पानीपत: इतिहास के पन्नों पर आज भी कुछ ऐसे किस्से और कहानियां मौजूद हैं, जिसे लोग आज भी अनजान हैं. आज हम आपको ऐसे ही एक किस्से से रूबरू करवा रहे हैं. जिसका इतिहास वर्षों पुराना है. हम बात कर रहे हैं, पानीपत की बाबरी मस्जिद (Babri Masjid of Panipat) की. विश्व विख्यात अयोध्या में बाबरी मस्जिद विवाद के चलते मशहूर जरूर हो गई, लेकिन असल में बाबरी मस्जिद पानीपत के कुटानी रोड पर स्थित है. इसे पानीपत की काबुली बाग मस्जिद के नाम से जाना जाता है.
बताया जा रहा है 1527 में मुगलों से युद्ध के दौरान बाबर ने इस मस्जिद का निर्माण करवाया था. जब युद्ध चल रहा था तो अचानक बाबर की पत्नी काबुली का देहांत हो गया. जिसे इसी मस्जिद में दफना दिया गया. युद्ध समाप्त होने के बाद फिर काबुली के शव को निकाल कर ईरान ले जाकर दफनाया गया. इसके लगभग 2 साल बाद अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया गया. इतिहासकार रमेश पुहाल बताते हैं कि इस मस्जिद का नाम पहले बाबरी मस्जिद हुआ करता था.
जब बाबर की पत्नी का देहांत हुआ तो उसी के नाम से ही इस मस्जिद का नाम काबुली वाली मस्जिद (Kabuli Bagh Mosque of Panipat) के नाम से रखा गया. इस मस्जिद के अंदर जहां काबुली को दफनाया गया था. वहां मकबरा बनाया गया है. जो आज भी मौजूद है. कबूली वाली मस्जिद के निर्माण के बाद युद्ध में मारे गए योद्धा इब्राहिम लोधी का भी मकबरा यहीं 1527 ईस्वी में बनाया था. ये ऐतिहासिक मकबरा और इमारत आज भी मौजूद हैं. पर अनदेखी के अभाव में इनकी हालत जर्जर हो चुकी है.
इतिहासकार रमेश कुमार बताते हैं कि 1526 ईस्वी में इब्राहिम लोदी और बाबर के बीच युद्ध हुआ. बाबर ने इस युद्ध में इब्राहिम लोदी को पराजित कर जीत की खुशी में इस मस्जिद का निर्माण करवाया. इसमें सभी लोग पहले नमाज अदा करने के लिए आया करते थे. कुछ समय पश्चात जब बाबर की पत्नी का निधन हुआ तो उसे इसी इमारत के अंदर दफना दिया गया और इस मस्जिद का नाम अपनी पत्नी के नाम से रख दिया. तभी से इसे काबुली मस्जिद के नाम से जाना जाने लगा.
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