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'ए भोले किसान, मेरी दो बात मान ले- एक बोलना सीख, दूसरा दुश्मन को पहचान ले', सर छोटूराम जयंती विशेष

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Published : Nov 24, 2019, 10:53 AM IST

Updated : Nov 24, 2019, 11:42 AM IST

पूरा देश-प्रदेश आज किसान मसीहा सर छोटूराम की जयंती मना रहा है. उनका जन्म 24 नवंबर, 1881 में झज्जर के गांव गढ़ी सांपला (अब रोहतक) में बहुत ही साधारण परिवार में हुआ था. उन्हें अंग्रेज हुकुमत में किसानों के अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करने के लिए जाना जाता था.

sir chhotu ram rohtak

चंडीगढ़: सर छोटूराम को गरीबों का मसीहा कहा जाता था. देखने में छोटूराम छोटे कद के थे लेकिन उनकी छवि और व्यक्तितत्व से उनका कद का ऊंचा हो गया था. छोटूराम दीन दुखियों और गरीबों के बंधु, अंग्रेज़ हुकूमत के लिए 'सर' तो किसानों के लिए मसीहा थे.

कैसे पड़ा छोटूराम नाम?

चौधरी छोटूराम का वास्तविक नाम राय रिछपाल था, लेकिन परिवार में सभी प्यार से उन्हें 'छोटू' कहकर पुकारते थे. जिसके बाद स्कूल में भी उनका नाम छोटूराम ही दर्ज कर लिया गया और यहीं से बालक राय रिछपाल का वास्तविक नाम छोटूराम हो गया.छोटूराम बहुत ही साधारण जीवन जीते थे और वे अपनी सैलरी का एक बड़ा हिस्सा रोहतक के एक स्कूल को दान कर दिया करते थे.

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सर छोटूराम.

वकालत करने के साथ ही उन्होंने 1912 में जाट सभा का गठन किया और प्रथम विश्व युद्ध में उन्होंने रोहतक के 22 हजार से ज्यादा सैनिकों को सेना में भर्ती करवाया.1905 में सर छोटूराम ने कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह के सह-निजी सचिव के रूप में कार्य किया और यहीं साल 1907 तक अंग्रेजी के एक समाचार पत्र का संपादन किया. यहां से छोटूराम आगरा में वकालत की डिग्री करने आ गए. 1911 में उन्होंने लॉ की डिग्री हासिल की.

अंग्रेजों को वापस लेना पड़ा फैसला

1915 में छोटूराम ने एक बार फिर से पत्रकारिता शुरू की. इस बार छोटूराम ने खुद का अखबार निकाला जिसका नाम रखा जाट गजट. ये अखबार अब भी निकलता है और इसे हरियाणा का सबसे पुराना अखबार माना जाता है. इस अखबार के जरिए छोटूराम ने अंग्रेजों की मुखालफत शुरू कर दी. इसकी वजह से अंग्रेजी सरकार ने छोटूराम को देश निकाले का फरमान दे दिया. हालांकि पंजाब सरकार ने अंग्रेजी सरकार से फैसला वापस लेने को कहा, क्योंकि अगर छोटूराम को देश निकाला दिया जाता तो पंजाब में आंदोलन हो जाता. बाद में अंग्रेजी सरकार ने फैसला वापस ले लिया.

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सर छोटूराम.

ये भी पढ़ें: कभी इस तालाब में खुफिया सुरंग के रास्ते नहाने आती थीं महारानी, अब अपनी बदहाली पर बहा रहा आंसू

जब गांधी जी से नाराज होकर छोड़ी कांग्रेस

1916 में जब रोहतक में कांग्रेस कमेटी का गठन हुआ तो वो इसके अध्यक्ष बने थे. लेकिन 1920 में जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया, तो छोटूराम गांधी जी से नाराज हो गए और कांग्रेस से अलग हो गए. धीरे-धीरे करके वो पंजाब प्रांत के नेता बन गए और 1937 के प्रांतीय विधानसभा चुनावों के बाद विकास मंत्री बने.

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सर छोटूराम.

किसानों के लिए कई काम

छोटूराम ने किसानों के लिए कई महत्वपूर्ण काम किए. उनके इन कामों को अब भी किसानों के लिए मील का पत्थर माना जा सकता है. इनमें कर्जा माफी ऐक्ट, दुधारू पशुओं की नीलामी पर रोक, साहूकार पंजीकरण ऐक्ट, गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी ऐक्ट के जरिए कुर्क हुई जमीनों को किसानों को वापस दिलवाया, छोटूराम ने मार्केट कमिटियों को भी बनाया, जिससे किसानों को उनकी फसल का अच्छा पैसा मिलने लगा और आढ़तियों के शोषण से मुक्ति मिल गई, आदि कार्य शामिल हैं.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में हरियाणा के सांपला में सर छोटूराम की 64 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया था.

