ष में नहीं विभाग: अजय श्रीवास्तव ने कहा कि वह फिलहाल आग बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर का प्रयोग करने के पक्ष में नहीं हैं. उत्तराखंड सहित कुछ पहाड़ी राज्यों ने जंगल की आग बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर का प्रयोग पिछले सीजन में भी किया था लेकिन इसके अपेक्षाकृत सार्थक परिणाम नहीं मिले हैं. ऐसे में हिमाचल में भी विभाग, सरकार को कोई और प्रभावी कदम उठाने की सलाह देगा. पहाड़ी राज्यों में जंगलों की आग को नियंत्रित करने में हेलीकॉप्टर सशक्त माध्यम नहीं है. उन्होंने कहा कि लोगों को जागरूक करके ही आग लगने की घटनाओं को नियंत्रित किया जा सकता है.

जंगलों में आग लगने का बड़ा कारण मानवीय भूल: अजय श्रीवास्तव ने मानवीय भूल को भी जंगलों में आग लगने का बड़ा कारण बताया. उन्होंने कहा कि कुछ लोग चीड़ की पत्तियों को नष्ट करने के लिए जगलों में आग लगा देते हैं जोकि कानूनी (cause of forest fire) अपराध है और पकड़े जाने पर न्यायिक प्रक्रिया के अनुसार उन्हें बड़ी सजा का प्रावधान भी है. इसके अलावा निजी भूमि पर भी खरपतवार और कांटे आदि जलाने के लिए (Cases of forest fire in Himachal Pradesh) कुछ लोग आजकल के दिनों में आग लगा देते हैं. भारी सूखा होने के कारण यह आग अनियंत्रित हो जाती है. जानकारी के अनुसार एयर फोर्स हेलीकॉप्टर की एक उड़ान के लिए आठ लाख रुपये चार्ज करता है और उड़ान आधा घंटे की होती है. जिसमें नजदीक के डैम या बांध से 3000 लीटर का वाटर बैग भरकर आग वाले क्षेत्र पर डाला जाता है.

वन भूमि में आग लगने से ना केवल वन संपदा को नुकसान पहुंचता है बल्कि सैंकड़ों वन्य प्राणी भी आग की चपेट में आ जाते हैं. जंगल नष्ट हो जाने के कारण वन्य जीव आवासीय क्षेत्रों का रुख करने को मजबूर हो जाते हैं. जिसके कारण वनों के साथ सटे गांवों में लोगों की भी भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इन इलाकों में ग्रामीण आजकल सब्जियां, टमाटर और अन्य फसलें उगाते हैं. भोजन की तलाश में यह जानवर इन फसलों की भी नष्ट कर देते हैं. इसके अलावा कुछ वन्य जीव सुरक्षित स्थानों की तलाश में दूर-दराज के क्षेत्रों में हमेशा के लिए पलायन भी कर जाते हैं.

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