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'समझौता एक्सप्रेस विस्फोट के पीड़ितों को न्याय का इंतजार'

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Published : Feb 18, 2022, 6:59 AM IST

Updated : Feb 18, 2022, 7:22 AM IST

15 साल पहले 18 फरवरी को दिल्ली से लाहौर जाने वाली ट्रेन में हुए विस्फोट (Samjhauta Express blast) में 68 यात्रियों की मौत हो गई थी, जिसमें 40 से अधिक पाकिस्तानी नागरिक भी शामिल थे. मारे गए सभी लोगों को पानीपत के ही मेहराणा गांव में स्थित कब्रिस्तान में दफनाया गया था.

Samjhauta Express blast
Samjhauta Express blast

पानीपत: 18 फरवरी 2007 की रात ग्यारह बजे भारत पाकिस्तान के बीच सप्ताह में 2 दिन चलने वाली समझौता में बड़ा (Samjhauta Express blast) धमाका हो गया था. इस ब्लास्ट में दो बोगियों में सवार 68 लोगों की मौत हो गई थी और 12 घायल हो गए थे. यहां धमाका पानीपत जिले के दीवाना स्टेशन के पास हुआ था.

पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार यह धमाका दिल्ली से चलने के 80 किलोमीटर बाद दीवाना रेलवे स्टेशन पर हुआ था. धमाके में ट्रेन के जनरल कोच में आग लग गई थी. एसआईटी जांच के दौरान घटनास्थल से पुलिस को दो सूट केस में बम मिले थे जो कि जिंदा बम थे. बाद में बम निरोधक दस्ते ने उन्हें डिफ्यूज किया था. मारे गए सभी लोगों को पानीपत के मेहराणा गांव के ही स्थित कब्रिस्तान में दफनाया गया था. शवों की इतनी बुरी हालत हो चुकी थी कि उनकी पहचान करना भी मुश्किल था. डीएनए रिपोर्ट के आधार पर क्लेम करने वाले लोगों का डीएनए मैच कर शिनाख्त की गई थी.

समझौता एक्सप्रेस विस्फोट के पीड़ितों को न्याय का इंतजार

आज भी 19 लोग ऐसे दफन है जिनकी आज तक कोई शिनाख्त नहीं हो पाई. इस मामले में असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजेंद्र चौधरी को गिरफ्तार किया गया था. परंतु मामले के 12 साल बाद चारों को कोर्ट से रिहा कर दिया गया था. इस मामले में कुल 8 आरोपी थे जिनमें से एक की मौत हो चुकी थी. जबकि 3 को भगोड़ा घोषित किया जा चुका था और बाद में पकड़े गए चारों आरोपियों को पंचकूला कोर्ट ने बरी कर दिया था. अधिवक्ता मोमिन मलिक ने बताया कि मारे गए 68 लोगों में 19 लोग आज भी ऐसे है जिनकी कोई पहचान नहीं हो सकी है.

ये भी पढ़ें- दिल्ली पहुंची समझौता एक्सप्रेस, सुनिए ट्रेन में बैठे यात्रियों की आपबीती

बॉडी के शिनाख्त के लिए कुछ लोग पाकिस्तान से आए थे. जिन्होंने दावा किया था कि वह उनके परिजन है. लेकिन डीएनए मैच ना होने के कारण उनकी भी पहचान ना हो सकी. वरिष्ठ पत्रकार ललित शर्मा ने बताया कि शुरुआत में कुछ शवों की पहचान उनके कपड़े आभूषणों से की गयी थी. उनमे से कुछ के डीएनए रिपोर्ट मैच कर लिया गया था. इनमें से कुछ लोग ऐसे दफन है जिनकी कोई पहचान नहीं हो पाई. मारे गए सभी लोगों के पासपोर्ट जरूरी कागजात चेक किए गए परंतु कोई भी सुराग और आज तक हाथ नहीं लग पाया है. अधिवक्ता मोमिन मलिक बताते हैं कि भारत सरकार द्वारा मारे गए लोगों के मृत्यु प्रमाण पत्र अभी तक भी जारी नहीं किए गए.

