पानीपत: जीटी रोड किनारे 35 बुनकर परिवार यूपी के कासगंज, एटा, बदायूं, बरेली से यहां आकर चटाई बनाने का काम करते हैं. इनमें से कुछ परिवार तो दशकों से यहां रह रहे हैं. कुछ को तो यहां की नागरिकता मिल गई है. यह परिवार बांस से चटाई, मेज, कुर्सी, झोपड़ी, छाता जैसी चीजों को बुनकर कर अपना गुजारा कर रहे हैं. अपने हाथों की कटाई छटाई करने के बाद चटाई तैयार करते हैं, लेकिन इसके एवज में जो मजदूरी मिलती है वह मजदूरी बहुत कम है.
इन परिवारों का कहना है कि एक चटाई पर हमारी लागत 1500 से 1600 रुपए आती है. वहीं चटाई मार्केट में 2000 की बिकती है. जिसमें में 300 -400 का लाभ होता है. इसको बनाने में 2 दिन बीत जाते हैं पूरा परिवार इसको बनाने में लगा रहता है यह काम सीजनेबल टाइम पर ही होता है. उसके बाद भी हम खाली हो जाते हैं. इस काम में किसी भी प्रकार की सरकारी मदद नहीं मिलती, हम अपने पूर्वजों के साथ-साथ शुरू से यह काम करते आ रहे हैं.
गुजर बसर करें तो कैसे ?
इन मजदूरों का कहना है कि इसके अलावा हमें और किसी काम का अनुभव नहीं है. हमारी सरकार से मांग है कि इस काम को बढ़ावा देने के लिए हमारी आर्थिक सहायता की जाए, ताकि हम अपने छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ा सके और अपने घर परिवार का गुजारा कर सकें.
नहीं मिलता किसी योजना का लाभ
प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत बुनकरों के लिए नई नई योजनाएं शुरू की गई है. इन परिवारों को कभी इन योजनाओं का लाभ नहीं मिलता. दो समय की रोटी कमाने के लिए इनको काफी मेहनत और मशक्कत करनी पड़ती है. अगर इन परिवारों की सुध नहीं ली गई. तो बांस द्वारा निर्मित होने वाली वस्तुओं की दस्तकारी भी समाप्त हो जाएगी, इसलिए सरकार को चाहिए कि इन बुनकर परिवारों की मदद करें.