ये भी पढ़ें: 1962 रेजांगला युद्ध के जांबाज का सम्मान, योद्धा की वीर गाथा सुन विद्यार्थियों में भरा जोश

मोर के शिकार पर लगवाई रोक

जब अंग्रेजों का शासन था, तो उस वक्त गुड़गांव जिले के अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर कर्नल इलियस्टर मोर का शिकार करते थे. लोगों ने विरोध भी किया, लेकिल कर्नल नहीं माने. लोगों ने इसकी शिकायत सर छोटूराम से की और फिर छोटूराम ने अपने अखबार में इसके खिलाफ खूब लिखा. इतना लिखा कि कर्नल इलियस्टर ने माफी मांग ली और उसके बाद से ही भारत में मोरों की हत्या पर रोक लग गई.

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भाखड़ा नांगल बांध.

अंग्रेज भी सर छोटूराम से हुए खुश

एक समय ऐसा भी आया जब अंग्रेज भी सर छोटूराम पर खुश हो गए थे. वजह ये थी कि पहले विश्वयुद्ध और दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान छोटूराम के कहने पर हजारों लोग अंग्रेजों की सेना में भर्ती हुए थे. जब दूसरे विश्वयुद्ध में छोटूराम के कहने पर सैनिक अंग्रेजी सेना में भर्ती हो गए तो अंग्रेजों ने छोटूराम से कहा कि वो हरियाणा के लोगों के लिए सतलुज नदी पर बांध बनवाएंगे. 1944 में इस परियोजना को मंजूरी मिल गई और फिर भाखड़ा नांगल बांध बनाया गया. 9 जनवरी 1945 को सर छोटूराम का देहांत हो गया.

ये भी पढ़ें: किस्सा हरियाणे का: ये है शाह चोखा की दरगाह जहां बादशाह अकबर की भरी थी गोद

चंडीगढ़: सर छोटूराम को गरीबों का मसीहा कहा जाता था. देखने में छोटूराम छोटे कद के थे लेकिन उनकी छवि और व्यक्तितत्व से उनका कद का ऊंचा हो गया था. छोटूराम दीन दुखियों और गरीबों के बंधु, अंग्रेज़ हुकूमत के लिए 'सर' तो किसानों के लिए मसीहा थे.

कैसे पड़ा छोटूराम नाम?

चौधरी छोटूराम का वास्तविक नाम राय रिछपाल था, लेकिन परिवार में सभी प्यार से उन्हें 'छोटू' कहकर पुकारते थे. जिसके बाद स्कूल में भी उनका नाम छोटूराम ही दर्ज कर लिया गया और यहीं से बालक राय रिछपाल का वास्तविक नाम छोटूराम हो गया.छोटूराम बहुत ही साधारण जीवन जीते थे और वे अपनी सैलरी का एक बड़ा हिस्सा रोहतक के एक स्कूल को दान कर दिया करते थे.

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सर छोटूराम.

वकालत करने के साथ ही उन्होंने 1912 में जाट सभा का गठन किया और प्रथम विश्व युद्ध में उन्होंने रोहतक के 22 हजार से ज्यादा सैनिकों को सेना में भर्ती करवाया.1905 में सर छोटूराम ने कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह के सह-निजी सचिव के रूप में कार्य किया और यहीं साल 1907 तक अंग्रेजी के एक समाचार पत्र का संपादन किया. यहां से छोटूराम आगरा में वकालत की डिग्री करने आ गए. 1911 में उन्होंने लॉ की डिग्री हासिल की.

अंग्रेजों को वापस लेना पड़ा फैसला

1915 में छोटूराम ने एक बार फिर से पत्रकारिता शुरू की. इस बार छोटूराम ने खुद का अखबार निकाला जिसका नाम रखा जाट गजट. ये अखबार अब भी निकलता है और इसे हरियाणा का सबसे पुराना अखबार माना जाता है. इस अखबार के जरिए छोटूराम ने अंग्रेजों की मुखालफत शुरू कर दी. इसकी वजह से अंग्रेजी सरकार ने छोटूराम को देश निकाले का फरमान दे दिया. हालांकि पंजाब सरकार ने अंग्रेजी सरकार से फैसला वापस लेने को कहा, क्योंकि अगर छोटूराम को देश निकाला दिया जाता तो पंजाब में आंदोलन हो जाता. बाद में अंग्रेजी सरकार ने फैसला वापस ले लिया.

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सर छोटूराम.

