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10वीं फेल शख्स की कला के दीवाने हुए लोग, दिलचस्प है नेपाली पश्मीना शॉल बनाने की कहानी

50 ग्राम की नेपाली पश्मीना शॉल 35वें सूरजकुंड मेले की शान बढ़ा रही है. नेपाल की राजधानी काठमांडू से मेले में पहुंचे हस्तशिल्पकार तेज नारायण 27 साल से पश्मीना शॉल बना रहे हैं. इनका ये काम अब उद्योग की शक्ल ले चुका है. हर साल लाखों की कमाई हो रही है.

Surajkund Mela 2022
50 ग्राम की नेपाली पश्मीना शॉल
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Published : Mar 30, 2022, 6:41 PM IST

फरीदाबाद: नेपाल की राजधानी काठमांडू से पश्मीना शॉल लेकर 35वें सूरजकुंड मेले में आए हस्तशिल्पकार तेज नारायण का बिहार से नेपाल तक का सफर बेहद दिलचस्प है. 10वीं में फेल होने के बाद परिवार के डर और कुछ करने की ललक ने उन्हें 1985 में काठमांडू पहुंच गए. वहां उन्होंने सिल्क का काम करना शुरू कर दिया. इस काम में उनका पूरा परिवार पहले से ही जुड़ा हुआ था.

उद्योग का रूप ले चुका है पश्मीना शॉल का काम- 40 साल पहले 10वीं में फेल होकर घर से भागकर नेपाल गए तेज नारायण ने कभी नहीं सोचा था कि जिस पश्मीना के काम शुरू कर रहे हैं. वह एक दिन बड़ा बिजनेस बन जाएगा. आज पश्मीना के उनके काम को एक उद्योग का रूप मिल चुका है. उनकी एक कंपनी है, जिसको उनकी बेटी पूजा संभाल रही हैं और वो भी साथ में काम कर रहे हैं. सिल्क के पुश्तैनी काम को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने इसे पश्मीना उद्योग में बदल दिया है. यूरोपीय देशों में आज उनकी पश्मीना शॉल की भारी डिमांड है. जिससे वह सालाना लाखों रुपये की कमाई करते हैं.

10वीं फेल शख्स की कला के दीवाने हुए लोग, दिलचस्प है नेपाली पश्मीना शॉल बनाने की कहानी

मंगोलिया से मंगाए जाते हैं बकरी के बाल- शिल्पकार तेज नारायण बताते हैं कि उन्होंने करीब 27 साल पहले 1995 में पश्मीना शॉल बनाने का काम शुरू किया. नेपाली पश्मीना शॉल बनाने के लिए बकरी के बच्चे का बाल मंगोलिया से मंगाया जाता है. मंगोलिया में पहाड़ों पर पाई जाने वाली बकरियों की एक प्रजाति (अल्ताई माउंटेन) के नवजात बच्चों के गर्दन और कंधे के नीचे के बालों का प्रयोग किया जाता है. 50 ग्राम की पश्मीना शॉल बनाने के लिए करीब 17 बकरियों के बच्चों की गर्दन के बाल की जरूरत होती है. एक बकरी के बच्चे से लगभग 3 ग्राम बाल इकट्ठे होते हैं.

Surajkund Mela 2022
नेपाली पश्मीना शॉल दिखाते शिल्पकार तेज नारायण.

एक शॉल एक महीने में होती है तैयार- कच्चा माल मंगोलिया से मंगवा कर, गांधी चरखा से सूत काटकर पश्मीना उत्पाद के लिए तैयार किया जाता है. 50 ग्राम के नेपाली पश्मीना शॉल की डिमांड यूरोपियन देशों तक छाई हुई है. एक पश्मीना शॉल को बनाने में एक महीने का समय लगता है. जबकि एक सामान्य शॉल एक दिन में तैयार कर ली जाती है. शिल्पकार तेज नारायण बताते हैं कि पश्मीना का एक धागा सिर्फ 14 से 19 माइक्रोन्स का होता है, यानि इंसान के बाल से भी छह गुना पतला. इसे बनाने वाले कारीगर इस काम में पारंगत होते हैं, क्योंकि जानकारी न होने पर इसके धागे टूटते हैं और बुनाई नहीं हो पाती. ऐसा माना जाता है कि पश्मीना का धागा जितना पतला होता है वह उतना ही ज्यादा गर्मी देता है. इस शॉल की कीमत लाखों में होती है.

