शिमला: विकास के लिए सीमित संसाधनों वाले हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्यों की आर्थिकी को सुदृढ़ करने में बाहरी वित्त पोषित परियोजनाएं अहम भूमिका निभा रही हैं. प्रदेश में लोक निर्माण, वानिकी, ऊर्जा, पर्यटन, कृषि, बागवानी, शहरी और कौशल उन्नयन जैसे क्षेत्रों में 9877.95 करोड़ रुपये की 14 बाहरी वित्त पोषित परियोजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं. इन परियोजनाओं के तहत राज्य को भारत सरकार से 90:10 के अनुपात में ऋण प्राप्त हो रहे हैं.
इन परियोजनाओं में एशियन विकास बैंक(एडीबी) की लगभग 3723 करोड़ रुपये की चार परियोजनाएं, विश्व बैंक की 3062 करोड़ रुपये की पांच परियोजनाएं, एएफडी की 862 करोड़ रुपये की एक परियोजना, जाइका की 1,121 करोड़ रुपये की दो परियोजनाएं और के.एफ.डब्ल्यू की 1,110 करोड़ रुपये की परियोजनाएं शामिल हैं.
बाहरी वित्त पोषित परियोजनाओं में ऋण के अलावा इन संस्थाओं की शर्तें भी प्रदेश सरकार के लिए हमेशा परेशानी का कारण रही हैं. जब भी किसी बाहरी संस्था से प्रदेश सरकार को ऋण मिलता है तो उस संस्था की शर्तें भी साथ ही लागू करनी आवश्यक होती हैं. ये संस्थाएं कार्य विशेष के लिए ऋण उपलब्ध करवाती हैं. इस ऋण का प्रयोग प्रदेश सरकार किसी अन्य विकासात्मक कार्य के प्रयोग नहीं कर सकती. इसके अलावा भी अनेक प्रकार की शर्तें इन संस्थाओं द्वारा लगाई जाती हैं. जिनकी पालना करना प्रदेश सरकार लिए अति आवश्यक होता है. ऐसा कई बार हुआ है, जब प्रदेश सरकार द्वारा शर्तें पूरी नहीं होने पर ऋण देने वाली संस्थाओं ने अपने हाथ पीछे खींच लिए हों, लेकिन फिर भी प्रदेश में विकासात्मक कार्यों के लिए लगातार ऋण लिया जा रहा है.
बाहरी संस्थाओं से लिए गए ऋण से प्रदेश में अनेक परियोजनाओं पर कार्य हो रहा है. इन परियोजनाओं में 4,060 करोड़ रुपये की तीन परियोजनाएं ऊर्जा क्षेत्र, 1,808 करोड़ रुपये की तीन परियोजनाएं वानिकी क्षेत्र और 1061 करोड़ रुपये की दो परियोजनाएं बागवानी क्षेत्र में क्रियान्वित की गई हैं. इसके अलावा, सार्वजनिक क्षेत्र के लिए लगभग 800 करोड़ रुपये की एक परियोजना, पर्यटन क्षेत्र के 583 करोड़ रुपये, कौशल उन्नयन क्षेत्र में 650 करोड़, वित्त क्षेत्र में 315 करोड़ रुपये और कृषि क्षेत्र में 321 करोड़ रुपये की परियोजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं.
वन विभाग के लिए विश्व बैंक द्वारा 700 करोड़ रुपये की एकीकृत विकास परियोजना (आईडीपी) वित्त पोषित की जा रही है. इस परियोजना को 11 मार्च, 2020 को पांच वर्ष के लिए स्त्रोत सस्टेनेबिलिटी और जलवायु आधारित कृषि तथा कृषि उत्पादन में सुधार एवं मूल्य संवर्द्धन के लिए हस्ताक्षरित किया गया है. इससे राज्य की विभिन्न ग्राम पंचायतों में जल प्रबन्धन में सुधार और कृषि जल उत्पादन क्षमता में सुधार होगा.
10 जिलों में परियोजनाएं कियान्वित
यह परियोजना प्रदेश के 10 जिलों शिमला, ऊना, कांगड़ा, बिलासपुर, हमीरपुर, चंबा, मंडी, कुल्लू, सोलन और सिरमौर की 428 चयनित पंचायतों में क्रियान्वित की जा रही हैं. प्रदेश सरकार द्वारा इस परियोजना के तहत अब तक 1928.93 लाख रुपये खर्च किए गए हैं और 1543.15 लाख रुपये विश्व बैंक को मुआवजे के लिए भेजे गए थे, जिसमें से 1540.77 लाख रुपये राज्य को वापिस मिल चुके हैं.
भारत-जापान के सहयोग से ओडीए ऋण समझौते के तहत जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी और भारत सरकार के मध्य एक परियोजना लागू की गई है. इसे प्रदेश फसल विविधिकरण संवर्द्धन योजना (एचपीसीडीपी-जाईका) के नाम से लागू किया जा रहा है. राज्य में फसल विविधिकरण को बढ़ावा देने में सफल साबित हो रही है. इस परियोजना का उद्देश्य परियोजना क्षेत्र में पर्यावरणीय और सतत् सामाजिक आर्थिक विकास में योगदान करते हुए वन क्षेत्र पारिस्थितिकी तंत्र में वृद्धि और प्रबंधन करना है.
