हिसार: हरियाणा राज्य देश के नक्शे में ठीक उसी तरह है जैसे मानव शरीर में दिल. यहां सिर्फ हैंडलूम, जलेबी या उद्योग ही नहीं बल्कि होली भी मशहूर है. यहां दो तरह की होली मशहूर हैं. एक राजधानी दिल्ली के आसपास प्रदेश के दक्षिणी जिलों पलवल, फरीदाबाद, गुरुग्राम और मेवात की. यहां आप ब्रज की होली का मजा ले सकते हैं. हरियाणा के बाकी हिस्से में कोड़े या कोरड़ा वाली होली (Koda Maar Holi in Haryana) होती है.
हरियाणा की पारंपरिक होली (Traditional Holi of Haryana) का इतिहास भी वैसे तो सदियों पुराना है, लेकिन आज भी यहां के लोग अपने इतिहास और संस्कृति को जिंदा रखने के लिए पारंपरिक तरीकों से होली खेलते हैं. रंगों का त्योहार कही जाने वाली होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है. इस होली की शुरुआत होती है बड़कूलों से...सबसे पहले गोबर से बड़कूले बनाए जाते हैं. गोबर के बने बड़कूलों में चांद, तारे और कई तरह की आकृतियां बनाई जाती हैं. इन बड़कूलों की फिर मालाएं बनाई जाती हैं.
गांव के बाहर होलिका दहन के लिए लकड़ियां इकट्ठी की जाती हैं. होलिका दहन वाले दिन गांव की सभी औरतें मिलकर लोक संगीत गाते हुए, डांस करते हुए होलिका दहन तक पहुंचती हैं. होलिका दहन से पहले होली की पूजा की जाती है और फिर बड़कूलों की आहूति डाली जाती है. महिलाएं इस दिन व्रत भी रखती हैं. होली के कई दिन पहले से ही ग्रामीण महिलाएं लोकगीत (Folk songs of Haryana) गाकर नाचना शुरु कर देती हैं.
हरियाणवी कल्चर को आज भी लोगों तक लेकर जाने वाली लोक कलाकार और अभिनेत्री अर्चना सुहासिनी ने बताया कि बसंत पंचमी के दिन होली का लठ गाड़ा जाता है. उस दिन से होली मनाने की शुरुआत ग्रामीण क्षेत्र में हो जाती है. पुराने समय से ही इसे नाचने-गाने का त्योहार माना जाता है. पुरुष और महिलाएं अलग-अलग रूप में नाचते-गाते हुए इस त्योहार को मनाते हैं. हालांकि बदलते दौर में होली माने का ढंग भी बदल गया है.
बदल रहा है होली का तरीका: आजकल पहले की तरह होली नहीं मनाई जा रही, लेकिन गांवों में आज भी पुरानी संस्कृति जिंदा है. लोग परंपरागत तरीके से होली मनाते हैं. अभिनेत्री अर्चना के मुताबिक पहले महिलाएं लूर डालती थी. खुलिया खाती खेलती थी. आज के समय में तो लोगों को लूर डालना पता ही नहीं. लूर डालना उसे कहते हैं जब महिलाओं के ग्रुप में एक वधू पक्ष बन जाता है और एक वर पक्ष और दोनों आपस में लोकगीत के माध्यम से एक दूसरे पर कटाक्ष करते हैं.
सबसे बड़ा रोमांच देवर और भाभी का होली खेलना: इस दिन चाहे बुजुर्ग हो या जवान सब महिलाएं अपने देवर के साथ होली खेलती हैं और उनमें एक कंपटीशन सा होता है. इसमें देवर को भाभी को रंग लगाना होता है और भाभी को उसे रंग लगाने से बचते हुए कपड़े के बनाए हुए एक कोड़े से पीटना होता, इस दौरान इसके कुछ नियम भी होते हैं. जैसे कि देवर कोड़े हाथ से नहीं पकड़ सकता. इस तरह भाभियां पूरे साल का गुस्सा अपने देवरों पर निकालती हैं. गुस्सा निकालने के लिए भाभियां कोड़े में पत्थर, रस्सी अन्य चीजें डाल देती हैं ताकि दर्द ज्यादा लगे. हरियाणा में होली पर गाए जाने वाले कुछ विशेष लोकगीत बड़े मशहूर हैं. जैसे- बूढ़ी न्यू मटके, आ लेंन दे तेरे बेटे न्ह, तेरा दमण द्यू पड़वा
क्यों होता है होलिका दहन? इसके पीछे एक मान्यता भी जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि पुराने समय में राजा हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को ये वरदान था कि वो आग में नहीं जलेगी, राजा हिरण्यकश्यप खुद को भगवान से भी बड़ा मानता था और भगवान विष्णु से घोर शत्रुता रखता था. उसका बेटा प्रह्लाद भगवान का भक्त था. राजा हिरण्यकश्यप को ये बात बर्दाश्त नहीं थी, उसने अपने बेटे प्रह्लाद को मारने की कई बार कोशिश की, लेकिन वो कामयाब नहीं हो पाया.
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उसके बाद उसकी बहन होलीका ने कहा कि वो प्रह्लाद को आग में लेकर बैठ जाएगी और वो जलकर मर जाएगा, लेकिन इसका उल्टा हुआ. होलीका तो जलकर मर गई, लेकिन प्रह्लाद बच गए. उसी दिन से होलिका दहन किया जाने लगा. माना जाता है कि इस दिन बुराइयों का जलकर अंत हो जाता है, लेकिन बदलते समय के साथ साथ होली मानाने का ढ़ंग भी बदल गया है. खासकर शहरी इलाकों में लोग परंपराओं को भूलते जा रहे हैं. राहत की बात ये है कि गांवों में आज भी लोग अपनी संस्कृति और परंपराओं को जिंदा रखे हुए हैं.
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