पानीपत: औद्योगिक इकाइयों और घरेलू उपयोग में आने वाली जल की बड़ी मात्रा को दूषित जल के रूप में नदियों में बहा दिया जाता है. ऐसा करना ना सिर्फ नदियों के लिए बल्कि हमारे पर्यावरण के लिए भी हानिकारक होता है, इसलिए गंदे पानी को सीवरेज प्लांट में ट्रीट कर नदियों में डाला जाता है.
पानीपत में हैं 4 सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट
अगर बात पानीपत की करें तो यहां भी 4 सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के जरिए गंदे पानी को ट्रीट किया जा रहा है. बता दें कि 'औद्योगिक नगरी' पानीपत में लगभग चार हजार के करीब छोटी बड़ी औद्योगिक इकाइयां हैं. यहां प्रवासी मजदूरों की भी संख्या लगभग चार लाख के करीब है. ऐसे में औद्योगिक नगरी होने के कारण पानी की खपत भी पानीपत में ज्यादा है.
हर रोज 50 लाख लीटर पानी होता है साफ
पानीपत में रोजाना 50 लाख लीटर पानी सीवरेज से निकलता है और इस पानी को दोबारा प्रयोग में लाने के लिए चार एसटीपी प्लांट लगाए गए हैं. दो प्लांट शिवा गांव के अंदर लगाए गए हैं और दो प्लांट जाटल गांव के अंदर लगाए गए हैं. इन चारों प्लांट की कैपेसिटी रोजाना 50 लाख लीटर पानी को साफ करने की है.
कितना दुरुस्त है सीवरेज सिस्टम?
पानीपत में सीवरेज सिस्टम कितना दुरुस्त है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हल्की सी बारिश होने पर सड़कों पर पानी ही पानी नजर आता है. दरअसल, सीवरेज के लिए जो पाइप लाइन दबाई गई हैं, उसकी कैपेसिटी कम है और रोजाना निकलने वाले पानी की कैपेसिटी ज्यादा है. ऐसे में अगर बरसात हो जाती है तो शहर जलमग्न हो जाता है.
पानीपत के सीनियर डिप्टी मेयर दुष्यंत भट्ट ने कहा कि पानीपत के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर ज्यादातर में सीवरेज व्यवस्था दुरुस्त नहीं है. सीवरेज के लिए डाली गई पाइप लाइनों की कैपेसिटी भी कम है और धीरे-धीरे इस व्यवस्था को दुरुस्त करने में सरकार और प्रशासन कार्य भी कर रहे हैं.
दुष्यंत भट्ट ने बताया कि दो एसटीपी प्लांट के पानी का ट्रीटमेंट करके ड्रेन नंबर एक में छोड़ा जाता है और इसके अलावा ड्रेन नंबर 1 में 120 से 140 प्वॉइंट ऐसे हैं. जहां से कॉलोनियों का पानी निकल कर ड्रेन में मिलता है और फिर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट तक पहुंचता है. उसके बाद वॉटर ट्रीटमेंट होने के बाद दोबारा इसे यमुना लिंक नहर में छोड़ा जाता है.
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उन्होंने कहा कि भविष्य में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट से निकलने वाले पानी को यहां के डाई हाउस को दिया जाएगा, ताकि भूमिगत जल को बचाया जा सके. पानीपत पहले से ही डार्क जोन में है. अगर ऐसे में इन डाई हाउस को भूमिगत पानी दिया जाता है तो पानीपत में पानी की किल्लत और भी ज्यादा बढ़ सकती है, इसलिए डाई हाउस के लिए बनी गई इकाइयों को जल्द ही इन वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट से जोड़ा जाएगा ताकि पानीपत को पानी की किल्लत से ना जूझना पड़े.
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