Inside Story Of Samjhauta Express
कैसे हुआ था समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट

कैसे शुरू हुई समझौता एक्सप्रेस -

भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता एक्सप्रेस ट्रेन की शुरुआत शिमला समझौते के बाद 22 जुलाई 1976 को हुई थी. तब यह ट्रेन अमृतसर और लाहौर के बीच 52 किलोमीटर का सफर रोजाना किया करती थी. 1980 के दशक में पंजाब में फैली अशांति को लेकर सुरक्षा की वजहों से भारतीय रेल ने इस सेवा को अटारी स्टेशन तक सीमित कर दिया गया. जहां यात्रियों को कस्टम और इमिग्रेशन की मंजूरी ली जाती है. जब यह सेवा शुरू हुई थी तब दोनों देशों के बीच ट्रेन रोजाना चला करती थी जिसे 1994 में सप्ताह में दो बार में तब्दील कर दिया गया था.

Inside Story Of Samjhauta Express
समझौता एक्सप्रेस धमाके के बाद एसआईटी टीम का गठन

कैसे हुआ था समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट -

बात दें कि 18 फरवरी 2007 को भारत-पाक के बीच सप्ताह में दो दिन चलने वाली ट्रेन संख्या 4001 अप अटारी समझौता एक्सप्रेस में दो आईईडी धमाके हुए. जिसमें 68 लोगों की मौत हो गई थी. ट्रेन उस दिन दिल्ली से लाहौर जा रही थी. ब्लास्ट में जाने वालों में ज़्यादातर पाकिस्तानी मूल के नागरिक थे.यह हादसा रात 11.53 बजे दिल्ली से करीब 80 किलोमीटर दूर पानीपत के दिवाना रेलवे स्टेशन के पास हुआ था. धमाकों की वजह से ट्रेन में आग लग गई थी. इसमें महिलाओं और बच्चों समेत कुल 68 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 12 लोग घायल हो गए थे. धमाके के दो दिनों बाद पाकिस्तान तब के विदेश मंत्री खुर्शीद अहमद कसूरी भारत आने वाले थे. इस घटना की दोनों देशो ने कड़ी निंदा की थी लेकिन इस कारण कसूरी का भारत दौरा रद्द नहीं हुआ.

ये भी पढ़ें- 'समझौता एक्सप्रेस के नहीं चलने की खबर से अटक गई थी सांस', सुनिए परिजनों का दर्द

19 फरवरी को जीआरपी/एसआईटी हरियाणा पुलिस ने मामले को दर्ज किया. करीब ढाई साल के बाद इस घटना की जांच का ज़िम्मा 29 जुलाई 2010 को राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए को सौंपा गया. हरियाणा पुलिस ने धमाके के बाद इसी ट्रेन के अन्य डिब्बे से 14 बोतलें, एक पाइप, एक डिजिटल टाइमर, सूटकेस का कवर और बम से लैस दो सूटकेस बरामद किये थे. इनमें से एक को डिफ्यूज कर दिया गया जबकि दूसरे बम को नष्ट किया गया. शुरुआती जांच में यह पता चला कि ये सूटकेस मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित कोठारी मार्केट में अभिनंदन बैग सेंटर के बने थे. जिसे अभियुक्त ने 14 फ़रवरी 2007 को ख़रीदा था. यानी कि हमले से ठीक चार दिन पहले. हरियाणा पुलिस और एनआईए की जांच में यह भी पता चला कि जिन लोगों ने हमला किया वो देश के विभिन्न मंदिरों पर हुए चरमपंथी हमलों से भड़के हुए थे.

Inside Story Of Samjhauta Express
समझौता एक्सप्रेस विस्फोट

धमाके के बाद एसआईटी टीम का गठन -

केंद्र सरकार ने समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट में जांच के लिए स्पेशल एसआईटी टीम का गठन किया गया. जांच के दौरान यह भी पाया गया कि नब कुमार सरकार उर्फ स्वामी असीमानंद, सुनील जोशी उर्फ मनोज उर्फ गुरु जी, रामचंद्र कलसांगरा उर्फ रामजी उर्फ विष्णु पटेल, संदीप दांगे उर्फ टीचर, लोकेश शर्मा उर्फ अजय उर्फ कालू, कमल चौहान, रमेश वेंकट महालकर उर्फ अमित हकला उर्फ प्रिंस ने अन्य लोगों के साथ मिलकर इस ब्लास्ट को अंजाम दिया था. एसआईटी टीम ने इंदौर, देवास (मध्य प्रदेश), गुजरात, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, जम्मू के कुछ शहरों में आगे और भी विस्तार से जांच की गई. पूरे देश में बड़ी संख्या में लोगों से पूछताछ की गई. जिसमे पता चला कि राजिंदर चौधरी और कमल चौहान ने दिसंबर 2006 के आस-पास पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन की रेकी की थी. एसआईटी टीम ने इस ब्लास्ट का मास्टरमाइंड स्वामी असीमानंद को बताया था.

