बिलासपुर: आज शारदीय नवरात्रि का पांचवां दिन (Shardiya Navratri 2022) है. आज मां स्कंदमाता की आराधना की जाती है. ऐसे में हिमाचल प्रदेश के विश्वविख्यात शक्तिपीठों में शारदीय नवरात्रि के पावन मौके पर श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ (Shardiya Navratri Celebration in Shri Naina Devi) है. ऐसे में ईटीवी भारत आपको विश्वविख्यात शक्तिपीठ श्री नैना देवी मंदिर के दर्शन करवाएगा. साथ ही मंदिर से जुड़ी कहानियों और चमत्कारों को बताएगा.
श्री नैना देवी मंदिर में चमत्कारी हवन कुंड: क्या आप जानते हैं कि इस कलयुग में भी विश्वविख्यात शक्तिपीठ श्री नैना देवी मंदिर से कई कहानियां और चमत्कार जुड़े हुए हैं. इन चमत्कारों में से एक है मंदिर में स्थित प्राचीन हवन कुंड. मान्यताओं के अनुसार इस हवन कुंड में जितना मर्जी हवन किया जाए सारी राख भभूति इसी के अंदर समा जाती है. हवन इसी कुंड में समाहित हो जाता है और अपने आप ही साफ हो जाता है. कहा जाता है कि किसी भी श्रद्धालु के इस हवन कुंड में माथा न टेकने पर उसकी यात्रा सफल नहीं मानी जाती (Story of Shri Naina Devi Temple) है.
सिखों के 10वें गुरु ने की थी यहां तपस्या व हवन: सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह ने भी यहां तपस्या व हवन किया था. उनकी तपस्या से खुश होकर मां भवानी ने गुरु गोबिंद सिंह को दर्शन दिए और उन्हें तलवार भेंट की. साथ ही उन्हें विजयी होने का वरदान दिया था. मां का आशीर्वाद पाकर उन्होंने मुगलों को पराजित किया था. कहा जाता है कि आनंदपुर साहिब की ओर जाने से पहले गुरु गोबिंद सिंह ने अपने तीर की नोक से तांबे की एक प्लेट पर अपने पुरोहित को हुक्मनामा लिखकर दिया, जो आज भी नैना देवी के पंडित के पास सुरक्षित है.
नैना देवी मंदिर में पवित्र ज्योत भी काफी अहम: मान्यता है कि जिस समय महिषासुर राक्षस और श्री नैना देवी के बीच युद्ध होने पर मां ने उसे वरदान दिया कि मेरे हाथों मृत्यु होने के कारण तू एक क्षण के लिए भी मेरे चरणों से अलग नहीं होगा. जहां मेरा पूजन होगा वहां पर तुम भी पूजे जाओगे. तब से यहां माता जगदंबा भी विरामजान (Story of Shri Naina Devi Temple) हैं. श्री नैना देवी मंदिर में पवित्र ज्योत को भी काफी अहम माना जाता (Shri Naina Devi Temple in Bilaspur) है. माना जाता है कि आंधी, तूफान, बारिश के दौरान अक्सर मंदिर में दिव्य ज्योतियां प्रज्वलित होती हैं. यह ज्योतियां पीपल के पत्तों, झंडों यहां तक की भक्तों की हथेलियों तक आ जाती हैं.
इस जगह पर गिरी थी सती की आंखें: बता दें कि यह स्थान एक सिद्ध पीठ के नाम से भी जाना जाता है. कथाओं के अनुसार, देवी सती ने खुद को यज्ञ में जिंदा जला दिया, जिससे भगवान शिव व्यथित हो गए. उन्होंने सती के शव को कंधे पर उठाया और तांडव नृत्य शुरू कर दिया. इससे स्वर्ग में सभी देवता भयभीत हो गए. इस पर उन्होंने भगवान विष्णु से अपने चक्र से सती के शरीर को 51 टुकड़ों में काटने का आग्रह किया. भगवान विष्णु के सती के शरीर को काटने पर उनकी आंखे इस जगह पर गिरी थी, जिसके बाद से ही यहां का नाम नैना देवी पड़ा.
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