शिमला: हिमाचल प्रदेश की खेती लायक उपजाऊ भूमि और वन भूमि लैंटाना की चपेट में (Lantana grass in Himachal Pradesh) है. लैंटाना नामक खतरनाक खरपतवार के कारण हिमाचल की ढाई लाख हैक्टेयर के करीब जमीन बंजर हो रही है. हिमाचल प्रदेश में लैंटाना के पनपने को लेकर वर्ष 2010-11 और 2015-16 के दौरान एक सर्वे किया गया था. सर्वे के अनुसार हिमाचल प्रदेश में 2,35,491.93 हेक्टेयर वन भूमि अलग-अलग किस्म के खतरनाक लैंटाना से बुरी तरह प्रभावित पाई गई.
राज्य के सात क्षेत्रीय वन मंडलों धर्मशाला, नाहन, हमीरपुर, चंबा, बिलासपुर, मंडी और शिमला में लैंटाना का अधिक प्रकोप पाया गया है. इसके अलावा उपजाऊ भूमि भी प्रभावित हो रही है. लैंटाना उन्मूलन के लिए हिमाचल में पूर्व कांग्रेस सरकार के समय चार साल की अवधि में 82 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे. यानी हर साल बीस करोड़ रुपए से अधिक की रकम खर्च की गई, परंतु समस्या से निजात नहीं मिली. तत्कालीन कांग्रेस सरकार के वन मंत्री ने विधानसभा के भीतर कहा था कि आने वाले ढाई दशक में भी लैंटाना से मुक्ति संभव नहीं दिखाई दे रही. कुछ समय पहले आईआईटी मंडी की मदद से लैंटाना की झाड़ियों से फर्नीचर (Furniture from Lantana grass) आदि बनाने की शुरुआत की गई थी. लेकिन लैंटाना को जड़-मूल से उखाड़ने का प्रयास सफल नहीं हो रहा है.
यदि पूर्व की बात करें तो प्रदेश को लैंटाना जैसे खतरनाक खरपतवार से निजात दिलाने के लिए वर्ष 2013-14 में 5 करोड़ रुपये व्यय कर 5000 हैक्टेयर वन भूमि, वर्ष 2014-15 में 16.48 करोड़ रुपये व्यय कर 10,000 हैक्टेयर क्षेत्र तथा वर्ष 2015-16 में 19.29 करोड़ रुपये व्यय कर 13,060 हैक्टेयर क्षेत्र को लैंटाना मुक्त कर ईंधन, चारा प्रजातियों तथा जल संरक्षण जैसे कार्य कर स्थानीय लोगों व घुमंतु चरवाहों को राहत पहुंचाई गई. वर्ष 2016 में 16.07 करोड़ रुपये व्यय कर 13 हजार हैक्टेयर क्षेत्र को लैंटाना मुक्त कर पुनःस्थापित करने का लक्ष्य रखा गया था.
ऐसे फैलता है लैंटाना: हिमाचल के वन मंत्री राकेश पठानिया (Himachal Forest Minister Rakesh Pathania) के अनुसार विभाग लैंटाना को कट रूट स्टॉक विधि से निकाल रहा है. इस विधि से प्रभावित क्षेत्र को अब 4 वर्ष तक उपचारित किया जा रहा है. लैंटाना घास पक्षियों और पशुओं की बीट तथा गोबर से फैलता है. इसका बीज जहां गिरता है वहां पर लैंटाना फैल जाता है. लैंटाना 4,500 फीट से नीचे फैलता है. हालांकि बर्फ वाले क्षेत्रों में यह नहीं फैलता. राज्य के निचले क्षेत्र में इस समस्या से निपटने के लिए 2013-14 में विशेष अभियान शुरू किया है और इसको जड़ के खत्म करने के बाद इसके स्थान पर बैंबू, कचनार, तूनी, सफेदा, शीशम और सांगवान इत्यादि के पौधे लगाए गए हैं.
