यमुनानगर: हरियाणा के यमुनानगर जिले के बिलासपुर में लगने वाले कपालमोचन को लेकर तैयारियां तेज हो गई हैं. तीनों सरोवरों में साफ सफाई का काम शुरु हो चुका है. इस बार मेले में करीब 10 लाख श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है. उत्तर भारत में लगने वाला सबसे बड़ा प्रसिद्ध मेला कपालमोचन की तारीख नजदीक आ गई है. 4 नवंबर से चलने वाला ये मेला 8 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर समाप्त होगा. लेकिन इसकी तैयारियां अभी से जोरों शोरों से जारी है. बिलासपुर के एसडीएम ने बताया कि इस बार मेले को खास बनाने के लिए प्रशासन की तरफ से तैयारियां तेज कर दी गई हैं.
यमुनानगर के कपाल मोचन का इतिहास: कुछ लोग ही कपाल मोचन का पूरा इतिहास (Kapal Mochan Mela in Yamunanagar) और इसकी मान्याओं के बारे में जानते हों. कपालमोचन के इतिहास के बारे में बात करें तो ये हिंदुओं और सिखों दोनों के लिए तीर्थ यात्रा का एक प्राचीन स्थान है. इसका महत्व इस तथ्य से स्पष्ट है कि इसका नाम महाभारत और पुराणों में कई जगहों पर प्रकट होता है. कपाल मोचन को तीनों पौराणिक संसारों में प्रसिद्ध माना जाता है. बताया जाता है कि सिखों के दसवें गुरू गोबिंद सिंह पौंटा साहिब के भंगानी से युद्ध से लौटते समय यहां करीब 60 दिन ठहरे और यहां शस्त्र भी धोए. कहा तो ये भी जाता है कि द्रौपदी और पांचों पांडव भी यहां आए थे.
लाखों की संख्या में आते हैं श्रद्धालु: कपालमोचन मेले में ना (International Kapal mochan fair) सिर्फ उत्तर भारत से लोग यहां आते हैं बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु इस पवित्र जगह के गवाह बनते हैं. हालांकि बीते 2 साल कोरोना के चलते इस मेले में रौनक नहीं लौटी जो पहले होती थी. इस बार उम्मीद है कि करीब 8 से 10 लाख श्रद्धालु इस मेले में स्नान करने आएंगे. इसी उम्मीद पर खरा उतरने के लिए प्रशासन दिन रात तैयारियों में जुटा है.
कपालमोचन तीर्थस्थल पर तीन सरोवर: बिलासपुर में मौजूद इस तीर्थस्थल पर तीन सरोवर हैं. इनमें सबसे पहले कपाल मोचन सरोवर में स्नान किया जाता है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन जब चंद्रमा की किरणें सायं काल के समय तालाब के पानी पर पड़ती है तो उसके बाद स्नान की महत्ता बढ़ जाती है. मान्यता के अनुसार सबसे पहले कपाल मोचन तीर्थ पर गौ माता मंदिर के पास स्नान करना शुभ माना जाता है. यहां पर स्नान करने के बाद गाय के कान में अपनी मन्नत मांगने वालों की हर इच्छा पूरी होती है.
सतयुग के समय का है कपाल मोचन तीर्थ: पुजारी ने बताया कि यह कपाल मोचन तीर्थ सतयुग के समय का है और यहां सभी 33 कोटि देवी-देवता आ चुके हैं. यह स्थान ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति के लिए प्रसिद्ध है, क्योंकि यहीं भगवान शिव ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त हुए थे. कपाल मोचन तीर्थ पर दूसरा स्नान ऋण मोचन सरोवर में करने की मान्यता है. बताया जाता है कि इस सरोवर में स्नान करने से सभी ऋणों से मुक्ति मिल जाती है. जहां देवी देवता भी ऋण से मुक्त होने के लिए स्नान करने पहुंचे. मान्यता है कि तालाब में दूध और दक्षिणा डालकर स्नान करने से सभी ऋणों से मुक्ति मिल जाती है.
यहीं भगवान श्रीकृष्ण बजाते थे बांसुरी: तीसरा और अंतिम स्नान सूरजकुंड सरोवर में किया जाता है. यहां पर लोग स्नान करने के बाद वस्त्र यहीं छोड़ जाते हैं. यहां एक कदम का पेड़ है, जिसकी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण इस पेड़ के नीचे बैठकर बांसुरी बजाया करते थे. यहां राधा कृष्ण का मंदिर भी है, जिसको लेकर मान्यता है कि यहां पर कोई भी मन्नत मांगने पर पूरी हो जाती है. यहां सबसे ज्यादा पुत्र प्राप्ति के लिए लोग मन्नत मांगने पहुंचते हैं और सूरज कुंड सरोवर में स्नान करते हैं. कपाल मोचन मेला शुरू होने से पहले ही श्रद्धालुओं ने यहां पहुंचना शुरू कर दिया है. श्रद्धालुओं ने बताया कि यहां हर साल विभिन्न प्रांतों के लाखों लोग आस्था की डुबकी लगाने पहुंचते हैं और अपनी मन्नत मांगने और पूरी होने के बाद यहां स्नान करते हैं.