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सूरजकुंड मेले की 33 साल से गवाह हैं पतासी देवी, जानिए इनकी कहानी - kathputli craft

राजस्थान की पतासी पिछले कई सालों से मेले की शान को बढ़ाती आ रही हैं. इनका कहना है कि आज इन्हें पहचान भी सूरजकुंड मेले की वजह से ही मिली है.

puppet artist patasi devi
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Published : Feb 9, 2019, 6:32 PM IST

फरीदाबाद: 33 साल पहले शुरु हुए अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड मेले को देश और विदेश स्तर पर पहचान मिली है. इस मेले में पहली बार शिरकत करने वाली कठपुतली कलाकार पतासी देवी हर साल इस मेले में हरियाणा टूरिज्म की ओर से बुलाई जाती है, क्योंकि पतासी ही एक ऐसी कलाकार है जो इस मेले के 33 सालों से स्टाल लगाती आ रही हैं.

अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड मेले को देश-विदेश के हस्तशिल्पियों और कलाकारों का महाकुम्भ कहा जाए तो कोई अतिशोक्ति नहीं होगी. इस मेले में कठपुतली कलाकार पतासी देवी 33 सालों से कठपुतलियां बेच रही हैं. इसी की बदौलत वह 25 देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी हैं. इसलिए वह मेले को अपना परिवार मानती है.

पतासी देवी, कठपुतली कलाकार
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1987 से कर रही हैं मेले में शिरकत
पतासी ने बताया की वह राजस्थान के शेखावाटी इलाके के नवलगढ़ से है और वह पिछले 33 सालों से इस मेले में शिरकत कर रही है. हर साल हरियाणा टूरिज्म के अधिकारी उसे बड़े ही मान सम्मान के साथ इस मेले में बुला रहे है. पतासी ने 33 साल पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया की सन् 87 में यह मेला पहली बार लगा था. तब उन्हें यहां हिस्सा लेने के लिए 10 रूपये मिलते थे. उस वक्त करीब सौ हस्तशिल्पी और कलाकार यहां आते थे. उन्हें तभी से विश्वास था कि यह मेला बहुत आगे तक जाएगा.

25 देशों की कर चुकी हैं सैर
पतासी ने बातचीत में बताया कि इस मेले की बदौलत उसके क्राफ्ट को एक प्लेटफार्म मिला है. अब तक वह 25 देशों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी है. अपनी खुशी जाहिर करते हुए पतासी ने बताया की इस मेले से उन्हें इतना लगाव है कि इस मेले को देखने से ही उसका मन खुश हो जाता है.

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पुराने जमाने की यादें ताजा करते हुए पतासी ने बताया की कठपुतली का खेल शाहजहां के जमाने से है. जब टीवी, रेडियो, मोबाइल जैसी चीजें नहीं होती थी. उसने बताया कि उसके पास हाथ से बनाय गए हाथी, घोडा, ऊंठ और कठपुतली है. जिनकी कीमत 50 रूपये से लेकर 150 रूपये तक है. उसने बताया की कठपुतली का जोड़ा घर में लगाना शुभ माना जाता है. इसलिए लोग इन्हें खरीदकर ले जाते है.

फरीदाबाद: 33 साल पहले शुरु हुए अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड मेले को देश और विदेश स्तर पर पहचान मिली है. इस मेले में पहली बार शिरकत करने वाली कठपुतली कलाकार पतासी देवी हर साल इस मेले में हरियाणा टूरिज्म की ओर से बुलाई जाती है, क्योंकि पतासी ही एक ऐसी कलाकार है जो इस मेले के 33 सालों से स्टाल लगाती आ रही हैं.

अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड मेले को देश-विदेश के हस्तशिल्पियों और कलाकारों का महाकुम्भ कहा जाए तो कोई अतिशोक्ति नहीं होगी. इस मेले में कठपुतली कलाकार पतासी देवी 33 सालों से कठपुतलियां बेच रही हैं. इसी की बदौलत वह 25 देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी हैं. इसलिए वह मेले को अपना परिवार मानती है.

पतासी देवी, कठपुतली कलाकार
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1987 से कर रही हैं मेले में शिरकत
पतासी ने बताया की वह राजस्थान के शेखावाटी इलाके के नवलगढ़ से है और वह पिछले 33 सालों से इस मेले में शिरकत कर रही है. हर साल हरियाणा टूरिज्म के अधिकारी उसे बड़े ही मान सम्मान के साथ इस मेले में बुला रहे है. पतासी ने 33 साल पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया की सन् 87 में यह मेला पहली बार लगा था. तब उन्हें यहां हिस्सा लेने के लिए 10 रूपये मिलते थे. उस वक्त करीब सौ हस्तशिल्पी और कलाकार यहां आते थे. उन्हें तभी से विश्वास था कि यह मेला बहुत आगे तक जाएगा.

25 देशों की कर चुकी हैं सैर
पतासी ने बातचीत में बताया कि इस मेले की बदौलत उसके क्राफ्ट को एक प्लेटफार्म मिला है. अब तक वह 25 देशों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी है. अपनी खुशी जाहिर करते हुए पतासी ने बताया की इस मेले से उन्हें इतना लगाव है कि इस मेले को देखने से ही उसका मन खुश हो जाता है.