हिमाचल प्रदेश की जैव विविधता और पारिस्थितकीय सहित काफी मात्रा में मौजूद बंजर भूमि को लैंटाना जैसे खरपतवार से बड़ा खतरा पैदा हो गया है. लैंटाना को हिमाचल में कांग्रेस घास, फूल ककड़ी और उजड़ू भी कहते हैं. लैंटाना एक ऐसी झाड़ी है, जो लगभग प्रदेश के हर हिस्से में पाई जाती है. शुष्क शीतोष्ण इलाकों में ये न के बराबर होती है. लैंटाना से वन भूमि, जैव विविधता और खेती के लिए उपजाऊ भूमि को भारी खतरा है. ये खरपतवार उक्त सभी प्रकार की भूमि के लिए घातक है. ये कैंसर के सैल्स की तरह मल्टीप्लाई होकर फैल रहा है. लैंटाना में कई प्रकार विषैले पदार्थ होते हैं. इससे भूमि की उपजाऊ शक्ति बुरी तरह से प्रभावित होती है. इसके फैलने से हिमाचल के वनों में मौजूद जैव विविधता वाले पौधों, फलों, फूलों सहित कई चारागाहों को नुकसान हो रहा है.
लैंटाना आखिर है क्या: लैंटाना एक उष्ण कटिबंधीय झाड़ी की तरह एक खरपतवार है. इसे कांग्रेस घास भी कहा जाता है. इसकी झाड़ी में तीखे कांटे होते हैं और इससे तीखी गंध आती है. लैंटाना की जो किस्म आम है, उसमें पीले या गुलाबी फूल होते हैं जो नारंगी या लाल रंग में बदलते हैं. लैंटाना की पत्तियां अंडाकार होती हैं और इसमें बहुत अच्छी बीज उत्पादन क्षमता होती है. इसकी एक झाड़ी 12 हजार से अधिक बीज प्रतिवर्ष पैदा करती है. इसकी जड़ बहुत मजबूत होती है और यह बार-बार काटने के बाद भी फिर से पनप जाती है.
लैंटाना हिमाचल के लिए खतरा क्यों: लैंटाना तेजी से फैलता है और इसे नष्ट करने की प्रक्रिया बड़ी जटिल है. लैंटाना जहां फैलता है वहां किसी अन्य वनस्पति को फलने-फूलने नहीं देता. इस कारण चारागाहों, वनों और फलों के बागीचों की उत्पादकता पर बहुत बुरा असर पड़ता है. यह खरपतवार बड़ी तेजी से फैलता है और यह किसी भी जलवायु और किसी भी क्षेत्र में आसानी से पनप जाता है. लैंटाना को काटने और जलाने के बाद भी यह दोबारा पनपता है. ऐसे में इसे जड़ से नष्ट करने के लिए भारी खर्च आता है. वन मंत्री राकेश पठानिया के अनुसार लैंटाना उन्मूलन के लिए केंद्र सरकार की मदद से कई उपाय किए जा रहे हैं. कर रूट विधि के अलावा श्रमिकों के जरिए भी लैंटाना को हटाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार का लक्ष्य लैंटाना से बंजर हुई भूमि को फिर से उपजाऊ बनाना है.
हिमाचल के पारिस्थितिकीय तंत्र पर खरपतवारों का दुष्प्रभाव
-हिमाचल में चरागाह भूमि इन खरपतवारों के कारण सबसे अधिक प्रभावित हुई है. -लैंटाना जैसे यह खरपतवार भूमि के पोषक तत्वों को कम करते हैं और इससे भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। साथ ही पशुधन के लिए घास का उगना भी खत्म हो जाता है. -लैंटाना के कारण चारागाहों में हरे घास की कमी हो जाती है. पशुधन मजबूरी में लैंटाना व अन्य खरपतवार खाते हैं. इससे उनकी सेहत को नुकसान होता है. कई बार तो उनकी मौत तक भी हो जाती है. -लैंटाना जैसे खरपतवार इनसानों के लिए भी घातक हैं. इसके संपर्क में आने से बालों का झड़ना, चर्मरोग, अस्थमा, एक्जिमा, उल्टी, सिरदर्द, आंखों की पलकों जैसे खुले शरीर के अंगों पर फुन्सी आदि के रूप में एलर्जी हो जाती है. -लैंटाना आदि के तेजी से बढ़ने के कारण स्थानीय वातावरण के अनुकूल पेड़ व झाड़ियां नहीं उग पाती. ऐसे में जैव विविधता को खतरा होता है. -यह मिट्टी से पोषक तत्वों और नमी का दोहन करता है जिससे भूमि को बंजर बनती जाती है. -देसी पौधों की प्रजातियों के साथ संकरण से उनके आनुवंशिक स्वरूप में परिवर्तन हो रहा है. -ऐसे खरपतवार पोषण देने वाले देसी पौधों के स्थान पर निम्न गुणवत्ता वाले खरपतवारों को बढ़ाता है. -मलेरिया के मच्छर इसकी घनी झाडियों में पनपते और प्रजनन करते हैं.