यह परियोजना जैव विविधता और जल स्त्रोतों के संरक्षण, भू-क्षरण रोकने और स्थानीय समुदाय को स्थायी वैकल्पिक आजीविका स्थापित करने के लिए आवश्यक समर्थन के साथ पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार की दिशा में सहयोग कर रही है. इस परियोजना की पूर्ण अनुमानित लागत 800 करोड़ है. जिसका 80 प्रतिशत यानी 640 करोड़ रुपये जापान द्वारा और 20 प्रतिशत यानि 160 करोड़ रुपये हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा प्रदान किये जा रहे हैं.
640 करोड़ रुपये का 90 प्रतिशत भारत सरकार द्वारा हिमाचल सरकार को अनुदान के रूप में प्रदान किया जाएगा. यह परियोजना बिलासपुर, शिमला, मंडी, कुल्लू, किन्नौर और लाहौल-स्पीति सहित छह जिलों में अप्रैल, 2018 से 2028 तक 10 वर्षों के लिए तीन चरणों में क्रियान्वित की जा रही है. इन जिलों के 7 वन वृत्त (5 क्षेत्रीय, 2 वन्य प्राणी), 18 वन प्रभाग, 61 वन क्षेत्र, 400 ग्राम वन विकास सोसायटी (वीएफडीएस), 60 जैव विविधता प्रबन्धन उप-समितियां, 920 स्वयं सहायता समूह शामिल हैं. हाल ही में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने राज्य में जाइका परियोजना के अंतर्गत वानिकी और अन्य गतिविधियों तक पहुंच स्थापित करने के लिए जाइका परियोजना की वेबसाइट का शुभारंभ किया.
नाबार्ड की सहायता से भी प्रदेश में अनेक विकास कार्य
नाबार्ड के तहत स्वीकृत 8 योजनाओं पर लगभग 32 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं. नाबार्ड द्वारा वित्त पोषित योजनाओं के लिए इस वर्ष 5 करोड़ रुपये बजट का प्रावधान किया गया है. 6 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत की 5 सिंचाई योजनाएं भी स्वीकृत हुई है. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में 3 योजनाएं चल रही हैं, जिनमें से 2 योजनाएं पूरी हो चुकी हैं तथा एक का कार्य गति पर है. इन योजनाओं पर 4 करोड़ 90 लाख रुपये खर्च किए जा रहे हैं.
प्रदेश सरकार द्वारा पोषित 7 योजनाएं क्रियान्वित हैं, जिनकी अनुमानित लागत 2 करोड़ 24 लाख रुपये है. शहरी क्षेत्र की एक योजना पूर्ण हो चुकी है, जिस पर 19 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. नगर परिषद रामपुर के तहत वार्ड नंबर 8 और 9 ढकोलर और खनेरी के लिए 17 करोड़ रुपये की सीवरेज योजना का कार्य युद्ध स्तर पर जारी है. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत 8 प्रस्ताव केंद्र सरकार को स्वीकृति के लिए भेजे गए हैं, जिनकी अनुमानित लागत 77 करोड़ रुपये है.
नाबार्ड से वित्त पोषित योजनाओं की चर्चा करते हुए जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का प्रदेश को जल जीवन मिशन के अन्तर्गत उदार वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के प्रयासों से संभव हो पाया है. उन्होंने कहा कि जल जीवन मिशन के अन्तर्गत चल रही हर घर नल से जल योजना में प्रदेश ने गत दो वर्षों के दौरान सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर देश भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया है. जल जीवन मिशन के अन्तर्गत चालू वित्त वर्ष के दौरान राज्य को केन्द्र सरकार ने 1262.79 करोड़ रुपये की धनराशि स्वीकृत की है, जिसमें से 315.70 करोड़ की पहली किश्त मिल चुकी है.
2.26 लाख घरों में नल लगाए जाने प्रस्तावित
जल शक्ति मंत्री ने कहा कि जल जीवन मिशन के अन्तर्गत चालू वित्त वर्ष में 880 योजनाओं को पूरा किया जाना है और 2.26 लाख घरों में नल लगाए जाने प्रस्तावित हैं. चालू वित्त वर्ष के दौरान प्रदेश के लिए स्वीकृत 1262.79 करोड़ रुपये की वार्षिक योजना में चार गुणा वृद्धि हुई है. जल शक्ति मंत्री ने नवगठित पंचायतों में भी नल लगाने पर विशेष बल दिया तथा कहा कि वर्ष के लिए निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास किए जाने चाहिए ताकि इस वर्ष के अन्त तक लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके.
उन्होंने कहा कि जल जीवन मिशन को पर्यटन के साथ जोड़ने के प्रयास किए जाने चाहिए और राज्य के प्रवेशद्वारों के अतिरिक्त मनाली, शिमला, डलहौजी, धर्मशाला तथा कसौली आदि प्रमुख पर्यटन स्थलों में चिन्हित जगहों पर इस मिशन को दर्शाने वाली जानकारी पर आधारित बैकग्राउंड के साथ नल लगाए जाने चाहिए. जहां पर बाहर से आने वाले पर्यटकों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध हो सके.
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