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पुराने जमाने की यादें ताजा करते हुए पतासी ने बताया की कठपुतली का खेल शाहजहां के जमाने से है. जब टीवी, रेडियो, मोबाइल जैसी चीजें नहीं होती थी. उसने बताया कि उसके पास हाथ से बनाय गए हाथी, घोडा, ऊंठ और कठपुतली है. जिनकी कीमत 50 रूपये से लेकर 150 रूपये तक है. उसने बताया की कठपुतली का जोड़ा घर में लगाना शुभ माना जाता है. इसलिए लोग इन्हें खरीदकर ले जाते है.



फरीदाबाद : 33 सालों से सूरजकुंड मेले की गवाह कठपुतली कलाकार पतासी देवी की कहानी उसी की जुबानी - इसी मेले की वजह से 25 देशो का भ्रमण कर चुकी है पतासी देवी - टूरिज्म द्वारा हर साल बुलाया जाता है।  

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SCRIPT ----- 

एंकर - अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड मेले को देश - विदेश के हस्तशिल्पियों और कलाकारों का महाकुम्भ कहा जाए तो कोई अतिशोक्ति नहीं होगी।  ३३ साल पहले 1987 में यह मेला पहली बार अपने वजूद में आया था और आज यह अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मेला बन चुका है।  33 साल पहले इस मेले में पहली बार  शिरकत करने वाली कठपुतली कलाकार पतासी देवी हर साल इस मेले में हरियाणा टूरिज्म द्वारा मान - सम्मान के साथ बुलाई जाती है क्योंकि पतासी ही एक मात्र ऐसी कलाकार है जो इस मेले के 33 सालो की गवाह है।  इसी मेले से ख्याति पाकर पतासी देवी अब तक 25 देशो में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी है।  इसीलिए आज वह इस मेले को अपना फलता - फूलता परिवार मानती है और हरियाणा टूरिज्म का धन्यवाद करते नहीं थकती जिन्होंने आज तक उसके जीते जी इस मेले से उसे जोड़े रखा है।   

वीओ - पिछले 33 सालो से मेले की गवाह रही पतासी ने बताया की वह राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र के नवलगढ़ से है और वह पिछले 33 सालों से इस मेले में शिरकत कर रही है।  हर साल हरियाणा टूरिज्म के अधिकारी उसे बड़े ही मान सम्मान के साथ इस मेले में बुला रहे है। पतासी ने ३३ साल पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया की सन 87 में यह मेला पहली बार लगा था तब उन्हें यहाँ भाग लेने के लिए 10 रूपये मिलते थे उस वक्त करीब सौ हस्तशिल्पी और कलाकार यहाँ आते थे।  उन्होंने तभी से  विश्वास था की यह मेला बहुत आगे तक जाएगा।  पुराने वक्त को याद करती हुई पतासी ने बताया की जिस वक़्त मेला अपने शुरूआती दौर में था तब सूरजकुंड मेले में आने वाले कलाकार मेले के दौरान यहाँ झोपड़ियों में रहा करते थे और आस पास जंगल होने के चलते लोमड़ी , गीदड़ और बंदर आदि जानवर घूमते रहते थे लेकिन आज सूरजकुंड मेला इतना बड़ा हो गया है की इसे अब विश्व में अंतर्राष्ट्रीय मेला कहा जाने लगा है।   पतासी ने आगे बातचीत करते हुए बताया की इस मेले की बदौलत उसके क्राफ्ट को एक प्लेटफार्म मिला और अब तक वह 25 देशो में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी है।  ख़ुशी जाहिर करते हुए पतासी ने बताया की इस मेले से उन्हें इतना लगाव है की इस मेले को देखने मात्र से ही उसका मन खुश हो जाता है।   अपने द्वारा लाय गए क्राफ्ट के बारे में बताते हुए पतासी ने बताया की वह कटपुतली का खेल दिखते है और कठपुतलियां  और अन्य क्राफ्ट बेचते है।  वहीँ  उसने बताया की वह मेहंदी  बेचने व लगाने का काम भी करती है। पुराने ज़माने की यादें ताजा करते हुए पतासी ने बताया की कटपुतली का खेल शाहजहाँ के जमाने से है जब टीवी , रेडियो  ,मोबाइल जैसी चीजे नहीं होती थी।  उसने बताया की उसके पास हाथ से बनाय गए हाथी , घोडा , ऊंठ और कठपुतली है जिनकी कीमत 50 रूपये से लेकर 150 रूपये तक है।  उसने बताया की कठपुतली का जोड़ा घर में लगाना शुभ माना जाता है इसलिए लोग इन्हे खरीदकर ले जाते है। संतुष्टि जाहिर करते हुए उसने बताया की सूरजकुंड मेले के कारण उसका और उसके परिवार का अच्छा गुजर बसर चल जाता है वहीँ हरियाणा टूरिज्म के अधिकारी भी उन्हें रहने - खाने की अच्छी सुविधाएं देते है।     

बाइट - पतासी - मेले में 33 सालो की गवाह ( कठपुतली क्राफ्ट )

वीओ - वही मेला दर्शको ने बताया की यह कठपुतली देखकर उन्हें बहुत अच्छा लग रहा है और कठपुतली हमारी पुरानी संस्कृति की याद दिलाती है जिसे देखकर बेहद सुखद महसूस होता है और वह मेले में अपने परिवार के साथ एन्जॉय कर रहे है।  वहीँ उनकी पत्नी ने भी राजस्थानी कटपुतली क्राफ्ट की जमकर तारीफ की और कहा की सूरजकुंड मेले में ऐसी चीजे देखने को मिलती है जो कही और नहीं मिलती है इसलिए हर साल वह सूरजकुंड मेले में परिवार के साथ आते है। 

बाइट : मेला दर्शक 


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