ये भी पढ़ें: कभी इस तालाब में खुफिया सुरंग के रास्ते नहाने आती थीं महारानी, अब अपनी बदहाली पर बहा रहा आंसू

जब गांधी जी से नाराज होकर छोड़ी कांग्रेस

1916 में जब रोहतक में कांग्रेस कमेटी का गठन हुआ तो वो इसके अध्यक्ष बने थे. लेकिन 1920 में जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया, तो छोटूराम गांधी जी से नाराज हो गए और कांग्रेस से अलग हो गए. धीरे-धीरे करके वो पंजाब प्रांत के नेता बन गए और 1937 के प्रांतीय विधानसभा चुनावों के बाद विकास मंत्री बने.

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सर छोटूराम.

किसानों के लिए कई काम

छोटूराम ने किसानों के लिए कई महत्वपूर्ण काम किए. उनके इन कामों को अब भी किसानों के लिए मील का पत्थर माना जा सकता है. इनमें कर्जा माफी ऐक्ट, दुधारू पशुओं की नीलामी पर रोक, साहूकार पंजीकरण ऐक्ट, गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी ऐक्ट के जरिए कुर्क हुई जमीनों को किसानों को वापस दिलवाया, छोटूराम ने मार्केट कमिटियों को भी बनाया, जिससे किसानों को उनकी फसल का अच्छा पैसा मिलने लगा और आढ़तियों के शोषण से मुक्ति मिल गई, आदि कार्य शामिल हैं.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में हरियाणा के सांपला में सर छोटूराम की 64 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया था.

ये भी पढ़ें: 1962 रेजांगला युद्ध के जांबाज का सम्मान, योद्धा की वीर गाथा सुन विद्यार्थियों में भरा जोश

मोर के शिकार पर लगवाई रोक

जब अंग्रेजों का शासन था, तो उस वक्त गुड़गांव जिले के अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर कर्नल इलियस्टर मोर का शिकार करते थे. लोगों ने विरोध भी किया, लेकिल कर्नल नहीं माने. लोगों ने इसकी शिकायत सर छोटूराम से की और फिर छोटूराम ने अपने अखबार में इसके खिलाफ खूब लिखा. इतना लिखा कि कर्नल इलियस्टर ने माफी मांग ली और उसके बाद से ही भारत में मोरों की हत्या पर रोक लग गई.

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भाखड़ा नांगल बांध.

अंग्रेज भी सर छोटूराम से हुए खुश

एक समय ऐसा भी आया जब अंग्रेज भी सर छोटूराम पर खुश हो गए थे. वजह ये थी कि पहले विश्वयुद्ध और दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान छोटूराम के कहने पर हजारों लोग अंग्रेजों की सेना में भर्ती हुए थे. जब दूसरे विश्वयुद्ध में छोटूराम के कहने पर सैनिक अंग्रेजी सेना में भर्ती हो गए तो अंग्रेजों ने छोटूराम से कहा कि वो हरियाणा के लोगों के लिए सतलुज नदी पर बांध बनवाएंगे. 1944 में इस परियोजना को मंजूरी मिल गई और फिर भाखड़ा नांगल बांध बनाया गया. 9 जनवरी 1945 को सर छोटूराम का देहांत हो गया.

ये भी पढ़ें: किस्सा हरियाणे का: ये है शाह चोखा की दरगाह जहां बादशाह अकबर की भरी थी गोद

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‘ए भोले किसान, मेरी दो बात मान ले- एक बोलना सीख और एक दुश्मन को पहचान ले’, सर छोटूराम जयंती विशेष



पूरा देश-प्रदेश आज किसान मसीहा सर छोटूराम की जयंती मना रहा है. उनका जन्म 24 नवंबर, 1881 में झज्जर के गांव गढ़ी सांपला (अब रोहतक) में बहुत ही साधारण परिवार में हुआ था. उन्हें अंग्रेज हुकुमत में किसानों के अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करने के लिए जाना जाता था.

चंडीगढ़: सर छोटूराम को गरीबों का मसीहा कहा जाता था. देखने में छोटूराम छोटे कद के थे लेकिन उनकी छवि और व्यक्तितत्व से उनका कद का ऊंचा हो गया था. छोटूराम दीन दुखियों और गरीबों के बंधु, अंग्रेज़ हुकूमत के लिए 'सर' तो किसानों के लिए मसीहा थे. 

कैसे पड़ा छोटूराम नाम?

चौधरी छोटूराम का वास्तविक नाम राय रिछपाल था, लेकिन परिवार में सभी प्यार से उन्हें 'छोटू' कहकर पुकारते थे. जिसके बाद स्कूल में भी उनका नाम छोटूराम ही दर्ज कर लिया गया और यहीं से बालक राय रिछपाल का वास्तविक नाम छोटूराम हो गया.

