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हरियाणा की आत्मगाथा जानें खुद हरियाणा की जुबानी! - हरियाणा इतिहासिक पहलू

इस प्रदेश की विशेषता आरम्भ से ही रही है, जहां एक ओर यहां भारतीय संस्कृति के प्रति अगाध श्रद्धा विद्यमान रही है तो दूसरी ओर यह प्रदेश वीर योद्धाओं की जननी रहा है.

haryana culture and diversity of haryana in poem
हरियाणा की आत्मगाथा जानें खुद हरियाणा की जुबानी!
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Published : Nov 1, 2020, 7:02 AM IST

चंडीगढ़: आज हरियाणा दिवस है. इस मौके पर ईटीवी भारत की टीम ने अद्भुत हरियाणा की एक झलक आपके सामने रखने की कोशिश की है. ये प्रदेश नदी-नालों, पर्वतों एवं भूखंडों के नाम तक में भारतीय संस्कृति के गहरे संबंध को प्रकट करता है. इस प्रदेश का वर्णन मनुस्मृति, महाभाष्य, बोयण वर्णसूत्र, वशिष्ठ धर्मसूत्र और विनय पिटिक और महाभारत के ग्रंथों में मिलता है.

यहां वीरों ने शत्रुओं का डटकर सामना किया है तथा देश रक्षा के लिए बड़े से बड़े बलिदान दिए हैं. वीर हेमू, वीर चूड़ामणि, बल्लभगढ़ नरेश नाहर सिंह, राव तुला राम, अमर सेनानी राव कृष्ण गोपाल आदि महान योद्धाओं का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा हुआ है.

हरियाणा की आत्मगाथा जानें खुद हरियाणा की जुबानी, देखिए वीडियो

तो चलिए हरियाणा को हरियाणा की जुबानी जानते हैं-

मैं हरियाणा हूं... मैं हरि की भूमि हूं... मेरी चर्चा तमाम महाकाव्यों में होती है. मैं गीता की जन्मभूमि हूं. मैंने दुनिया को जीने की राह बताई है. मैंने पानीपत की लड़ाइयां देखी हैं. मैंने अंग्रेजों का राज देखा है. मैंने गांधी की चाल देखी है. मैंने गुलामी की जंजीरों को देखा है. मैंने भारत को आजाद होते हुए देखा है.. मैं हरियाणा हूं.

यूं तो काल-कालांतर से मैं यहीं हूं, लेकिन आजाद भारत में औपचारिक रूप से मेरा जन्म 1 नवंबर, साल 1966 में हुआ, जब मैं अपने बड़े भाई पंजाब से अलग होकर अस्तित्व में आया. शुरुआत में 7 जिलों को जोड़ कर मैं एक राज्य बना था, लेकिन आज मैं धीरे-धीरे 22 जिलों का सुखी संपन्न राज्य हूं.

मेरे उत्तरी हिस्से में स्थित यमुना-घग्गर के मैदान हैं. सुदूर उत्तर में शिवालिक पहाड़ियों की पट्टी, दक्षिण-पश्चिम में बांगर क्षेत्र और दक्षिणी हिस्से में अरावली पर्वतमालाओं के अंतिमांश है, जिनका क्षैतिज विस्तार राजस्थान से दिल्ली तक है.

मेरे बाशिदें खुद को हरियाणवी कह कर बहुत गर्व करते हैं. खेती इनका मूल धर्म है. इन्हें दूध-दही और चौपाल का हुक्का बहुत पसंद है. देशी बोली, सादा जीवन-सादा विचार, यही तो है इनके जीवन का सूत्र धार.

मैं देश का ऐसा पहला राज्‍य हूं, जहां सबसे पहले गांव-गांव तक बिजली पहुंची. आज मुझे भारत का विशाल औद्योगिक हब माना जाता है. मैं कारों, ट्रैक्‍टरों, मोटरसाइकिलों, साइकिलों, रेफ्रिजरेटरों, वैज्ञानिक उपकरणों का सबसे बड़ा उत्पादक माना जाता हूं.

आज पूरी दुनिया में मेरे नाम का डंका बज रहा है. हमारी बिटिया ने चांद पर अपना नाम लिखा. हमारे खिलाड़ियों ने दुनियाभर में झंडे गाड़े हैं. अब मैं 54 साल का हो चुका हूं और आज मेरा जन्मदिन है. मैं हरियाणा हूं.

