भिवानीः लोहारू के सेहर गांव में पिछले करीब 300 वर्षों से प्रेम और भाईचारे का प्रतीक होली का त्यौहार विशेष रूप से मनाया जाता है. देवर-भाभी के अटूट रिश्ते की मिशाल के रूप में गांव में मनाए जाने वाले इस त्योहार पर गांव के चौक में पानी से भरी बड़ी कढ़ाई रख दी जाती है और गांव की सभी महिलाएं और पुरुष एकत्रित होकर पानी और कोड़े की होली खेलते हैं.
देवर-भाभी खेलते हैं कोड़े मार होली
गांव में रिश्ते में देवर और भाभी लगने वाले महिला और पुरुष कढ़ाई के दोनों और चक्कर लगाना शुरू कर देते हैं. भाभी के हाथ में दुपट्टे का बनाया हुआ कोड़ा और देवर के हाथ में पानी की बाल्टी होती है. भाभी देवर पर कोड़रे की बरसात करती है और देवर भाभी पर पानी का. इस खेल में जो भी खिलाड़ी मैदान छोड़ देता है, वह हारा हुआ माना जाता है.
कोड़े मार होली के साथ जुड़ी है परंपरा
यहीं नहीं होली के साथ एक परंपरा भी जुड़ी हुई है. ग्रामीण बताते हैं इस होली में जिस भी देवर-भाभी के बीच जमकर कोड़े बरसाए जाते हैं और पानी की बाल्टी से पानी की बौछारें मारी जाती हैं, उन्हें अगले सीजन की फसल काफी अच्छी मिलती है.
7 दिनों तक खेली जाती है कोड़े मार होली
ये परपंरा गांव में सात दिनों तक चलती है. गांव में होली खेलते समय कोई व्यक्ति शराब इत्यादि का सेवन नहीं करता और होली में हर्बल रंगों का प्रयोग किया जाता है.
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