ETV Bharat / state

विशेष रिपोर्ट: सड़क किनारे बदहाली में जी रहे इन बुनकरों की विनती सुन लो सरकार! - सरकार से मांग

कभी हाथ से बने सामान की कीमत होती थी, लेकिन समय बदला तो कला की कीमत को भी ग्रहण लगने लगा. हालात ये हैं कि घरों की शान बढ़ाने के लिए बांस से चटाइयां, मोढ़ा, कुर्सियां बनाने वाले कारीगरों को दो वक्त की रोटी का डर सताने लगा है.

सड़क किनारे बदहाली में जी रहे इन बुनकरों की विनती सुन लो सरकार!
author img

By

Published : Jun 19, 2019, 12:12 AM IST

Updated : Jun 19, 2019, 1:43 AM IST

पानीपत: जीटी रोड किनारे 35 बुनकर परिवार यूपी के कासगंज, एटा, बदायूं, बरेली से यहां आकर चटाई बनाने का काम करते हैं. इनमें से कुछ परिवार तो दशकों से यहां रह रहे हैं. कुछ को तो यहां की नागरिकता मिल गई है. यह परिवार बांस से चटाई, मेज, कुर्सी, झोपड़ी, छाता जैसी चीजों को बुनकर कर अपना गुजारा कर रहे हैं. अपने हाथों की कटाई छटाई करने के बाद चटाई तैयार करते हैं, लेकिन इसके एवज में जो मजदूरी मिलती है वह मजदूरी बहुत कम है.

इन परिवारों का कहना है कि एक चटाई पर हमारी लागत 1500 से 1600 रुपए आती है. वहीं चटाई मार्केट में 2000 की बिकती है. जिसमें में 300 -400 का लाभ होता है. इसको बनाने में 2 दिन बीत जाते हैं पूरा परिवार इसको बनाने में लगा रहता है यह काम सीजनेबल टाइम पर ही होता है. उसके बाद भी हम खाली हो जाते हैं. इस काम में किसी भी प्रकार की सरकारी मदद नहीं मिलती, हम अपने पूर्वजों के साथ-साथ शुरू से यह काम करते आ रहे हैं.

पानीपत में चटाई बनाने वाले कारीगर बदहाली में जी रहे हैं, देखिए वीडियो

गुजर बसर करें तो कैसे ?
इन मजदूरों का कहना है कि इसके अलावा हमें और किसी काम का अनुभव नहीं है. हमारी सरकार से मांग है कि इस काम को बढ़ावा देने के लिए हमारी आर्थिक सहायता की जाए, ताकि हम अपने छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ा सके और अपने घर परिवार का गुजारा कर सकें.

नहीं मिलता किसी योजना का लाभ
प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत बुनकरों के लिए नई नई योजनाएं शुरू की गई है. इन परिवारों को कभी इन योजनाओं का लाभ नहीं मिलता. दो समय की रोटी कमाने के लिए इनको काफी मेहनत और मशक्कत करनी पड़ती है. अगर इन परिवारों की सुध नहीं ली गई. तो बांस द्वारा निर्मित होने वाली वस्तुओं की दस्तकारी भी समाप्त हो जाएगी, इसलिए सरकार को चाहिए कि इन बुनकर परिवारों की मदद करें.

पानीपत: जीटी रोड किनारे 35 बुनकर परिवार यूपी के कासगंज, एटा, बदायूं, बरेली से यहां आकर चटाई बनाने का काम करते हैं. इनमें से कुछ परिवार तो दशकों से यहां रह रहे हैं. कुछ को तो यहां की नागरिकता मिल गई है. यह परिवार बांस से चटाई, मेज, कुर्सी, झोपड़ी, छाता जैसी चीजों को बुनकर कर अपना गुजारा कर रहे हैं. अपने हाथों की कटाई छटाई करने के बाद चटाई तैयार करते हैं, लेकिन इसके एवज में जो मजदूरी मिलती है वह मजदूरी बहुत कम है.

इन परिवारों का कहना है कि एक चटाई पर हमारी लागत 1500 से 1600 रुपए आती है. वहीं चटाई मार्केट में 2000 की बिकती है. जिसमें में 300 -400 का लाभ होता है. इसको बनाने में 2 दिन बीत जाते हैं पूरा परिवार इसको बनाने में लगा रहता है यह काम सीजनेबल टाइम पर ही होता है. उसके बाद भी हम खाली हो जाते हैं. इस काम में किसी भी प्रकार की सरकारी मदद नहीं मिलती, हम अपने पूर्वजों के साथ-साथ शुरू से यह काम करते आ रहे हैं.

