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नए कृषि कानून: हरियाणा सरकार को फसल खरीद में हो सकता है करोड़ों का नुकसान

खरीफ सीजन की फसल खरीद को लेकर हरियाणा सरकार को डर सता रहा है. बताया जा रहा है कि कृषि कानून को लेकर सरकार ने एक रिपोर्ट तैयार करवाई है. जिसके अनुसार सरकार को खरीफ की फसल खरीद के दौरान 730 करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है.

Haryana Government may lose 730 crores in Kharif season
सरकार को फसल खरीद में लग सकता है 730 करोड़ का फटका
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Published : Sep 29, 2020, 11:26 AM IST

चंडीगढ़: हरियाणा में खरीफ सीजन की फसलों की खरीद शुरू हो चुकी है. बताया जा रहा है कि एक अक्टूबर से ये खरीद और तेज कर दी जाएगी. नए कृषि कानून बन चुके हैं और लागू भी हो चुके हैं. ऐसे में उम्मीद लगाई जा रही है कि प्रदेश के कई किसान नए कृषि कानूनों का इस्तेमाल करते हुए अपना अनाज मंडियों से बाहर प्राइवेट ट्रेडर्स को भी बेचेंगे.

सरकार को 730 करोड़ के नुकसान की आशंका

यदि ऐसा होता है तो प्रदेश सरकार को भारी नुकसान की आशंका जताई जा रही है. इसी नुकसान की पूर्व विश्लेषण रिपोर्ट प्रदेश सरकार ने तैयार की है और इससे केंद्र सरकार को भी भेजकर अवगत कराया गया है. मुख्यमंत्री मनोहर लाल के निर्देश पर इस रिपोर्ट को तैयार करवाया गया है. इस रिपोर्ट के पूर्व विश्लेषण के अनुसार राज्य सरकार को इस खरीफ सीजन में 730 करोड़ के नुकसान की आशंका है. इसमें मार्केट फीस और हरियाणा रूरल डेवलपमेंट (एचआरडी) फीस का हिस्सा शामिल है.

मंडी से बाहर का रास्ता अपना सकते हैं किसान

बता दें कि हर साल खरीफ सीजन में सरकार करीब दो हजार करोड़ से अधिक राशि का अनाज खरीदती है. इस पूरी खरीद राशि में से दो प्रतिशत हिस्सा मार्केट फीस और दो प्रतिशत हरियाणा रूरल डेवलपमेंट के खाते में जाता है. इस विश्लेषण रिपोर्ट के मुताबिक इस बार मंडियों में जितने मूल्य के अनाज की सरकारी खरीद होनी थी. उसमें से करीब 360 करोड़ की मार्केट फीस आनी थी और लगभग 370 करोड़ रुपये हरियाणा रूरल डेवलपमेंट फीस के आने थे.

सरकार ने की कृषि विधेयक को लेकर रिपोर्ट तैयार

मगर इस बार सरकार को लग रहा है कि बहुत से किसान नए कृषि कानूनों का लाभ उठाते हुए अपनी फसलें बाहर प्राइवेट ट्रेडर्स को अपने दामों पर बेचेंगे और मंडियों में कम अनाज आएगा. कम अनाज आया तो खरीद कम होगी और इसका विपरीत असर सरकार की मार्केट फीस और हरियाणा रूरल डेवलपमेंट फीस के रूप में आने वाली कमाई पर पड़ेगा. हरियाणा के मुख्यमंत्री द्वारा तैयार करवाई गई इस रिपोर्ट को केंद्र सरकार को भेजा गया है.

सीएम मनोहर लाल को सता रही नुकसान की आशंका

सीएम मनोहर लाल के अनुसार प्रदेश सरकार ने केंद्र को ऐसी स्थिति से अवगत करवाते हुए मदद भी मांगी है. उम्मीद है केंद्र सरकार मदद करेगी और यदि ऐसा नहीं हुआ तो इस नुकसान की भरपाई प्रदेश सरकार अपने संसाधनों से पूरा करेगी. मगर कृषि कानूनों का इस्तेमाल कर प्रदेश के किसान अपनी फसल सरकारी मंडियों और बाहर बेचने के लिए स्वतंत्र हैं.