ये पढ़ें- मशहूर हरियाणवी लोक कलाकारों ने गीतों-रागणियों के जरिए पेश किया हरियाणा के सतरंगी रंग

चंडीगढ़: आज हरियाणा दिवस है. इस मौके पर ईटीवी भारत की टीम ने अद्भुत हरियाणा की एक झलक आपके सामने रखने की कोशिश की है. ये प्रदेश नदी-नालों, पर्वतों एवं भूखंडों के नाम तक में भारतीय संस्कृति के गहरे संबंध को प्रकट करता है. इस प्रदेश का वर्णन मनुस्मृति, महाभाष्य, बोयण वर्णसूत्र, वशिष्ठ धर्मसूत्र और विनय पिटिक और महाभारत के ग्रंथों में मिलता है.

यहां वीरों ने शत्रुओं का डटकर सामना किया है तथा देश रक्षा के लिए बड़े से बड़े बलिदान दिए हैं. वीर हेमू, वीर चूड़ामणि, बल्लभगढ़ नरेश नाहर सिंह, राव तुला राम, अमर सेनानी राव कृष्ण गोपाल आदि महान योद्धाओं का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा हुआ है.

हरियाणा की आत्मगाथा जानें खुद हरियाणा की जुबानी, देखिए वीडियो

तो चलिए हरियाणा को हरियाणा की जुबानी जानते हैं-

मैं हरियाणा हूं... मैं हरि की भूमि हूं... मेरी चर्चा तमाम महाकाव्यों में होती है. मैं गीता की जन्मभूमि हूं. मैंने दुनिया को जीने की राह बताई है. मैंने पानीपत की लड़ाइयां देखी हैं. मैंने अंग्रेजों का राज देखा है. मैंने गांधी की चाल देखी है. मैंने गुलामी की जंजीरों को देखा है. मैंने भारत को आजाद होते हुए देखा है.. मैं हरियाणा हूं.

यूं तो काल-कालांतर से मैं यहीं हूं, लेकिन आजाद भारत में औपचारिक रूप से मेरा जन्म 1 नवंबर, साल 1966 में हुआ, जब मैं अपने बड़े भाई पंजाब से अलग होकर अस्तित्व में आया. शुरुआत में 7 जिलों को जोड़ कर मैं एक राज्य बना था, लेकिन आज मैं धीरे-धीरे 22 जिलों का सुखी संपन्न राज्य हूं.

मेरे उत्तरी हिस्से में स्थित यमुना-घग्गर के मैदान हैं. सुदूर उत्तर में शिवालिक पहाड़ियों की पट्टी, दक्षिण-पश्चिम में बांगर क्षेत्र और दक्षिणी हिस्से में अरावली पर्वतमालाओं के अंतिमांश है, जिनका क्षैतिज विस्तार राजस्थान से दिल्ली तक है.

मेरे बाशिदें खुद को हरियाणवी कह कर बहुत गर्व करते हैं. खेती इनका मूल धर्म है. इन्हें दूध-दही और चौपाल का हुक्का बहुत पसंद है. देशी बोली, सादा जीवन-सादा विचार, यही तो है इनके जीवन का सूत्र धार.

मैं देश का ऐसा पहला राज्‍य हूं, जहां सबसे पहले गांव-गांव तक बिजली पहुंची. आज मुझे भारत का विशाल औद्योगिक हब माना जाता है. मैं कारों, ट्रैक्‍टरों, मोटरसाइकिलों, साइकिलों, रेफ्रिजरेटरों, वैज्ञानिक उपकरणों का सबसे बड़ा उत्पादक माना जाता हूं.

आज पूरी दुनिया में मेरे नाम का डंका बज रहा है. हमारी बिटिया ने चांद पर अपना नाम लिखा. हमारे खिलाड़ियों ने दुनियाभर में झंडे गाड़े हैं. अब मैं 54 साल का हो चुका हूं और आज मेरा जन्मदिन है. मैं हरियाणा हूं.

ये पढ़ें- मशहूर हरियाणवी लोक कलाकारों ने गीतों-रागणियों के जरिए पेश किया हरियाणा के सतरंगी रंग

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