ये भी पढ़ें: Surajkund Mela 2022: लोगों को पसंद आ रही जम्मू-कश्मीर की पश्मीना शॉल, इस जानवर के ऊन से होती है तैयार

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फरीदाबाद: नेपाल की राजधानी काठमांडू से पश्मीना शॉल लेकर 35वें सूरजकुंड मेले में आए हस्तशिल्पकार तेज नारायण का बिहार से नेपाल तक का सफर बेहद दिलचस्प है. 10वीं में फेल होने के बाद परिवार के डर और कुछ करने की ललक ने उन्हें 1985 में काठमांडू पहुंच गए. वहां उन्होंने सिल्क का काम करना शुरू कर दिया. इस काम में उनका पूरा परिवार पहले से ही जुड़ा हुआ था.

उद्योग का रूप ले चुका है पश्मीना शॉल का काम- 40 साल पहले 10वीं में फेल होकर घर से भागकर नेपाल गए तेज नारायण ने कभी नहीं सोचा था कि जिस पश्मीना के काम शुरू कर रहे हैं. वह एक दिन बड़ा बिजनेस बन जाएगा. आज पश्मीना के उनके काम को एक उद्योग का रूप मिल चुका है. उनकी एक कंपनी है, जिसको उनकी बेटी पूजा संभाल रही हैं और वो भी साथ में काम कर रहे हैं. सिल्क के पुश्तैनी काम को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने इसे पश्मीना उद्योग में बदल दिया है. यूरोपीय देशों में आज उनकी पश्मीना शॉल की भारी डिमांड है. जिससे वह सालाना लाखों रुपये की कमाई करते हैं.

10वीं फेल शख्स की कला के दीवाने हुए लोग, दिलचस्प है नेपाली पश्मीना शॉल बनाने की कहानी

मंगोलिया से मंगाए जाते हैं बकरी के बाल- शिल्पकार तेज नारायण बताते हैं कि उन्होंने करीब 27 साल पहले 1995 में पश्मीना शॉल बनाने का काम शुरू किया. नेपाली पश्मीना शॉल बनाने के लिए बकरी के बच्चे का बाल मंगोलिया से मंगाया जाता है. मंगोलिया में पहाड़ों पर पाई जाने वाली बकरियों की एक प्रजाति (अल्ताई माउंटेन) के नवजात बच्चों के गर्दन और कंधे के नीचे के बालों का प्रयोग किया जाता है. 50 ग्राम की पश्मीना शॉल बनाने के लिए करीब 17 बकरियों के बच्चों की गर्दन के बाल की जरूरत होती है. एक बकरी के बच्चे से लगभग 3 ग्राम बाल इकट्ठे होते हैं.

Surajkund Mela 2022
नेपाली पश्मीना शॉल दिखाते शिल्पकार तेज नारायण.

एक शॉल एक महीने में होती है तैयार- कच्चा माल मंगोलिया से मंगवा कर, गांधी चरखा से सूत काटकर पश्मीना उत्पाद के लिए तैयार किया जाता है. 50 ग्राम के नेपाली पश्मीना शॉल की डिमांड यूरोपियन देशों तक छाई हुई है. एक पश्मीना शॉल को बनाने में एक महीने का समय लगता है. जबकि एक सामान्य शॉल एक दिन में तैयार कर ली जाती है. शिल्पकार तेज नारायण बताते हैं कि पश्मीना का एक धागा सिर्फ 14 से 19 माइक्रोन्स का होता है, यानि इंसान के बाल से भी छह गुना पतला. इसे बनाने वाले कारीगर इस काम में पारंगत होते हैं, क्योंकि जानकारी न होने पर इसके धागे टूटते हैं और बुनाई नहीं हो पाती. ऐसा माना जाता है कि पश्मीना का धागा जितना पतला होता है वह उतना ही ज्यादा गर्मी देता है. इस शॉल की कीमत लाखों में होती है.

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