कुल्लू: ढालपुर के मैदान में जहां अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव की तैयारियां की जा रही हैं तो वहीं, देवी-देवताओं ने भी अपने मंदिरों से प्रस्थान करना शुरू कर दिया है. ताकि दशहरा उत्सव में जिला कुल्लू के देवी-देवता साल के बाद मिलन कर सकें. ऐसे में सभी देवी-देवताओं की उपस्थिति इस दशहरा उत्सव को खास बनाती हैं. लेकिन कुछ देवी-देवता ऐसे भी ही जिनका इस देव उत्सव में होना आवश्यक है. ऐसा ही एक नाम है माता हिडिंबा.
आखिर माता हिडिंबा है कौन: माता हिडिंबा राजपरिवार की कुलदेवी हैं और (who is hidimba devi) राजपरिवार उन्हें आज भी दादी के नाम से संबोधित करता है. अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव (International Kullu Dussehra) में माता हिडिंबा की अहम भूमिका रहती है. माता को राजघराने की दादी कहा जाता है. कुल्लू दशहरा देवी हिडिंबा के आगमन से शुरू होता है. पहले दिन देवी हिडिंबा का रथ कुल्लू के राजमहल में प्रवेश करता है और यहां माता की पूजा के बाद रघुनाथ भगवान को भी ढालपुर में लाया जाता है. माता अगले सात दिन तक अपने अस्थायी शिविर में ही रहती हैं और लंका दहन के बाद ही अपने देवालय लौटती हैं.
माता हिडिंबा के बिना कुल्लू दशहरा अधूरा: माता हिडिंबा की उपस्थिति दशहरे में अति आवश्यक है. माता के रामशिला के हनुमान मंदिर पहुंचने पर रघुनाथ की छड़ी उनको सम्मानपूर्वक लाने के लिए जाती है. इसके बाद माता का राजमहल में प्रवेश होता है. राजपरिवार के लोग सभी परंपराओं का निर्वहन करने के बाद ही देवी के दर्शन करते हैं. इसके साथ ही दशहरा उत्सव का आगाज होता है. मोहल्ले के दिन भी माता को लाने के लिए रघुनाथ की छड़ी आती है. इसके बाद मोहल्ला किया जाता है.
माता हिडिंबा ही करती हैं दशहरे की शुरुआत और समापन: लंका दहन के लिए होने वाली रथयात्रा में माता का रथ सबसे आगे चलता है. आगे चलकर माता हिडिंबा पूरा देव महाकुंभ को बखूबी संपन्न करती हैं. इसके साथ लंकाबेकर में माता को अष्टांग बलि दी जाती है. अष्टांग बलि के समय माता हिडिंबा का गूर, पुजारी घंटी धड़च्छ के साथ जाते हैं. जबकि माता का रथ कुछ दूरी पर रहता है लेकिन जैसे ही बलि की प्रथा पूरी हो जाती है. माता का रथ स्वत: ही पीछे मुड़कर देवालय की ओर लौट जाता है. इसके साथ ही दशहरा उत्सव का समापन हो जाता है. माता हिडिंबा की उपस्थिति के बिना दशहरा उत्सव अधूरा है. देवी दशहरे की शुरूआत से लेकर समापन करती हैं. राजपरिवार सुख शांति के लिए अष्टांग बलि देता है. बलि की प्रथा संपन्न होते ही माता देवालय की ओर रवाना हो जाती है.
'राजघराने की दादी हैं माता हिडिंबा': देव समाज के प्रतिनिधियों के अनुसार माता हिडिंबा ने किसी समय में राज परिवार के पहले राजा विहंगमणि पाल को एक वृद्धा के भेष में दर्शन दिए थे. जानकारी के अनुसार वृद्धा को जब राजा विहंगमणि पाल ने उसके गंतव्य तक पहुंचाया. तो वृद्धा के रूप में माता ने उसे कहा था कि जहां तक उसकी नजर जाती है, वहां तक की संपति उसी की है और माता ने उसे इस जनपद का राजा घोषित कर दिया था. तभी से राजा ने माता को दादी के रूप में पूजना आरंभ कर दिया था. कहा जाता है कि यहां की पूरी संपत्ति माता हिडिंबा की है. इसी कारण से आज भी राजवंश के लोग दादी कहकर पुकारते हैं.