पानीपत में चटाई बनाने वाले कारीगर बदहाली में जी रहे हैं, देखिए वीडियो

गुजर बसर करें तो कैसे ?
इन मजदूरों का कहना है कि इसके अलावा हमें और किसी काम का अनुभव नहीं है. हमारी सरकार से मांग है कि इस काम को बढ़ावा देने के लिए हमारी आर्थिक सहायता की जाए, ताकि हम अपने छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ा सके और अपने घर परिवार का गुजारा कर सकें.

नहीं मिलता किसी योजना का लाभ
प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत बुनकरों के लिए नई नई योजनाएं शुरू की गई है. इन परिवारों को कभी इन योजनाओं का लाभ नहीं मिलता. दो समय की रोटी कमाने के लिए इनको काफी मेहनत और मशक्कत करनी पड़ती है. अगर इन परिवारों की सुध नहीं ली गई. तो बांस द्वारा निर्मित होने वाली वस्तुओं की दस्तकारी भी समाप्त हो जाएगी, इसलिए सरकार को चाहिए कि इन बुनकर परिवारों की मदद करें.

Intro:
एंकर -- कभी हाथ से बने सामान की कीमत होती थी समय बदला तो कला की कीमत को भी लगने लगा ग्रहण ,दिन रात रोड के किनारे बैठकर घरो की शान बढ़ाने के लिए बांस से चटाइयां ,झॉडिया व् कुर्शी व् अन्य समान बनाने वाले कारीगरों को अब सताने लगा हे रोटी का डर ,पुस्तैनी काम के इलावा नहीं जानते और कोई काम ,सरकार से उम्मीद हे की कोई निकले रास्ता।

Body:वीओ - पानीपत में जीटी रोड किनारे 35 बुनकर परिवार यूपी के कासगंज .एटा. बदायूं बरेली. से यहां आकर चटाई का काम करते हैं इनमें से कुछ लोगों को यहां की नागरिकता मिल गई है यह परिवार बांस से चटाई. मेज. कुर्सी. झोपड़ी. छाता इत्यादि को बुनकर कर अपना गुजारा कर रहे हैं अपने हाथों द्वारा कटाई छटाई करने के बाद रेशम के धागों से चटाई को तैयार किया जाता है इसके साथ साथ जिसकी एवज में जो मजदूरी मिलती है वह मजदूरी बहुत कम है परिवारों का कहना है कि एक चटाई पर हमारी लागत 1500 से 1600 रुपए आती है जबकि वहीं चटाई मार्केट में 2000 की बिकती है जिसमें में 300 -400 का लाभ होता है इसको बनाने की प्रक्रिया में 2 दिन बीत जाते हैं पूरा परिवार इसको बनाने में लगा रहता है यह काम सीजनेबल टाइम पर ही होता है उसके बाद हम खाली हो जाते हैं इस काम में किसी भी प्रकार की सरकारी मदद नहीं मिलती ,हम अपने पूर्वजों के साथ साथ शुरू से यह काम करते आ रहे हैं इसके अलावा हमें और काम का अनुभव नहीं है हमारी सरकार से मांग है कि इस काम को बढ़ावा देने के लिए हमारी आर्थिक सहायता की जाए ताकि हम अपने छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ा सके और अपने घर परिवार का गुजारा कर सकें, जो कि प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत बुनकरों के लिए नई नई योजनाएं शुरू की गई है पर इन परिवारों को कभी इन योजनाओं का लाभ नहीं मिलता दो समय की रोटी कमाने के लिए इनको काफी मेहनत और मशक्कत करनी पड़ती है , अगर इन परिवारों की सुध नहीं ली गई तो बांस द्वारा निर्मित होने वाली वस्तुओं की दस्तकारी भी समाप्त हो जाएगी ,इसलिए सरकार को चाहिए कि इन बुनकर परिवारों की मदद करें।

Conclusion:बाईट -- रेनू,ममता , चटाई बुनकर
बाईट -- सुभाष ,रामु ,चटाई बुनकर
बाईट -- विष्णु ,चटाई बुनकर
Last Updated : Jun 19, 2019, 1:43 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.