करसोग: हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है. प्रदेश के लोगों की देवी देवताओं पर अटूट आस्था है. यही कारण है कि सदियों से देवी देवताओं पर बना लोगों का विश्वास आज के आधुनिक दौर में भी कायम है. उपमंडल करसोग में ऐसा ही आस्था का एक मंदिर मूलं माहूंनाग है. राजा कर्ण का अवतार माने गए माहूंनाग के मंदिर में महाभारत काल से अखंड धूना जल रहा है.
लोगों की आस्था ने आज भी कभी धुना को बूझने नहीं दिया है. सदियों से दिन-रात जल रहे इस धुने से कभी राख बाहर नहीं निकली है. मंदिर के पुजारी के अनुसार देवताओं के राक्षसों का नाश करने के बाद यहां मंदिर परिसर में एक पेड़ पर आसमानी बिजली गिरी थी. उसी समय से ये अखंड धूना जलता आ रहा है. ये धूना कभी राख से नहीं भरता है. यही नहीं ये राख भी चमत्कार से कम नहीं है.
रोगों का नाश करने वाली इस राख को देश सहित प्रदेश के कोने-कोने से आने वाले श्रद्धालु अपने साथ भी लेकर जाते हैं. धुने की राख को मंदिर के मुख्यद्वार के सामने में एक थाली पर रखा गया है, जहां से श्रद्धालु माहूंनाग देवता के दर्शन करने के बाद राख का माथे पर तिलक लगाकर कागज की पुड़िया में डालकर साथ भी ले जाते हैं.
प्रसिद्ध मूल माहूंनाग मंदिर करसोग से 33 किलोमीटर और शिमला से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर चारों ओर खूबसूरत पहाड़ों से घिरे माहूंनाग की चोटी पर स्थित है. लकड़ी और पत्थर से निर्मित इस खूबसूरत मंदिर के चारों और सेब के बगीचें हैं. मंदिर के लिए शिमला-करसोग मार्ग पर खीलकुफरी नामक स्थान से एक संपर्क मार्ग निकाला गया है. खूबसूरत जंगल के बीच से गुजरने वाले इस सड़क मार्ग के माध्यम से श्रद्धालु सीधे मुख्य मंदिर तक पहुंचते हैं.
वहीं, मूल माहूंनाग मंदिर के पुजारी लीलाधर शर्मा ने बताया कि अखंड धूना महाभारत काल से निरंतर जला है. देवताओं ने जब राक्षसों नाश किया था तो यहां एक पेड़ पर आसमानी बिजली गिरी थी. तब से इस धुने को अखंड रखा गया है.
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