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एमआरएनए वैक्सीन जनित प्रतिरक्षा भविष्य में देती है ज्यादा सुरक्षा

हाल ही में हुए एक अध्ययन में सामने आया है कि एम.आर.एन.ए वैक्सीन से शरीर में उत्पन्न होने वाली प्रतिरक्षा, संक्रमण से ठीक होने के दौरान दवाइयों के चलते उत्पन्न होने वाली प्रतिरक्षा से बेहतर सुरक्षा देती है.

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एम.आर.एन.ए वैक्सीन
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Published : Nov 8, 2021, 7:16 PM IST

पहली बार संक्रमणग्रस्त होने के बाद शरीर में तैयार हुई प्रतिरक्षा (immunity) के मुकाबले कोविड-19 'एमआरएनए' (mRNA) के टीके से उत्पन्न प्रतिरक्षा दोबारा संक्रमण होने को रोकने में लगभग 5 गुना अधिक प्रभावी होती है. हाल ही में हुए एक अध्ययन में संक्रमण के दौरान शरीर में बढ़ी प्रतिरक्षा के स्तर की तुलना कोविड-19 के टीके लगने के बाद शरीर में उत्पन्न हुई प्रतिरक्षा से की गई थी.

वैक्सीन प्रेरित बनाम संक्रमण प्रेरित प्रतिरक्षा पर अध्धयन

कोविड-19 से बचाव के लिए दुनिया में अलग-अलग कंपनियों की वैक्सीन लगाई जा रही है, लेकिन आज भी लोगों के मन में उठता है कि क्या कोविड-19 संक्रमण का शिकार होने तथा उससे ठीक होने के बाद भी लोगों को वैक्सीन लगवाने की आवश्यकता है? ऐसा माना जाता है कि कोविड-19 के इलाज के दौरान दी जाने वाली दवाइयों के चलते पीड़ित के शरीर में प्राकृतिक रूप से प्रतिरक्षा का निर्माण होने लगता है. इसी संशय को संबोधित करते हुए रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी/CDC) के इस अध्ययन में वैक्सीन प्रेरित बनाम संक्रमण प्रेरित प्रतिरक्षा के मुद्दे को अध्ययन का विषय बनाया गया था. इसके चलते सीडीसी के विजन नेटवर्क के शोधकर्ताओं ने 9 राज्यों के 187 अस्पतालों से डाटा एकत्र किया. जिनमें न्यूयॉर्क, मिनेसोटा, विस्कंसिन, यूटा, कैलिफोर्निया, ऑरेगन, वाशिंगटन, इंडियाना और कोलोराडो शामिल थे.

गौरतलब है कि इन राज्यों में जनवरी से सितंबर 2021 के बीच अस्पतालों में कोविड-19 जैसे संक्रमण के चलते 2,00,000 से अधिक मामले दाखिल हुए थे. इस अध्ययन में 18 वर्ष तथा उससे अधिक आयु वाले उन लोगों को शामिल किया गया था, जिन्हें या तो 3 से 6 महीने पूर्व टीका लगाया गया था, या फिर जो 3 से 6 महीने पहले कोविड-19 संक्रमण से पीड़ित थे. अध्धयन में 6,328, ऐसे लोग जिनका पूरी तरह से टीकाकरण हो चुका था और 1,020 लोग जिनका टीकाकरण नहीं हुआ था, को विषय बनाया गया था. शोध के नतीजों में पाया गया था कि ऐसे व्यस्क जिन्हें 90 से 179 दिन पहले संक्रमण हुआ था, उनमें संक्रमण होने के उपरांत शरीर में उत्पन्न होने वाली प्रतिरक्षा के मुकाबले, उन लोगों में प्रतिरक्षा का स्तर ज्यादा देखा गया जिन्हें 90 से 179 दिन पहले वैक्सीन लगाई गई थी.

अध्ययन लेखकों ने शोध में कुछ समय पूर्व इजरायल में हुए एक अध्ययन का भी उल्लेख किया था, जिसमें कहा गया था कि शरीर में प्राकृतिक रूप से तैयार प्रतिरक्षा, वैक्सीन से उत्पन्न होने वाली प्रतिरक्षा के मुकाबले ज्यादा लंबे समय तक और मजबूत सुरक्षा प्रदान करती है. जिस पर विजन शोधकर्ताओं का कहना था कि यह भिन्नता दो अध्ययनों के तरीकों में अंतर और टीकाकरण के समय पर प्रतिबंधों से संबंधित हो सकती है, क्योंकि इजराइली अध्ययन में केवल 6 महीने पहले हुए टीकाकरण के मामलों की जांच की गई थी, जबकि इस अध्धयन में 3-6 महीने पहले अपना वैक्सीन लगवा चुके लोगों को शामिल किया गया था. इस अध्ययन के अंत में सभी पात्र व्यक्तियों को जल्द से जल्द कोविड-19 के खिलाफ टीका लगवाने की बात कही गई है.

ज्यादा शोध की आवश्यकता

हालांकि इस शोध में शोधकर्ताओं ने यह भी माना है कि इस अध्ययन की सीमाएं सीमित है क्योंकि इनमें केवल कोविड-19 एम.आर.एन.ए टीकों का आंकलन किया गया है, जबकि दुनियाभर में अलग-अलग कोनों में कई अन्य कंपनियों के टीके भी लोगों को लगाए गए हैं. ऐसे में इस विषय पर ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए ज्यादा शोध की आवश्यकता है.

