चंडीगढ़: पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में एक दंपती के बीच हुए विवाद में बच्चों की कस्टडी को लेकर हुई सुनवाई में बड़ा फैसला सुनाया. हाई कोर्ट के जस्टिस सुधीर मित्तल ने कहा कि बच्चों की सही विकास के लिए उनकी मासूमियत की अवधि के दौरान घर का माहौल प्रेम प्यार से भरा होना चाहिए. माता-पिता के आपसी टकराव के कारण बच्चों को इस तरह उचित वातावरण नहीं मिल रहा हो तो अदालतों को यह तय करना होगा कि उनके हित में क्या सही है.
माता-पिता के कारण बच्चे निर्दोष होते हुए इसका खामियाजा भुगतने को मजबूर है. बच्चों के लिए माता-पिता दोनों जिम्मेदार है परिणाम स्वरूप पीड़ित होते हैं और करने के लिए कहा जाता है कि उनके सर्वोत्तम हित में क्या है, क्योंकि माता पिता ने अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को त्याग दिया है.
निचली अदालत ने याचिका की खारिज तो मां ने हाईकोर्ट में लगाई गुहार
पत्नी की बच्चों की कस्टडी की मांग को लेकर निचली अदालत 5 फरवरी 2020 को उसकी मांग खारिज कर चुकी है. पत्नी ने याचिका खारिज होने के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए उसके बच्चों को अपने पास रखने देने की मांग की. हाईकोर्ट ने माता-पिता और नाबालिग बच्चों के साथ बातचीत करने के लिए एक महिला वकील को कोर्ट मित्र नियुक्त किया ताकि बच्चों के हित के बारे में एक आकलन किया जा सके.
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बच्चे मानते हैं मां के साथ हुआ बुरा बर्ताव-रिपोर्ट
14 अगस्त 2020 को कोर्ट मित्र ने सभी के साथ बातचीत के आधार पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की. रिपोर्ट में यह सामने आया कि बच्चे अपनी मां को याद करते हैं और लड़का उम्र में बड़ा होने के कारण महसूस करता था कि उसकी मां को अपमानित किया जाता था. रिपोर्ट में कहा गया कि पिता और दादा-दादी बच्चों के सामने उसकी मां के खिलाफ बुरा बोलते थे, जबकि मां ने बच्चों के सामने कभी भी पति और उसके ससुराल पक्ष के खिलाफ कुछ बुरा नहीं कहा.
बच्चों के खर्चे को लेकर हुई बहस
बहस के दौरान पति के वकील ने कहा कि बच्चों को मां को नहीं सौंपा जा सकता, क्योंकि उसके पास कोई संसाधन नहीं है. यह कहा गया था कि उनकी शिक्षा समेत अन्य बहुत अधिक खर्च की आवश्यकता है. पति ने बहस के दौरान पत्नी के चरित्र पर सवाल उठाए थे. कोर्ट को बताया गया कि पिता बच्चों के नाम पर निवेश भी कर रहा है ताकि बच्चों का भविष्य सुरक्षित रहें, इसलिए बच्चों को पिता के पास रहने दिया जाना चाहिए. वहीं पत्नी की तरफ से दलील दी गई थी कि वह ग्रेजुएट है और एक दशक से चंडीगढ़ के एक नामी स्कूल में बतौर शिक्षक काम कर रही है, लेकिन इस विवाद के चलते उसने वहां से नौकरी छोड़ कर अपने मायके पंचकूला में नौकरी कर ली.
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मां की कस्टडी में भेजे गए बच्चे
दोनों पक्षों की दलीले सुनने और कोर्ट मित्र की विस्तृत रिपोर्ट पर विचार करने के बाद हाईकोर्ट ने पाया कि बच्चों के सर्वोत्तम हित उनकी मां के पास सुरक्षित है. लड़की 5 साल से कम उम्र की है निश्चित रूप से मां की कस्टडी में उसका सही विकास संभव है. लड़के को भी उसकी बहन से अलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि दोनों समान रूप से एक दूसरे के प्यार के हकदार हैं. हाईकोर्ट ने पिता को आदेश दिए कि वे 7 दिनों के भीतर नाबालिक बच्चों को उनकी मां को सौंप दें. इसी के साथ कोर्ट ने पिता को बच्चों से मिलने की भी छूट दे दी है.