चंडीगढ़: 2019 में कांग्रेस पार्टी से अलग हुए अशोक तंवर ने नई सियासी पारी की शुरुआत की है. हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे अशोक तंवर ने 'अपना भारत मोर्चा' के नाम से संगठन लॉन्च किया है. 'अपना भारत मोर्चा' का ऐलान अशोक तंवर ने दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में किया.
बता दें, पांच साल से अधिक समय तक कांग्रेस के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष रहे अशोक तंवर ने अपने समर्थकों को 2019 विधानसभा चुनाव में टिकट से वंचित करने के बाद पार्टी छोड़ को अलविदा कह दिया था. अब ये माना जा रहा है कि वो हरियाणा में दलित वोटरों को साधने की कोशिश करेंगे और कांग्रेस और बीजेपी के अलावा एक नया विकल्प लोगों के सामने होगा.
नई सियासी पारी की 'पिच' ऐसे होगी तैयार!
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि अशोक तंवर उन कांग्रेस नेताओें को भी साथ लाने की कवायद करेंगे, जो भूपेंद्र सिंह हुड्डा से नाखुश हैं और पार्टी में खुद अलग-थलग महसूस कर रहे हैं. हालांकि, आपको ये बता दें कि अशोक तंवर नई पार्टी शुरू करने वाले पहले पूर्व कांग्रेसी नहीं होंगे. इससे पहले भजनलाल ने 2004 में मुख्यमंत्री पद से वंचित होने के बाद हरियाणा जनहित कांग्रेस नामक अपनी पार्टी की स्थापना की थी, लेकिन बाद में इसका कांग्रेस में विलय हो गया था.
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अशोक तंवर ने नए मोर्चे की शुरुआत क्यों की?
दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब से 'अपना भारत मोर्चा' की शुरुआत हुई. अशोक तंवर ने लॉन्चिंग के दौरान कहा कि ये मोर्चा विचारधाराओं के उत्पीड़न और आधुनिक राजनीतिक ढांचे की उदासीनता के खिलाफ एक आंदोलन है. उन्होंने कहा कि ये मोर्चा एक ऐसा मंच है, जहां सकारात्मक ऊर्जाओं को संगठित किया जाएगा.
अशोक तंवर ने कहा कि युवा, किसान, कामगार, मध्यम वर्ग और महिलाओं की आकांक्षा को सशक्त किया जाएगा. 'अपना भारत मोर्चा' सकारात्मक बदलाव का प्रतिनिधि होगा. नई सियासी पारी की शुरुआत कर रहे तंवर ने कहा कि 'अपना भारत मोर्चा' मूल्यों पर आधारित एक पहल है और उसके तीन स्तम्भ हैं- समाज, बहस और चर्चा.
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जानें अशोक तंवर के बारे में-
अशोक तंवर ने विद्यार्थी जीवन में ही सियासत में दस्तक दे दी थी. पहले वो नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया के सचिव और बाद में अध्यक्ष रहे. तंवर करीब 5 साल तक युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे. साल 2009 के संसदीय चुनाव में उन्होंने सिरसा से इनेलो के डॉ. सीताराम को करीब 35,001 वोटों से हराया. इसके बाद वो 2014 के संसदीय चुनाव में सिरसा सीट से इनेलो के चरणजीत सिंह रोड़ी से हार गए. हार का सिलसिला यहीं नहीं रुका, 2019 के संसदीय चुनाव में बीजेपी उमीदवार सुनीता दुग्गल ने उन्हें हराया था.
तंवर और हुड्डा के बीच कोल्ड वॉर!
अशोक तंवर को 2014 के संसदीय चुनाव से कुछ समय पहले फरवरी 2014 में प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था. इसके बाद से उनकी और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की कोल्ड वॉर जारी थी. दिल्ली में तंवर के साथ मारपीट तक हुई. कांग्रेस में उनके प्रदेश अध्यक्ष रहते गुटबाजी चरम पर नजर आई. बाद में विधानसभा चुनाव से पहले भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कद बढ़ा दिया गया और इस बीच तंवर ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया.
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बीजेपी और कांग्रेस के सामने नई चुनौती
उल्लेखनीय है कि हरियाणा में फिलहाल कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी है, जबकि भारतीय जनता पार्टी जेजेपी के समर्थन से राज्य में शासन कर रही है. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अशोक तंवर की नजर उन मतदाताओं पर होगी जो कांग्रेस और बीजेपी दोनों की विचारधाराओं से सहमत नहीं हैं. चूंकि अशोक तंवर दलित समाज से आते हैं, ऐसे में उनकी कोशिश ये भी होगी की दलित मतदाताओं को साथ लेकर चला जाए.