पढ़ें: एरोसोल से कोविड-19 की तरह फैलता है टीबी: अध्ययन

पहली बार संक्रमणग्रस्त होने के बाद शरीर में तैयार हुई प्रतिरक्षा (immunity) के मुकाबले कोविड-19 'एमआरएनए' (mRNA) के टीके से उत्पन्न प्रतिरक्षा दोबारा संक्रमण होने को रोकने में लगभग 5 गुना अधिक प्रभावी होती है. हाल ही में हुए एक अध्ययन में संक्रमण के दौरान शरीर में बढ़ी प्रतिरक्षा के स्तर की तुलना कोविड-19 के टीके लगने के बाद शरीर में उत्पन्न हुई प्रतिरक्षा से की गई थी.

वैक्सीन प्रेरित बनाम संक्रमण प्रेरित प्रतिरक्षा पर अध्धयन

कोविड-19 से बचाव के लिए दुनिया में अलग-अलग कंपनियों की वैक्सीन लगाई जा रही है, लेकिन आज भी लोगों के मन में उठता है कि क्या कोविड-19 संक्रमण का शिकार होने तथा उससे ठीक होने के बाद भी लोगों को वैक्सीन लगवाने की आवश्यकता है? ऐसा माना जाता है कि कोविड-19 के इलाज के दौरान दी जाने वाली दवाइयों के चलते पीड़ित के शरीर में प्राकृतिक रूप से प्रतिरक्षा का निर्माण होने लगता है. इसी संशय को संबोधित करते हुए रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी/CDC) के इस अध्ययन में वैक्सीन प्रेरित बनाम संक्रमण प्रेरित प्रतिरक्षा के मुद्दे को अध्ययन का विषय बनाया गया था. इसके चलते सीडीसी के विजन नेटवर्क के शोधकर्ताओं ने 9 राज्यों के 187 अस्पतालों से डाटा एकत्र किया. जिनमें न्यूयॉर्क, मिनेसोटा, विस्कंसिन, यूटा, कैलिफोर्निया, ऑरेगन, वाशिंगटन, इंडियाना और कोलोराडो शामिल थे.

गौरतलब है कि इन राज्यों में जनवरी से सितंबर 2021 के बीच अस्पतालों में कोविड-19 जैसे संक्रमण के चलते 2,00,000 से अधिक मामले दाखिल हुए थे. इस अध्ययन में 18 वर्ष तथा उससे अधिक आयु वाले उन लोगों को शामिल किया गया था, जिन्हें या तो 3 से 6 महीने पूर्व टीका लगाया गया था, या फिर जो 3 से 6 महीने पहले कोविड-19 संक्रमण से पीड़ित थे. अध्धयन में 6,328, ऐसे लोग जिनका पूरी तरह से टीकाकरण हो चुका था और 1,020 लोग जिनका टीकाकरण नहीं हुआ था, को विषय बनाया गया था. शोध के नतीजों में पाया गया था कि ऐसे व्यस्क जिन्हें 90 से 179 दिन पहले संक्रमण हुआ था, उनमें संक्रमण होने के उपरांत शरीर में उत्पन्न होने वाली प्रतिरक्षा के मुकाबले, उन लोगों में प्रतिरक्षा का स्तर ज्यादा देखा गया जिन्हें 90 से 179 दिन पहले वैक्सीन लगाई गई थी.

अध्ययन लेखकों ने शोध में कुछ समय पूर्व इजरायल में हुए एक अध्ययन का भी उल्लेख किया था, जिसमें कहा गया था कि शरीर में प्राकृतिक रूप से तैयार प्रतिरक्षा, वैक्सीन से उत्पन्न होने वाली प्रतिरक्षा के मुकाबले ज्यादा लंबे समय तक और मजबूत सुरक्षा प्रदान करती है. जिस पर विजन शोधकर्ताओं का कहना था कि यह भिन्नता दो अध्ययनों के तरीकों में अंतर और टीकाकरण के समय पर प्रतिबंधों से संबंधित हो सकती है, क्योंकि इजराइली अध्ययन में केवल 6 महीने पहले हुए टीकाकरण के मामलों की जांच की गई थी, जबकि इस अध्धयन में 3-6 महीने पहले अपना वैक्सीन लगवा चुके लोगों को शामिल किया गया था. इस अध्ययन के अंत में सभी पात्र व्यक्तियों को जल्द से जल्द कोविड-19 के खिलाफ टीका लगवाने की बात कही गई है.

ज्यादा शोध की आवश्यकता

हालांकि इस शोध में शोधकर्ताओं ने यह भी माना है कि इस अध्ययन की सीमाएं सीमित है क्योंकि इनमें केवल कोविड-19 एम.आर.एन.ए टीकों का आंकलन किया गया है, जबकि दुनियाभर में अलग-अलग कोनों में कई अन्य कंपनियों के टीके भी लोगों को लगाए गए हैं. ऐसे में इस विषय पर ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए ज्यादा शोध की आवश्यकता है.

पढ़ें: एरोसोल से कोविड-19 की तरह फैलता है टीबी: अध्ययन

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