ये भी पढ़ें- 43 भारतीय और 41 पाकिस्तानी नागरिकों को लेकर दिल्ली पहुंची समझौता एक्सप्रेस

अगस्त 2014 को समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट केस में अभियुक्त स्वामी असीमानंद को ज़मानत मिल गई. कोर्ट में जांच एजेंसी एनआईए असीमानंद के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत नहीं दे पाई. उन्हें सीबीआई ने 2010 में उत्तराखंड के हरिद्वार से गिरफ़्तार किया गया था. उन पर वर्ष 2006 से 2008 के बीच भारत में कई जगहों पर हुए सीरियल बम धमाकों को अंजाम देने से संबंधित होने का आरोप था. असीमानंद के ख़िलाफ़ मुक़दमा उनके इक़बालिया बयान के आधार पर बना था लेकिन बाद में वहां अपने दिए गए बयान से मुकर गए और एसआईटी टीम पर आरोप लगाया कि बयान टॉर्चर की वजह से दिया था. 16 अप्रैल 2018 को नबकुमार सरकार उर्फ़ स्वामी असीमानंद को एनआईए की विशेष अदालत ने 2007 के मक्का मस्जिद विस्फोट मामले में दोषमुक्त करार दिया. उन्हें पहले ही 2007 के अजमेर दरगाह विस्फोट मामले में दोषमुक्त करार दिया जा चुका है. 14 मार्च 2019 को स्वामी असीमानंद को सबूतों के आभाव में उन्हें इस केस से रिहा कर दिया गया.

Inside Story Of Samjhauta Express
कौन है स्वामी असीमानंद

कौन है स्वामी असीमानंद -

असीमानंद का जन्म पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में हुआ था उनके पिता देश के स्वतंत्रता सेनानी रह चुके थे. स्वामी असीमानंद का असली नाम जतिन चटर्जी था. असीमानंद अपने 6 भाई-बहनों में से एक थे. छात्र जीवन में दौरानअसीमानंद राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ यानि की आरएसएस से जुड़ गए थे. वनस्पति विज्ञान में स्नातक करने के बाद असीमानंद साल 1977 में आरएसएस के फुल टाइम प्रचारक बन गए थे. 1990 से 2007 के बीच स्वामी असीमानंद RSS से जुड़ी संस्था वनवासी कल्याण आश्रम का प्रांत प्रचारक प्रमुख रहे. असीमानंद 1995 के आस-पास गुजरात के डांग जिले के मुख्यालय आह्वा आए और हिंदू संगठनों के साथ 'हिंदू धर्म जागरण और शुद्धीकरण' के काम में लग गए. असीमानंद को ये नाम उनके गुरु स्वामी परमानंद ने दिया था.

ये भी पढ़ें-भारतीय रेलवे ने भी बंद किया समझौता एक्सप्रेस का परिचालन

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पानीपत: 18 फरवरी 2007 की रात ग्यारह बजे भारत पाकिस्तान के बीच सप्ताह में 2 दिन चलने वाली समझौता में बड़ा (Samjhauta Express blast) धमाका हो गया था. इस ब्लास्ट में दो बोगियों में सवार 68 लोगों की मौत हो गई थी और 12 घायल हो गए थे. यहां धमाका पानीपत जिले के दीवाना स्टेशन के पास हुआ था.

पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार यह धमाका दिल्ली से चलने के 80 किलोमीटर बाद दीवाना रेलवे स्टेशन पर हुआ था. धमाके में ट्रेन के जनरल कोच में आग लग गई थी. एसआईटी जांच के दौरान घटनास्थल से पुलिस को दो सूट केस में बम मिले थे जो कि जिंदा बम थे. बाद में बम निरोधक दस्ते ने उन्हें डिफ्यूज किया था. मारे गए सभी लोगों को पानीपत के मेहराणा गांव के ही स्थित कब्रिस्तान में दफनाया गया था. शवों की इतनी बुरी हालत हो चुकी थी कि उनकी पहचान करना भी मुश्किल था. डीएनए रिपोर्ट के आधार पर क्लेम करने वाले लोगों का डीएनए मैच कर शिनाख्त की गई थी.

