फरीदकोट: फरीदकोट जिले के गांव हरिनो में पिछले साल सरपंच चुनाव के प्रचार के दौरान मारे गए युवक गुरप्रीत हरिनो के मामले में फरीदकोट पुलिस ने बड़ी कार्रवाई की है. फरीदकोट पुलिस ने मामले में मुख्य आरोपी सांसद अमृतपाल सिंह और विदेशी आतंकवादी अर्श दल्ला के खिलाफ यूएपीए का मामला दर्ज किया है. आपको बता दें कि सांसद अमृतपाल पहले से ही राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद हैं.
पूरा मामला क्या है?: गुरप्रीत हरिनो की पिछले साल 9 अक्टूबर को हत्या कर दी गई थी. उस समय गुरप्रीत सिंह सरपंच पद के एक उम्मीदवार के लिए प्रचार करने के बाद घर लौट रहे थे, तभी बाइक सवार बदमाशों ने गोलियां चलाकर गुरप्रीत सिंह हरिनो की हत्या कर दी थी. इस गोलीबारी में गुरप्रीत सिंह को चार गोलियां लगीं और गोलियां चलाने के बाद हमलावर मौके से फरार हो गया. पुलिस ने इस मामले में एसआईटी का भी गठन किया है.
परिवार ने लगाये थे गंभीर आरोप: पंथक संगठनों से जुड़े गुरप्रीत सिंह हरिनो की हत्या मामले में परिवार ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए अमृतपाल सिंह और उनके समर्थकों पर कई गंभीर आरोप भी लगाए थे. इसके अलावा उन्होंने अमृतपाल सिंह को पुलिस जांच में शामिल करने की मांग की थी. जिसके बाद पुलिस ने मामले में सांसद अमृतपाल सिंह को नामजद किया था.
6 आरोपी नामजद, तीन गिरफ्तार: इस हत्या मामले में विदेश में रह रहे गैंगस्टर अर्शदीप सिंह दल्ला और खडूर साहिब से सांसद अमृतपाल सिंह समेत छह अन्य आरोपियों को नामजद किया गया है. पुलिस ने इस हत्याकांड में तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है और उनकी पहचान के आधार पर इस हाईप्रोफाइल हत्याकांड में पुलिस द्वारा आगे की कार्रवाई की जा रही है.
यूएपीए धारा क्या है?: भारत में अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए 1967 में यूएपीए कानून बनाया गया था. इस कानून के तहत अगर सरकार को लगता है कि कोई व्यक्ति या संगठन किसी देश में शत्रुतापूर्ण गतिविधियों या आतंकवादी घटनाओं में शामिल है, तो उस व्यक्ति पर मुकदमा चलाए बिना उसे राष्ट्र-विरोधी घोषित किया जा सकता है.
इस अधिनियम की धारा 35 और 36 के तहत सरकार बिना किसी प्रक्रिया या नियम का पालन किए किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित कर सकती है. यह कानून इसलिए भी सख्त माना जाता है क्योंकि इसमें कहा गया है कि आरोपी को तब तक जमानत नहीं दी जा सकती जब तक वह खुद को निर्दोष साबित नहीं कर देता.
हालांकि, वर्ष 2019 से पहले यह अधिनियम केवल आतंकवादी घटनाओं में संलिप्त समूहों एवं आतंकवादियों पर ही लगाया जाता था, लेकिन वर्ष 2019 में अधिनियम में संशोधन के बाद किसी भी व्यक्ति या संदिग्ध आतंकवादी पर यह अधिनियम लगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई.