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GJU के छात्रों ने बना दी SMART BUS, घर बैठे जान सकते हैं लोकेशन और खाली सीटें - smart bus app

डिजीटल भारत की दिशा में गुरु जंभेश्वर युनिवर्सिटी के छात्रों ने एक बेहद सराहनीय कदम उठाया है. ये कारनामा बीटेक के 3 छात्रों ने करके दिखाया है. इन छात्रों ने अपने प्रोजेक्ट के लिए रोजमर्रा की परेशानियों में से ही एक परेशानी को विषय के रूप में चुना.

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Published : Jun 19, 2019, 6:40 PM IST

हिसार: बीटेक के छात्र मनीष को 2 साल पहले रेलवे की परीक्षा देने के लिए कहीं बाहर जाना था लेकिन उसे जो बस मिली वह पहले से ही सवारियों से भरी हुई थी और इस तरह वो समय पर बस नहीं ले पाया और उसका पेपर छूट गया.

मनीष ने सोचा कि कोई ऐसी डिवाइस होनी चाहिए ताकि इंतजार कर रहे यात्री को बस की लोकेशन और उसमें खाली सीट की जानकारी मिल सके. इसी आइडिया को उन्होंने अपने प्रोजेक्ट के रूप में लिया और इस तरीके से स्मार्ट बस बनाने का प्रोजेक्ट अस्तित्व में आया.

क्लिक कर देखें वीडियो

तैयार की गई इस एप से यात्री बस की लोकेशन और उसमें सीटों के खाली होने के बारे में जानकारी पा सकते हैं. मात्र 4 महीने में ही 1000 रुपये की लागत से इस डिवाइस को डेवलप किया गया है. अगर इस डिवाइस को राज्य सरकार बसों में लगाकर प्रशिक्षण करें तो ये यात्रा को सुगम बनाने की ओर एक बढ़िया कदम होगा.

हिसार: बीटेक के छात्र मनीष को 2 साल पहले रेलवे की परीक्षा देने के लिए कहीं बाहर जाना था लेकिन उसे जो बस मिली वह पहले से ही सवारियों से भरी हुई थी और इस तरह वो समय पर बस नहीं ले पाया और उसका पेपर छूट गया.

मनीष ने सोचा कि कोई ऐसी डिवाइस होनी चाहिए ताकि इंतजार कर रहे यात्री को बस की लोकेशन और उसमें खाली सीट की जानकारी मिल सके. इसी आइडिया को उन्होंने अपने प्रोजेक्ट के रूप में लिया और इस तरीके से स्मार्ट बस बनाने का प्रोजेक्ट अस्तित्व में आया.

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तैयार की गई इस एप से यात्री बस की लोकेशन और उसमें सीटों के खाली होने के बारे में जानकारी पा सकते हैं. मात्र 4 महीने में ही 1000 रुपये की लागत से इस डिवाइस को डेवलप किया गया है. अगर इस डिवाइस को राज्य सरकार बसों में लगाकर प्रशिक्षण करें तो ये यात्रा को सुगम बनाने की ओर एक बढ़िया कदम होगा.

Intro:एंकर --- वर्तमान में तकनीक जिस तरीके से विस्तार कर रही है उससे आमजन की सुगमता और बढ़ रही है। हर रोज नए प्रयोग हो रहे हैं जो अच्छे खासे लोगों के बीच में पसंद भी किए जा रहे हैं और उनके दैनिक जीवन में काम भी आ रहे हैं। लेकिन जब किसी संस्थान के छात्रों द्वारा कोई नई खोज की जाए और वह एक क्रांतिकारी बदलाव की और संकेत करें तो वह अपने आप में बड़ी बात हो जाती है। ऐसा ही कुछ कारनामा हिसार में स्थित गुरु जंभेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के तीन बीटेक छात्रों ने कर दिखाया है। इन छात्रों ने अपने शैक्षणिक प्रोजेक्ट में एक ऐसे टॉपिक को लिया जो उनकी दैनिक जीवन के रूटीन में उन्हें प्रॉब्लम के रूप में पेश आया। बीटेक के एक छात्र मनीष को 2 साल पहले रेलवे की परीक्षा देने कहीं बाहर जाना था लेकिन उसे जो बसे मिली वह लगभग पहले से ही सवारियों से भरी हुई थी और जिस वजह से उसका अपना पेपर छूट गया। मनीष ने सोचा कि कोई ऐसी डिवाइस होनी चाहिए ताकि इंतजार कर रहे यात्री को बस की लोकेशन और उसमें सीट की उपलब्धता की जानकारी मिल सके। इसी आइडिया को उन्होंने अपने प्रोजेक्ट के रूप में लिया और इस तरीके से स्मार्ट बस बनाने का प्रोजेक्ट अस्तित्व में आया।

वीओ --- प्रोजेक्ट बनाने वाले बच्चों के गाइड और कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर विजय पाल ने बताया कि इस आइडिया को लेकर छात्र उनके पास आए और उन्होंने उन्हें हर वह संभव मदद दी जिससे जमीनी स्तर पर यह प्रयोग सफल हो सका। विजयपाल ने बताया कि इन बच्चों ने लगभग 4 महीने की कड़ी मेहनत से इस प्रोजेक्ट को बनाया है। जिसके आधार पर अपने गंतव्य स्थान पर जाने के लिए इंतजार कर रहा यात्री खुद के मोबाइल फोन में एक ऐप के माध्यम से बस की लोकेशन और उसमें सीटों की उपलब्धता के बारे में जानकारी पा सकता है। प्रोफेसर विजय पाल ने बताया कि इस तरीके से कोई भी यात्री अपने ट्रैवल प्लान को अच्छे तरीके से मैनेज कर सकता है और उनके संस्थान के 3 छात्रों ने इस प्रयोग को बखूबी सफल करके दिखाया है।

बाइट --- विजत पाल, प्रोजेक्ट गाइड और असिस्टेंट प्रोफेसर।


Body:वीओ --- इस प्रोजेक्ट पर काम करने वाले बीटेक छात्र मनीष ने बताया कि 2 साल पहले वह अपना रेलवे का टेस्ट देने कहीं गए थे लेकिन लगातार दो घंटे के बाद भी उन्हें बस नहीं मिली। मनीष ने बताया कि इसके बाद भी जो बस आई वह पहले से ही सवारियों से खचाखच भरी हुई थी और उनमें उसे जगह नहीं मिली। जिसके कारण वो रेलवे का एग्जाम देने से वंचित रह गए। मनीष ने बताया कि जब फाइनल ईयर में उन्हें किसी प्रोजेक्ट पर काम करना था तो यह आइडिया प्रोफेसर विजय पाल से डिस्कस किया। जिसमें उन्होंने हर तरीके से मदद देने का आश्वासन दिया। मनीष ने बताया कि मात्र 4 महीने में ही 1000 रुपए की लागत से उन्होंने इस डिवाइस को डेवलप किया है। साथ ही मनीष ने कहा कि अगर कमर्शियल लेवल पर इस प्रोडक्ट को बनाया जाए तो यह लागत और भी कम आ सकती है। अब मनीष का सपना है कि राज्य परिवहन की बसों में इस प्रोजेक्ट को ऐसे प्रोडक्ट लागू किया जाए ताकि आम लोगों के लिए एक सुविधा हो और सरकार को अपनी बसों में यात्रियों की संख्या को ट्रैक करते हुए रेवेन्यू बढ़ाने में मदद मिल सके।

बाइट --- मनीष, बीटेक छात्र।


Conclusion:
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