समझौता एक्सप्रेस विस्फोट के पीड़ितों को न्याय का इंतजार

आज भी 19 लोग ऐसे दफन है जिनकी आज तक कोई शिनाख्त नहीं हो पाई. इस मामले में असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजेंद्र चौधरी को गिरफ्तार किया गया था. परंतु मामले के 12 साल बाद चारों को कोर्ट से रिहा कर दिया गया था. इस मामले में कुल 8 आरोपी थे जिनमें से एक की मौत हो चुकी थी. जबकि 3 को भगोड़ा घोषित किया जा चुका था और बाद में पकड़े गए चारों आरोपियों को पंचकूला कोर्ट ने बरी कर दिया था. अधिवक्ता मोमिन मलिक ने बताया कि मारे गए 68 लोगों में 19 लोग आज भी ऐसे है जिनकी कोई पहचान नहीं हो सकी है.

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बॉडी के शिनाख्त के लिए कुछ लोग पाकिस्तान से आए थे. जिन्होंने दावा किया था कि वह उनके परिजन है. लेकिन डीएनए मैच ना होने के कारण उनकी भी पहचान ना हो सकी. वरिष्ठ पत्रकार ललित शर्मा ने बताया कि शुरुआत में कुछ शवों की पहचान उनके कपड़े आभूषणों से की गयी थी. उनमे से कुछ के डीएनए रिपोर्ट मैच कर लिया गया था. इनमें से कुछ लोग ऐसे दफन है जिनकी कोई पहचान नहीं हो पाई. मारे गए सभी लोगों के पासपोर्ट जरूरी कागजात चेक किए गए परंतु कोई भी सुराग और आज तक हाथ नहीं लग पाया है. अधिवक्ता मोमिन मलिक बताते हैं कि भारत सरकार द्वारा मारे गए लोगों के मृत्यु प्रमाण पत्र अभी तक भी जारी नहीं किए गए.

Inside Story Of Samjhauta Express
कैसे हुआ था समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट

कैसे शुरू हुई समझौता एक्सप्रेस -

भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता एक्सप्रेस ट्रेन की शुरुआत शिमला समझौते के बाद 22 जुलाई 1976 को हुई थी. तब यह ट्रेन अमृतसर और लाहौर के बीच 52 किलोमीटर का सफर रोजाना किया करती थी. 1980 के दशक में पंजाब में फैली अशांति को लेकर सुरक्षा की वजहों से भारतीय रेल ने इस सेवा को अटारी स्टेशन तक सीमित कर दिया गया. जहां यात्रियों को कस्टम और इमिग्रेशन की मंजूरी ली जाती है. जब यह सेवा शुरू हुई थी तब दोनों देशों के बीच ट्रेन रोजाना चला करती थी जिसे 1994 में सप्ताह में दो बार में तब्दील कर दिया गया था.

Inside Story Of Samjhauta Express
समझौता एक्सप्रेस धमाके के बाद एसआईटी टीम का गठन

कैसे हुआ था समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट -

बात दें कि 18 फरवरी 2007 को भारत-पाक के बीच सप्ताह में दो दिन चलने वाली ट्रेन संख्या 4001 अप अटारी समझौता एक्सप्रेस में दो आईईडी धमाके हुए. जिसमें 68 लोगों की मौत हो गई थी. ट्रेन उस दिन दिल्ली से लाहौर जा रही थी. ब्लास्ट में जाने वालों में ज़्यादातर पाकिस्तानी मूल के नागरिक थे.यह हादसा रात 11.53 बजे दिल्ली से करीब 80 किलोमीटर दूर पानीपत के दिवाना रेलवे स्टेशन के पास हुआ था. धमाकों की वजह से ट्रेन में आग लग गई थी. इसमें महिलाओं और बच्चों समेत कुल 68 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 12 लोग घायल हो गए थे. धमाके के दो दिनों बाद पाकिस्तान तब के विदेश मंत्री खुर्शीद अहमद कसूरी भारत आने वाले थे. इस घटना की दोनों देशो ने कड़ी निंदा की थी लेकिन इस कारण कसूरी का भारत दौरा रद्द नहीं हुआ.

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19 फरवरी को जीआरपी/एसआईटी हरियाणा पुलिस ने मामले को दर्ज किया. करीब ढाई साल के बाद इस घटना की जांच का ज़िम्मा 29 जुलाई 2010 को राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए को सौंपा गया. हरियाणा पुलिस ने धमाके के बाद इसी ट्रेन के अन्य डिब्बे से 14 बोतलें, एक पाइप, एक डिजिटल टाइमर, सूटकेस का कवर और बम से लैस दो सूटकेस बरामद किये थे. इनमें से एक को डिफ्यूज कर दिया गया जबकि दूसरे बम को नष्ट किया गया. शुरुआती जांच में यह पता चला कि ये सूटकेस मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित कोठारी मार्केट में अभिनंदन बैग सेंटर के बने थे. जिसे अभियुक्त ने 14 फ़रवरी 2007 को ख़रीदा था. यानी कि हमले से ठीक चार दिन पहले. हरियाणा पुलिस और एनआईए की जांच में यह भी पता चला कि जिन लोगों ने हमला किया वो देश के विभिन्न मंदिरों पर हुए चरमपंथी हमलों से भड़के हुए थे.

Inside Story Of Samjhauta Express
समझौता एक्सप्रेस विस्फोट

धमाके के बाद एसआईटी टीम का गठन -

केंद्र सरकार ने समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट में जांच के लिए स्पेशल एसआईटी टीम का गठन किया गया. जांच के दौरान यह भी पाया गया कि नब कुमार सरकार उर्फ स्वामी असीमानंद, सुनील जोशी उर्फ मनोज उर्फ गुरु जी, रामचंद्र कलसांगरा उर्फ रामजी उर्फ विष्णु पटेल, संदीप दांगे उर्फ टीचर, लोकेश शर्मा उर्फ अजय उर्फ कालू, कमल चौहान, रमेश वेंकट महालकर उर्फ अमित हकला उर्फ प्रिंस ने अन्य लोगों के साथ मिलकर इस ब्लास्ट को अंजाम दिया था. एसआईटी टीम ने इंदौर, देवास (मध्य प्रदेश), गुजरात, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, जम्मू के कुछ शहरों में आगे और भी विस्तार से जांच की गई. पूरे देश में बड़ी संख्या में लोगों से पूछताछ की गई. जिसमे पता चला कि राजिंदर चौधरी और कमल चौहान ने दिसंबर 2006 के आस-पास पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन की रेकी की थी. एसआईटी टीम ने इस ब्लास्ट का मास्टरमाइंड स्वामी असीमानंद को बताया था.

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अगस्त 2014 को समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट केस में अभियुक्त स्वामी असीमानंद को ज़मानत मिल गई. कोर्ट में जांच एजेंसी एनआईए असीमानंद के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत नहीं दे पाई. उन्हें सीबीआई ने 2010 में उत्तराखंड के हरिद्वार से गिरफ़्तार किया गया था. उन पर वर्ष 2006 से 2008 के बीच भारत में कई जगहों पर हुए सीरियल बम धमाकों को अंजाम देने से संबंधित होने का आरोप था. असीमानंद के ख़िलाफ़ मुक़दमा उनके इक़बालिया बयान के आधार पर बना था लेकिन बाद में वहां अपने दिए गए बयान से मुकर गए और एसआईटी टीम पर आरोप लगाया कि बयान टॉर्चर की वजह से दिया था. 16 अप्रैल 2018 को नबकुमार सरकार उर्फ़ स्वामी असीमानंद को एनआईए की विशेष अदालत ने 2007 के मक्का मस्जिद विस्फोट मामले में दोषमुक्त करार दिया. उन्हें पहले ही 2007 के अजमेर दरगाह विस्फोट मामले में दोषमुक्त करार दिया जा चुका है. 14 मार्च 2019 को स्वामी असीमानंद को सबूतों के आभाव में उन्हें इस केस से रिहा कर दिया गया.

Inside Story Of Samjhauta Express
कौन है स्वामी असीमानंद

कौन है स्वामी असीमानंद -

असीमानंद का जन्म पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में हुआ था उनके पिता देश के स्वतंत्रता सेनानी रह चुके थे. स्वामी असीमानंद का असली नाम जतिन चटर्जी था. असीमानंद अपने 6 भाई-बहनों में से एक थे. छात्र जीवन में दौरानअसीमानंद राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ यानि की आरएसएस से जुड़ गए थे. वनस्पति विज्ञान में स्नातक करने के बाद असीमानंद साल 1977 में आरएसएस के फुल टाइम प्रचारक बन गए थे. 1990 से 2007 के बीच स्वामी असीमानंद RSS से जुड़ी संस्था वनवासी कल्याण आश्रम का प्रांत प्रचारक प्रमुख रहे. असीमानंद 1995 के आस-पास गुजरात के डांग जिले के मुख्यालय आह्वा आए और हिंदू संगठनों के साथ 'हिंदू धर्म जागरण और शुद्धीकरण' के काम में लग गए. असीमानंद को ये नाम उनके गुरु स्वामी परमानंद ने दिया था.

ये भी पढ़ें-भारतीय रेलवे ने भी बंद किया समझौता एक्सप्रेस का परिचालन

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Last Updated : Feb 18, 2022, 7:22 AM IST
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