नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को सुझाव दिया कि केंद्र को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिसमें कोविड-19 की जांच करने वाली निजी प्रयोगशालाएं जनता से मनमानी कीमत नहीं वसूलें ओर सरकार ऐसे परीक्षणों की फीस का भुगतान इन लैब को करें.
न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ को केंद्र ने सूचित किया कि पहले 118 प्रयोगशालाएं रोजाना 15,000 टेस्ट कर रही थीं लेकिन बाद में इनकी क्षमता बढ़ गई और 47 निजी प्रयोगशालाओं को भी कोविड-19 की जांच करने की अनुमति प्रदान की गई.
शीर्ष अदालत निजी लैब में कोविड-19 की जांच के लिए 4,500 रुपये की कीमत निर्धारित करने के खिलाफ अधिवक्ता शशांक देव सुधि की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस याचिका में केंद्र और दूसरे प्राधिकारियों को सभी नागरिकों की कोविड-19 की जांच नि:शुल्क कराने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था.
सुधि ने पीठ से कहा कि देश में कोविड-19 की नि:शुल्क जांच की जानी चाहिए क्योंकि यह बहुत ही महंगा है. वैसे भी लॉकडाउन की वजह से जनता पहले से ही आर्थिक परेशानियों का सामना कर रही है.
केंद्र की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि लगातार हालात बदल रहे हैं और सरकार नहीं जानती कि इस समय कितनी और प्रयोगशालाओं की जरूरत होगी और लॉकडाउन कब तक जारी रहेगा.
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इस पर पीठ ने सुझाव दिया कि केंद्र यह सुनिश्चित करे कि यह निजी प्रयोगशालाएं इस जांच की अधिक कीमत नहीं लें और सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिसमें इन जांच की राशि का बाद में भुगतान करे.
मेहता ने कहा कि इस बारे में उन्हें निर्देश प्राप्त करने होंगे. इस पर पीठ ने कहा कि वह इस संबंध में आदेश पारित करेगी.
देश में कोरोना वायरस संक्रमण से संदिग्ध मरीजों और इसकी चपेट में आकर जान गंवाने वालों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर इस याचिका में कोविड-19 की जांच की सुविधाओं को बढ़ाने के बारे में सरकार और दूसरे प्राधिकारियों को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.
याचिका में कहा गया है कि आम आदमी के लिए सरकारी अस्पतालों और प्रयोगशालाओं में यह जांच कराना बहुत ही मुश्किल है और इसका कोई विकल्प नहीं होने की वजह से वह निजी अस्पतालों और निजी लैब में यह जांच कराने और इसके लिये 4,500 रुपये जैसी मोटी रकम खर्च करने के लिए बाध्य हैं.
सुधि ने याचिका में दलील दी है कि कोविड-19 की निजी लैब में जांच के लिए 4,500 रुपये कीमत निर्धारित करने की 17 मार्च का सरकार का परामर्श मनमाना और अनुचित है तथा इससे संविधान के अनुच्छेद 14 में प्रदत्त समता के मौलिक अधिकार का हनन होता है.