दशहरा उत्सव में होता है विशेष स्वागत: राजा जगत सिंह ने माता के दैविक वचनों का अनुसरण करते हुए ही 16वीं शताब्दी में कुल्लू दशहरा की परंपराओं का आगाज किया था. इसके चलते आज भी माता की पूजा और उनके कुल्लू में पहुंचने से पहले दशहरा की प्रक्रियाओं को आरंभ नहीं किया जाता. माता हिडिंबा का यहां पहुंचने पर जोरदार स्वागत किया जाता है. जिला मुख्यालय के रामशिला में राजा का एक सेवक चांदी की छड़ी लेकर जाता है और पारंपरिक तरीके से माता का अभिवादन कर रघुनाथ के दरबार और फिर राजा के बेहड़े में पहुंचाता है. दशहरा उत्सव में दौरान सभी मेहमान देवताओं में माता हिडिंबा को भी पहली श्रेणी में रखा जाता है.
पांडवों से जुड़ी है माता हिडिंबा की कहानी: महाभारत की कथाओं के अनुसार (hidimba devi story) जब पांडव अज्ञातवास पर थे तो वे हिमालय के इलाकों में पहुंचे तो यहां पर हिडिंब राक्षस का राज था. राक्षस हिडिंब ने अपनी बहन हिडिंबा को जंगल में भोजन की तलाश करने के लिये भेजा. वहां हिडिंबा ने पांचों पांडवों सहित उनकी माता कुंती को देखा. इस दौरान हिडिंबा ने (hidimba devi history) जब भीम को देखा तो उसे भीम से प्रेम हो गया. जिस कारण हिडिंबा ने उन सभी को नहीं मारा, और ये बात राक्षस हिडिंब को बहुत बुरी लगी. फिर क्रोधित होकर हिडिंब ने पांडवों पर हमला किया. हिडिंब और भीम में काफी देर तक जमकर युद्ध हुआ. इस युद्ध में भीम ने हिडिंब को मार डाला.
इस तरह हुआ भीम और हिडिंबा का विवाह: हिडिंबा भीम को चाहती थी. उसने भीम को शादी करने के लिए कहा, लेकिन भीम ने विवाह करने से मना कर दिया. इस पर माता कुंती ने भीम को समझाया कि इसका इस दुनिया (hidimba devi husband) में अब और कोई नहीं है. इसलिए तुम हिडिंबा से विवाह कर लो. कुंती की आज्ञा से हिडिंबा एवं भीम दोनों का विवाह हुआ. इन्हें घटोत्कच नामक पुत्र हुआ जिसने महाभारत की लड़ाई में अत्यंत वीरता दिखाई थी. उसे भगवान श्रीकृष्ण से इंद्रजाल का वरदान प्राप्त था और उसके चक्रव्यूह को सिर्फ और सिर्फ खुद भगवान श्रीकृष्ण ही तोड़ सकते थे.
मनाली में है माता हिडिंबा का मंदिर: पाण्डुपुत्र भीम से विवाह करने के बाद हिडिंबा राक्षसी नहीं रही और वह मानवी बन गई. कालांतर में मानवी हिडिंबा ने मां दुर्गा की आराधना की और देवी के आशीर्वाद से वो देवी बन गई. हिडिंबा का मूल स्थान चाहे कोई भी रहा हो पर जिस स्थान पर उसका दैवीकरण हुआ है वह मनाली ही है. पर्यटन नगरी मनाली में देवी हिडिंबा का मंदिर (Hidimba Devi Temple Manali) बहुत भव्य और कला की दृषिट से बहुत उतकृष्ठ है.
हिडिंबा को ढूंगरी देवी भी कहते हैं: मंदिर के भीतर एक प्राकृतिक चट्टान है जिसके नीचे देवी का स्थान माना जाता है. चट्टान को स्थानीय बोली में 'ढूंग कहते हैं इसलिए देवी को 'ढूंगरी देवी कहा जाता है. देवी को ग्राम देवी के रूप में भी पूजा जाता है. यह मंदिर मनाली के निकट विशालकाय देवदार वृक्षों के मध्य चार छतों वाला पैगोड़ा शैली का है. मंदिर का निर्माण कुल्लू के शासक बहादुर सिंह (1546-1569 ई.) ने 1553 में करवाया था. दीवारें परंपरागत पहाड़ी शैली में बनी हैं. प्रवेश द्वार पर लकड़ी की नक्काशी का उत्कृष्ट नमूना है.
कुल्लू दशहरा में आते हैं सैकड़ों देवी-देवता: दशहरा उत्सव में जिला प्रशासन के द्वारा 332 देवी-देवताओं को आमंत्रण दिया गया हैं. हर साल 300 के करीब देवी-देवता इसमें भाग लेते हैं. कोरोना संकट में भी 7 देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया था. जिसमें माता हिडिंबा, बिजली महादेव, देवता ब्रह्मा, सहित अन्य देवता शामिल हुए थे.