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प्रदेश में मनाया जा रहा है वर्ल्ड ग्लूकोमा वीक, विशेष अभियानों से लोगों को किया जा रहा है जागरूक

10 से 16 मार्च तक दुनिया भर में ग्लूकोमा डे मनाया जाता है. जिसे लेकर प्रदेश में भी पीजीआई द्वारा लोगों को ग्लूकोमा को लेकर जागरूक करने के लिए एक मुहिम शुरू की गई है. जिसमें पीजीआई की ओर से कई तरह के जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएंगे.

वर्ल्ड ग्लूकोमा डे
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Published : Mar 12, 2019, 3:58 PM IST

चंडीगढ़ः प्रदेश में बढ़ते ग्लूकोमा के मरीजों पर रोक लगाने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने एक मुहिम शुरू की है. इस मुहिम के तहत इस बीमारी के मरीजों को विशेष अभियानों के तहत जागरूक किया जाएगा.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पीजीआई में पिछले 10 सालों में ग्लूकोमा के मरीजों की तादाद 3 गुना बढ़ गई है. साल 2006 में जहां हर महीने पीजीआई में ग्लूकोमा के 250 सर्जरी होती थी, वहीं अब हर महीने करीब 1 हजार सर्जरी की जा रही है.

वर्ल्ड ग्लूकोमा डे

साल दर साल बढ़ा मरीजों का आंकड़ा
पीजीआई के एडवांस आई सेंटर के प्रोफेसर एस एस पांडव ने बताया कि साल 2008 तक पीजीआई में हर साल करीब 8000 मरीज ग्लूकोमा का चेकअप कराने आते थे लेकिन 10 साल बाद इनकी संख्या 38000 तक पहुंच चुकी है. उन्होंने कहा कि ग्लूकोमा का अभी तक कोई इलाज नहीं है लेकिन दवाई और सर्जरी से आंखों की रोशनी को कुछ हद तक बचाया जा सकता है.

professor ss pandav
प्रोफेसर एस एस पांडव

क्या है मुख्य कारण?
डॉक्टर पांडव ने कहा कि ग्लूकोमा होने की मुख्य वजह आंखों में ज्यादा प्रेशर होने से ऑप्टिक नर्व के डैमेज हो जाना. इससे हमें आसपास का दायरा दिखना बंद हो जाता है. साथ ही उन्होंने कहा कि ग्लूकोमा की समस्या आम तौर पर 40 की उम्र के बाद आती है. इसलिए 40 की उम्र के बाद लोगों को साल में एक बार आई चेकअप जरूर करवाना चाहिए.

चंडीगढ़ः प्रदेश में बढ़ते ग्लूकोमा के मरीजों पर रोक लगाने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने एक मुहिम शुरू की है. इस मुहिम के तहत इस बीमारी के मरीजों को विशेष अभियानों के तहत जागरूक किया जाएगा.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पीजीआई में पिछले 10 सालों में ग्लूकोमा के मरीजों की तादाद 3 गुना बढ़ गई है. साल 2006 में जहां हर महीने पीजीआई में ग्लूकोमा के 250 सर्जरी होती थी, वहीं अब हर महीने करीब 1 हजार सर्जरी की जा रही है.

वर्ल्ड ग्लूकोमा डे

साल दर साल बढ़ा मरीजों का आंकड़ा
पीजीआई के एडवांस आई सेंटर के प्रोफेसर एस एस पांडव ने बताया कि साल 2008 तक पीजीआई में हर साल करीब 8000 मरीज ग्लूकोमा का चेकअप कराने आते थे लेकिन 10 साल बाद इनकी संख्या 38000 तक पहुंच चुकी है. उन्होंने कहा कि ग्लूकोमा का अभी तक कोई इलाज नहीं है लेकिन दवाई और सर्जरी से आंखों की रोशनी को कुछ हद तक बचाया जा सकता है.

professor ss pandav
प्रोफेसर एस एस पांडव

क्या है मुख्य कारण?
डॉक्टर पांडव ने कहा कि ग्लूकोमा होने की मुख्य वजह आंखों में ज्यादा प्रेशर होने से ऑप्टिक नर्व के डैमेज हो जाना. इससे हमें आसपास का दायरा दिखना बंद हो जाता है. साथ ही उन्होंने कहा कि ग्लूकोमा की समस्या आम तौर पर 40 की उम्र के बाद आती है. इसलिए 40 की उम्र के बाद लोगों को साल में एक बार आई चेकअप जरूर करवाना चाहिए.

Intro:14 मई को दुनिया भर में ग्लूकोमा डे मनाया जाता है और पीजीआई ने इस बार लोगों को ग्लूकोमा को लेकर जागरूक करने के लिए एक मुहिम शुरू की है ।इसके तहत पीजीआई की ओर से कई तरह के जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएंगे।



Body:थायराइड और एलर्जी की समस्या से जूझ रहे मरीजों में ग्लूकोमा दैनिक काला मोतिया की आशंका बढ़ जाती है साथ ही स्टेरॉइड लेने वाले को भी इस रोग का खतरा ज्यादा रहता है ।पीजीआई में पिछले 10 सालों में ग्लूकोमा के मरीजों की तादाद 3 गुना बढ़ गई है साल 2006 में जहां हर महीने पीजीआई में ग्लूकोमा के 250 सर्जरी होती थी। वही अब हर महीने करीब 1 हजार सर्जरीया की जा रही है ।पीजीआई के एडवांस आई सेंटर के प्रोफेसर एस एस पांडव ने बताया कि साल 2008 तक पीजीआई में हर साल करीब 8000 मरीज ग्लूकोमा का चेकअप कराने आते थे लेकिन 10 साल बाद इनकी संख्या 38000 तक पहुंच चुकी है।
उन्होंने कहा कि ग्लूकोमा का अभी तक कोई इलाज नहीं है लेकिन दवाई और सर्जरी से आंखों की रोशनी को कुछ हद तक बचाया जा सकता है
डॉक्टर पांडव ने कहा की ग्लूकोमा होने की मुख्य वजह है आंखों में ज्यादा प्रेशर होने की वजह से ऑप्टिक नर्व के डैमेज हो जाना इससे हमें आसपास का दायरा दिखना बंद हो जाता है ।आमतौर पर मरीजों को शुरू में इसके बारे में पता नहीं चलता और जब इसके बारे में पता चलता है। तब तक काफी देर हो चुकी होती है साथ ही साथ उन्होंने कहा कि ग्लूकोमा की समस्या आम तौर पर 40 की उम्र के बाद आती है ।इसलिए 40 की उम्र के बाद लोगों को साल में एक बार आई चेकअप जरूर करवाना चाहिए


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