धर्मशाला: दीपावली में मिट्टी के दीयों का अपना ही महत्व रहता है. यह कहना गलत न होगा कि दीपावली कुम्हार के बनाए दीयों से ही दमकती है. वर्तमान दौर में यह कला धीरे-धीरे पीछे छूटती जा रही है, बावजूद इसके आज भी कुम्हार समुदाय के कुछ लोग मिट्टी के दीये बनाने की कला को संजोए हुए हैं.
रैत ब्लॉक की राजोल पंचायत के कुम्हार मदन लाल आज भी इस कला को संजोए हुए हैं. उनके साथ उनका बेटा अनिल कुमार भी इस कला को आगे बढ़ा रहा है. मदन लाल आर्मी और पैरामिल्ट्री से सेवानिवृत्त हैं और मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते हैं. इन दिनों मदन लाल और उनका बेटा दीपावली के लिए दीपक बनाने में व्यस्त हैं. इस काम में परिवार की महिलाएं भी सहयोग करती हैं.
मदन लाल ने बताया कि मिट्टी के बर्तन सीजन अनुसार बनाए जाते हैं. गर्मियों में मटके और घड़े बनाए जाते हैं. वहीं, करवा चौथ और दीपावली के लिए अलग से काम होता है. दीपावली के लिए दीपक बना रहे मदन लाल ने बताया कि दीपावली के सीजन में वह 20 से 25 हजार दीपक बेच लेते हैं और इससे कमाई भी अच्छी हो जाती है. उनका कहना है कि युवाओं को भी इस कला को सीखना चाहिए.
मदन लाल के पुत्र अनिल कुमार का कहना है कि उन्होंने अपने पिता से मिट्टी के दीपक बनाने की कला सीखी है. वह भी मिट्टी के दीये बनाते हैं. उनका कहना है कि जरूरी नहीं कि कुम्हार समुदाय के लोग ही इस कला को सीखें. वर्तमान में कई लोग मिट्टी से बनी चीजों को खरीदना चाहते हैं, ऐसे में सीजन अनुरूप दीपक, घड़े और मटके के अतिरिक्त हूनर हो तो मिट्टी की आकर्षक कृतियां भी बनाई जा सकती हैं. वहीं, स्थानीय लोगों ने कहा कि वह इस बार दिवाली पर मिट्टी के दीये खरीदेंगे जिससे लोगों को रोजगार मिल सकेगा. वहीं, आत्मनिर्भर भारत को भी बढ़ावा मिलेगा.
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