फरीदाबाद: 33 साल पहले शुरु हुए अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड मेले को देश और विदेश स्तर पर पहचान मिली है. इस मेले में पहली बार शिरकत करने वाली कठपुतली कलाकार पतासी देवी हर साल इस मेले में हरियाणा टूरिज्म की ओर से बुलाई जाती है, क्योंकि पतासी ही एक ऐसी कलाकार है जो इस मेले के 33 सालों से स्टाल लगाती आ रही हैं.
अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड मेले को देश-विदेश के हस्तशिल्पियों और कलाकारों का महाकुम्भ कहा जाए तो कोई अतिशोक्ति नहीं होगी. इस मेले में कठपुतली कलाकार पतासी देवी 33 सालों से कठपुतलियां बेच रही हैं. इसी की बदौलत वह 25 देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी हैं. इसलिए वह मेले को अपना परिवार मानती है.
1987 से कर रही हैं मेले में शिरकत
पतासी ने बताया की वह राजस्थान के शेखावाटी इलाके के नवलगढ़ से है और वह पिछले 33 सालों से इस मेले में शिरकत कर रही है. हर साल हरियाणा टूरिज्म के अधिकारी उसे बड़े ही मान सम्मान के साथ इस मेले में बुला रहे है. पतासी ने 33 साल पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया की सन् 87 में यह मेला पहली बार लगा था. तब उन्हें यहां हिस्सा लेने के लिए 10 रूपये मिलते थे. उस वक्त करीब सौ हस्तशिल्पी और कलाकार यहां आते थे. उन्हें तभी से विश्वास था कि यह मेला बहुत आगे तक जाएगा.
25 देशों की कर चुकी हैं सैर
पतासी ने बातचीत में बताया कि इस मेले की बदौलत उसके क्राफ्ट को एक प्लेटफार्म मिला है. अब तक वह 25 देशों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी है. अपनी खुशी जाहिर करते हुए पतासी ने बताया की इस मेले से उन्हें इतना लगाव है कि इस मेले को देखने से ही उसका मन खुश हो जाता है.
पुराने जमाने की यादें ताजा करते हुए पतासी ने बताया की कठपुतली का खेल शाहजहां के जमाने से है. जब टीवी, रेडियो, मोबाइल जैसी चीजें नहीं होती थी. उसने बताया कि उसके पास हाथ से बनाय गए हाथी, घोडा, ऊंठ और कठपुतली है. जिनकी कीमत 50 रूपये से लेकर 150 रूपये तक है. उसने बताया की कठपुतली का जोड़ा घर में लगाना शुभ माना जाता है. इसलिए लोग इन्हें खरीदकर ले जाते है.