छोटूराम बहुत ही साधारण जीवन जीते थे और वे अपनी सैलरी का एक बड़ा हिस्सा रोहतक के एक स्कूल को दान कर दिया करते थे. वकालत करने के साथ ही उन्होंने 1912 में जाट सभा का गठन किया और प्रथम विश्व युद्ध में उन्होंने रोहतक के 22 हजार से ज्यादा सैनिकों को सेना में भर्ती करवाया.

1905 में सर छोटूराम ने कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह के सह-निजी सचिव के रूप में कार्य किया और यहीं साल 1907 तक अंग्रेजी के एक समाचार पत्र का संपादन किया. यहां से छोटूराम आगरा में वकालत की डिग्री करने आ गए. 1911 में उन्होंने लॉ की डिग्री हासिल की. 

अंग्रेजों को वापस लेना पड़ा फैसला 

1915 में छोटूराम ने एक बार फिर से पत्रकारिता शुरू की. इस बार छोटूराम ने खुद का अखबार निकाला जिसका नाम रखा जाट गजट. ये अखबार अब भी निकलता है और इसे हरियाणा का सबसे पुराना अखबार माना जाता है. इस अखबार के जरिए छोटूराम ने अंग्रेजों की मुखालफत शुरू कर दी. इसकी वजह से अंग्रेजी सरकार ने छोटूराम को देश निकाले का फरमान दे दिया. हालांकि पंजाब सरकार ने अंग्रेजी सरकार से फैसला वापस लेने को कहा, क्योंकि अगर छोटूराम को देश निकाला दिया जाता तो पंजाब में आंदोलन हो जाता. बाद में अंग्रेजी सरकार ने फैसला वापस ले लिया. 

जब गांधी जी से नाराज होकर छोड़ी कांग्रेस

1916 में जब रोहतक में कांग्रेस कमेटी का गठन हुआ तो वो इसके अध्यक्ष बने थे. लेकिन 1920 में जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया, तो छोटूराम गांधी जी से नाराज हो गए और कांग्रेस से अलग हो गए. धीरे-धीरे करके वो पंजाब प्रांत के नेता बन गए और 1937 के प्रांतीय विधानसभा चुनावों के बाद विकास मंत्री बने. 

किसानों के लिए कई काम

छोटूराम ने किसानों के लिए कई महत्वपूर्ण काम किए. उनके इन कामों को अब भी किसानों के लिए मील का पत्थर माना जा सकता है. इनमें कर्जा माफी ऐक्ट, दुधारू पशुओं की नीलामी पर रोक, साहूकार पंजीकरण ऐक्ट, गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी ऐक्ट के जरिए कुर्क हुई जमीनों को किसानों को वापस दिलवाया, छोटूराम ने मार्केट कमिटियों को भी बनाया, जिससे किसानों को उनकी फसल का अच्छा पैसा मिलने लगा और आढ़तियों के शोषण से मुक्ति मिल गई, आदि कार्य शामिल हैं.

मोर के शिकार पर लगवाई रोक

जब अंग्रेजों का शासन था, तो उस वक्त गुड़गांव जिले के अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर कर्नल इलियस्टर मोर का शिकार करते थे. लोगों ने विरोध भी किया, लेकिल कर्नल नहीं माने. लोगों ने इसकी शिकायत सर छोटूराम से की और फिर छोटूराम ने अपने अखबार में इसके खिलाफ खूब लिखा. इतना लिखा कि कर्नल इलियस्टर ने माफी मांग ली और उसके बाद से ही भारत में मोरों की हत्या पर रोक लग गई.

अंग्रेज भी सर छोटूराम से हुए खुश

एक समय ऐसा भी आया जब अंग्रेज भी सर छोटूराम पर खुश हो गए थे. वजह ये थी कि पहले विश्वयुद्ध और दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान छोटूराम के कहने पर हजारों लोग अंग्रेजों की सेना में भर्ती हुए थे. जब दूसरे विश्वयुद्ध में छोटूराम के कहने पर सैनिक अंग्रेजी सेना में भर्ती हो गए तो अंग्रेजों ने छोटूराम से कहा कि वो हरियाणा के लोगों के लिए सतलुज नदी पर बांध बनवाएंगे. 1944 में इस परियोजना को मंजूरी मिल गई और फिर भाखड़ा नांगल बांध बनाया गया. 9 जनवरी 1945 को सर छोटूराम का देहांत हो गया.

 


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Last Updated : Nov 24, 2019, 11:42 AM IST
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