नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वह जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय की किशोर न्याय समिति की उस रिपोर्ट से संतुष्ट है, जिसमें कहा गया है कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद राज्य की जेलों में किसी भी नाबालिग को हिरासत में नहीं लिया गया है.
कोर्ट ने कहा कि उच्च न्यायालय के चार न्यायाधीशों ने जम्मू-कश्मीर की सभी जेलों का दौरा किया और उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि वहां किसी भी नाबालिग को अवैध रूप से हिरासत में नहीं लिया गया है.
न्यायमूर्ति एन वी रमन की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने कहा कि अगर अदालत अपने ही न्यायाधीशों पर विश्वास नहीं करती है तो यह उचित नहीं होगा.
पीठ ने यह टिप्पणी उस समय की है, जब याचिकाकर्ता एनाक्षी गांगुली की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने आरोप लगाया कि अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म किए जाने के बाद नाबालिगों को सुरक्षा बलों द्वारा हिरासत में लिया गया है.
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उन्होंने जोर दिया कि उन्हें समिति की रिपोर्ट पर जवाब देने के लिए समय दिया जाना चाहिए.
बता दें कि अदालत ने गत 5 नवंबर को अध्यक्ष जस्टिस अली मोहम्मद माग्रे की अध्यक्षता में चार सदस्यीय जुवेनाइल जस्टिस का गठन किया था. कोर्ट ने समिति से सुरक्षा बलों द्वारा नाबालिगों को हिरासत में रखने के आरोपों की जांच कर जल्द से जल्द रिपोर्ट सौंपने को कहा था.
जांच के दौरान पाया गया कि जम्मू कश्मीर पुलिस निदेशक ने 25 सितंबर को एक रिपोर्ट दायर की थी, जिसमें उन्होंने मीडिया और याचिका में लगाए गए आरोपों का खंडन किया था.
समिति की रिपोर्ट में अतिरिक्त डीजीपी द्वारा एकत्र किए गए साक्ष्य भी शामिल हैं, जो कश्मीर में किशोरों की अवैध हिरासत के आरोपों से इनकार करते हैं.
अहमदी ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि केंद्र द्वारा संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के बाद राज्य में 144 किशोरियों को हिरासत में लिया गया था, लेकिन 142 नाबालिगों को छोड़ दिया गया था. शेष दो को बाल सुधार गृह में भेज दिया गया.