ज्वालामुखी/कांगड़ा: जिला कांगड़ा के ज्वालामुखी उपमंडल के दूरदराज पंचायत घरना के ग्रामीण लुप्त हो चुकी ऐतिहासिक धरोहर को सहेजने का कार्य कर रहे हैं. इस पंचायत में करीब 400 साल पहले पत्थर और चुने से बना एक ऐतिहासिक पुल आज भी इस गांव में सुरक्षित है.
लॉकडाउन के दौरान स्थानीय लोगों ने इस ऐतिहासिक धरोहर की साफ-सफाई की और इसे पुरानी रौनक में वापस लेकर आए. ग्रामीणों ने बताया कि ऐसा ही एक अन्य पुल थोड़ी दूरी पर ही मौजूद है, लेकिन वहां जाने तक का रास्ता नहीं है.
दुर्ग खड्ड पर बना यह पुल पत्थरों की नक्काशी व पुरातन संस्कृति की झलक दिखलाता है. ग्रामीणों ने बताया कि इस पुल को सड़क से जोड़ने के लिए दो किलोमीटर रास्ते का निर्माण भी किया जा रहा है. रास्ते को बनाने के लिए गांववासी और पंचायत सहयोग कर रही है. उन्होंने बताया कि जल्द ही यह रास्ता बनकर तैयार हो जाएगा.
वहीं, ग्रामीणों ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि इस ऐतिहासिक धरोहर को सहेजने का कार्य किया जाए ताकि इस पुरातन धरोहर के अंश सदा के लिए इतिहास के गवाह बने रहें और आने वाली पीढियां भी इसे याद रख सकें.
स्थानीय ग्रामीण संजय राणा, होशियार सिंह, विनोद कुमार, नरेंद्र सिंह, रिशु, उत्तम चंद, बिचित्र सिंह ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान लोगों ने पुल की साफ-सफाई का जिम्मा उठाया. साथ ही पंचायत से श्मशान को जाने के लिए रास्ता नहीं था. अब लॉकडाउन में सभी लोगों ने मिलकर श्मशान तक रास्ते के निर्माण और पुल को भी इसी रास्ते से जोड़ने का कार्य किया जा रहा है.
16वीं शताब्दी में राजा ने अपनी बेटी के लिए बनवाया था पुल
घरना पंचायत के निवासी पूर्व बीडीसी सदस्य संजय राणा ने जानकारी देते हुए बताया कि 16वीं शताव्दी के लम्बागांव जयसिंहपुर के राजा की बेटी की शादी जिला कांगड़ा के हरिपुर में राजघराने के राजकुमार से हुई थी.
बरसात के दिनों में नदी नाले उफान पर रहते थे और खड्ड आर-पार कर जाना मुश्किल होता था, तब राजा ने इस पुल का निर्माण करवाया था ताकि राजकुमारी को आने-जाने में कोई परेशानी न हो. उन्होंने कहा कि आज भी यह पुल ऐसे ही टिका हुआ है और कुछ साल पहले इसे थोड़ी मरम्मत की जरूरत थी जो कि पंचायत स्तर पर करवाई गई थी. आज भी बरसात के दिनों में पानी इस पुल के ऊपर से गुजर जाता है, लेकिन पुल आज भी सुरक्षित है.
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