रोहतक: भारतीय अंडर-19 महिला क्रिकेट टीम का हिस्सा रही रोहतक के गांव ब्राह्मणवास की सोनिया का गुरूवार को यहां पहुंचने पर जोरदार स्वागत किया गया. एयरपोर्ट से मकड़ौली टोल प्लाजा पहुंची इस क्रिकेट खिलाड़ी के स्वागत के लिए भारी संख्या में ग्रामीण मौजूद रहे. गांव वाले विजय जुलूस के साथ सोनिया को ब्राह्मणवास गांव के मंदिर में आयोजित समारोह स्थल तक लेकर पहुंचे.
दरअसल भारतीय अंडर-19 महिला क्रिकेट टीम ने हाल ही में वर्ल्ड कप का खिताब हासिल किया है. इस टीम की अगुवाई बतौर कप्तान रोहतक की शेफाली वर्मा ने की थी. हालांकि सोनिया को फाइनल मुकाबले में खेलने का मौका नहीं मिला, लेकिन वह भारतीय टीम का हिस्सा रहीं और पवेलियन में बैठकर ही टीम की हौसला अफजाई की. इस मुकाम तक पहुंचने के लिए सोनिया ने कड़ी मेहनत की है.
भारतीय टीम के वर्ल्ड कप जीतने के साथ ही ब्राह्मणवास गांव में जश्न का माहौल बना हुआ है. ग्रामीण अपनी इस होनहार बेटी के देश लौटने का इंतजार कर रहे थे. गुरुवार को सोनिया जब लौटी तो ग्रामीणों ने आतिशबाजी के साथ जोरदार स्वागत किया. विजय जुलूस के दौरान रास्ते में किसी ने नोटों की माला पहनाई तो किसी ने चित्र भेंट किए.
सोनिया का संघर्ष: आईसीसी वर्ल्ड कप जीतकर इतिहास रचने वाली भारतीय अंडर-19 महिला क्रिकेट टीम का हिस्सा रही रोहतक के ब्राह्मणवास गांव की सोनिया ने 13 साल की उम्र से ही क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था. यह उसका क्रिकेट के प्रति जुनून ही था कि वह रोजाना गांव से करीब 11 किलोमीटर दूर एक निजी क्रिकेट अकादमी में प्रैक्टिस के लिए जाती थी. सोनिया जिस समय 4 साल की थी पिता राजपाल की मौत हो गई थी. ऐसे में सोनिया ने गांव में फसल कटाई में भी अक्सर मां की मदद करती रहीं. सोनिया की मां सरोज गांव के ही आंगनबाड़ी केंद्र में हेल्पर है.
भारतीय अंडर-19 महिला क्रिकेट टीम के वर्ल्ड कप चैंपियन बनने के बाद से सोनिया पूरी तरह से उत्साह में है. भारतीय टीम का हिस्सा बनने तक की उसकी कहानी संघर्ष और जुनून से भरी हुई है. सोनिया का जन्म 20 मई 2004 को रोहतक के ब्राह्मणवास गांव में राजपाल और सरोज के घर हुआ. सोनिया के अलावा उसकी 2 और बहन व एक भाई है. पिता गांव में ही मेहनत मजदूरी कर परिवार का पालन पोषण कर रहे थे. जिस समय सोनिया की उम्र 4 साल की थी, तब राजपाल की मौत हो गई. ऐसे में परिवार की सारी जिम्मेदारी सरोज पर आ गई. बाद में सरोज ने अपने बच्चों का पालन पोषण करने के लिए गांव के ही आंगनबाड़ी केंद्र में हेल्पर के तौर पर काम करना शुरू किया.
मां सरोज के मुताबिक दो बेटी होने के बाद जब वह गर्भवती थी तो सोचती थी कि बेटा हो जाए. लेकिन बेटी सोनिया का जन्म हुआ. जन्म पर थोड़ी उदास भी हुई, लेकिन समय बीतने के बाद वह सबसे लाडली बेटी बन गई. इसके बाद सरोज ने एक बेटे को भी जन्म दिया. सरोज ने बताया कि जब वह आंगनबाड़ी केंद्र में हेल्पर के तौर पर काम करती थीं तो सोनिया को साथ ले जाती थीं. आंगनबाड़ी केंद्र में वह अन्य बच्चों के साथ प्लास्टिक के बैट के साथ और घर आने पर कपड़े धोने वाली लकड़ी की थापी से गली के बच्चों के साथ खेलती थी.
थोड़ी बड़ी हुई तो उसकी क्रिकेट में जबरदस्त रूचि पैदा हो गई. वह जिद करने लग गई कि उसे क्रिकेटर ही बनना है. सरोज ने शुरुआत में मना किया, लेकिन बेटी की जिद के आगे वह हार गई. सोनिया के क्रिकेटर बनने का सपना पूरा करने के लिए मां सरोज ने मजदूरी की. सोनिया ने भी इसमें हाथ बंटवाया. खुद का खर्च निकालने व मां का हाथ बंटाने के लिए सोनिया ने गांव के लोगों के खेतों में फसल की कटाई भी की. फिर 13 साल की उम्र से ही वह रोहतक शहर में एक निजी क्रिकेट अकादमी में प्रेक्टिस करने के लिए जाने लगी. इसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा.