कुरुक्षेत्र: आयुष विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र (ayush university kurukshetra) के डॉक्टर राजा सिंगला ने दावा किया है उन्होंने विश्व में पहली बार श्रोग्रेन सिंड्रोम बीमारी का सफल इलाज (sjogren syndrome treatment) किया है. श्रोग्रेन सिंड्रोम एक ऐसी बीमारी है, जिसके कारण गला सूखने लगता है. रोग प्रतिरोधक पर हमला करने की जगह ये वायरस इंसान की स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करता है. जिसे ऑटोइम्यून रोग कहा जाता है. इसमें वायरस सफेद रक्त कोशिकाएं, जो आमतौर पर इंसान की बीमारियों से सुरक्षा करती हैं. उन कोशिकाओं में नमी पैदा करने वाली ग्रंथियों पर हमला करता है. जिससे ये ग्रंथियां आंसू और लार का उत्पादन नहीं कर पाती. जिससे ये बीमारी पैदा होती है.
अगर समय रहते इसका उपचार ना किया जाए तो ये शरीर के दूसरे भागों को प्रभावित कर देती है. अभी तक ये बीमारी एड्स और कैंसर की तरह लाइलाज बीमारी थी, लेकिन आयुष विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र के डॉक्टर राजा सिंगला का दावा है कि उन्होंने इस बीमारी का सफल इलाज किया है. उन्होंने कहा कि उनके पास सिर्फ हरियाणा ही नहीं, बल्कि दूसरे राज्यों से भी मरीज इस बीमारी का इलाज करवाने के लिए आते हैं. जिनमें 5 मरीज बिल्कुल ठीक हो चुके हैं. इन मरीजों में आंसू और गले में लार बन रही है, इनमें से 2 मरीज ऐसे थे जिनमें 10 साल आंसू और लार नहीं बन रहा था. इसके अलावा 25 से 26 लोगों का इलाज आयुष विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र से चल रहा है. जो पंच कर्मा विभाग कर रहा है.
बीमारी के लक्षण: इसमें आंखों से नमी खत्म हो जाती है. जिससे कि आंसू आना बंद हो जाता है. गले और मुंह में लार का खत्म होना श्रोग्रेन सिंड्रोम के सबसे अहम लक्षण है. इसके साथ इंसान को जोड़ों के दर्द की शिकायत होती है. साथ ही चेहरे और गर्दन के आसपास की ग्रंथियों में सूजन, सूखी त्वचा या नाक का मार्ग शुष्क हो (sjogren syndrome) जाता है.
डॉक्टर राजा सिंगला के मुताबिक ज्यादातर डॉक्टर इसका सिर्फ टेंपरेरी इलाज करते हैं. परमानेंट इलाज पूरे विश्व में आज तक नहीं किया गया, लेकिन आयुष विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र के पंच कर्मा विभाग के द्वारा इस बीमारी का इलाज पहली बार पूरे विश्व में किया गया है. उन्होंने कहा कि शुरुआती दौर में जो लोग इस बीमारी से ग्रस्त होते हैं. उनको इसकी जानकारी नहीं होती और वो जब इलाज लेते रहते हैं. तो कई सालों बाद उनको महसूस होता है कि उनकी मुख्य बीमारी कुछ और है. जिसको डॉक्टर पकड़ नहीं पाते. अगर समय रहते इसका इलाज हो जाए तो ज्यादा सही रहता है.
श्रोग्रेन सिंड्रोम बीमारी आमतौर पर 40 वर्ष की उम्र के बाद शुरू होता है. ये कभी-कभी अन्य बीमारियों से भी जुड़ा होता है. जैसे गठिया की बीमारी. डॉक्टर ने दावा किया कि दूसरे अस्पतालों के मुकाबले आयुष विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र में श्रोग्नेन सिंड्रोम बीमारी का इलाज काफी सस्ता है. दूसरे अस्पतालों में ये इलाज परमानेंट भी नहीं है. श्रोग्रेन सिंड्रोम बीमारी से ग्रस्त संतोष नामक की महिला ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि उसको 16 साल पहले बुखार आया था. जिसके बाद उसको इस समस्या का पता चला. उसको आंखों से दिखना बंद हो गया.
जिसके बाद उन्होंने हरियाणा, दिल्ली, चंडीगढ़ सहित विभिन्न डॉक्टरों पर अपनी आंखों का इलाज करवाया, लेकिन उनकी आंखों की नमी चली गई. गले में भी लार नहीं बनती थी. लाखों रुपये खर्च करने पर भी कोई अराम नहीं हुआ. 2 साल पहले उन्होंने आयुष विश्वविद्यालय के डॉक्टर के बारे में पता चला. तब उन्होंने यहां पर इलाज करवाया. महिला का दावा है कि आज वो बिल्कुल ठीक हैं. अब उनकी दवाई बंद कर दी गई है. श्रोग्रेन सिंड्रोम बीमारी के अन्य मरीज राजेंद्र सिंह ने कहा कि वो राजस्थान के रहने वाले हैं. मौजूदा समय में रोहतक में रह रहे हैं. उन्होंने भी एम्स तक में अपना इलाज कराया, लेकिन कहीं से कोई भी आराम नहीं मिला. लेकिन आयुष विश्वविद्यालय आने के बाद अब वो 2 साल के बाद बिल्कुल स्वस्थ हो गए.