धान की खरीद को लेकर हरियाणा सरकार का बड़ा दांव

हरियाणा सरकार भी इस प्रयास में है कि किसान अपनी फसल लेकर सरकारी मंडियों में ही पहुंचे. ताकि फीस के रूप में होने वाली आय का नुकसान न हो. इसके लिए प्रदेश ने बड़ा दांव खेला है. जिसके तहत दो प्रतिशत मार्केट फीस और दो प्रतिशत हरियाणा रूरल डेवलपमेंट फीस को आधा-आधा प्रतिशत कर दिया है. हालांकि इसमें भी सरकार को ही नुकसान है. मगर सरकार चाहती है कि किसी तरह से किसान अपना अनाज सरकारी मंडियों में ही लाकर बेचे. जिससे आशांकित नुकसान में कुछ हद तक कम हो सके. बहरहाल अब देखना होगा कि प्रदेश सरकार का प्रयास कितना कारगर साबित होता है और कितने किसान नए कृषि कानूनों का इस्तेमाल कर प्राइवेट ट्रेडर्स के साथ अपनी फसलों की डील करते हैं.

ये भी पढ़ें: किन्नर डेरों पर कोरोना की मार, खर्च चलाना मुश्किल

चंडीगढ़: हरियाणा में खरीफ सीजन की फसलों की खरीद शुरू हो चुकी है. बताया जा रहा है कि एक अक्टूबर से ये खरीद और तेज कर दी जाएगी. नए कृषि कानून बन चुके हैं और लागू भी हो चुके हैं. ऐसे में उम्मीद लगाई जा रही है कि प्रदेश के कई किसान नए कृषि कानूनों का इस्तेमाल करते हुए अपना अनाज मंडियों से बाहर प्राइवेट ट्रेडर्स को भी बेचेंगे.

सरकार को 730 करोड़ के नुकसान की आशंका

यदि ऐसा होता है तो प्रदेश सरकार को भारी नुकसान की आशंका जताई जा रही है. इसी नुकसान की पूर्व विश्लेषण रिपोर्ट प्रदेश सरकार ने तैयार की है और इससे केंद्र सरकार को भी भेजकर अवगत कराया गया है. मुख्यमंत्री मनोहर लाल के निर्देश पर इस रिपोर्ट को तैयार करवाया गया है. इस रिपोर्ट के पूर्व विश्लेषण के अनुसार राज्य सरकार को इस खरीफ सीजन में 730 करोड़ के नुकसान की आशंका है. इसमें मार्केट फीस और हरियाणा रूरल डेवलपमेंट (एचआरडी) फीस का हिस्सा शामिल है.

मंडी से बाहर का रास्ता अपना सकते हैं किसान

बता दें कि हर साल खरीफ सीजन में सरकार करीब दो हजार करोड़ से अधिक राशि का अनाज खरीदती है. इस पूरी खरीद राशि में से दो प्रतिशत हिस्सा मार्केट फीस और दो प्रतिशत हरियाणा रूरल डेवलपमेंट के खाते में जाता है. इस विश्लेषण रिपोर्ट के मुताबिक इस बार मंडियों में जितने मूल्य के अनाज की सरकारी खरीद होनी थी. उसमें से करीब 360 करोड़ की मार्केट फीस आनी थी और लगभग 370 करोड़ रुपये हरियाणा रूरल डेवलपमेंट फीस के आने थे.

सरकार ने की कृषि विधेयक को लेकर रिपोर्ट तैयार

मगर इस बार सरकार को लग रहा है कि बहुत से किसान नए कृषि कानूनों का लाभ उठाते हुए अपनी फसलें बाहर प्राइवेट ट्रेडर्स को अपने दामों पर बेचेंगे और मंडियों में कम अनाज आएगा. कम अनाज आया तो खरीद कम होगी और इसका विपरीत असर सरकार की मार्केट फीस और हरियाणा रूरल डेवलपमेंट फीस के रूप में आने वाली कमाई पर पड़ेगा. हरियाणा के मुख्यमंत्री द्वारा तैयार करवाई गई इस रिपोर्ट को केंद्र सरकार को भेजा गया है.

सीएम मनोहर लाल को सता रही नुकसान की आशंका

सीएम मनोहर लाल के अनुसार प्रदेश सरकार ने केंद्र को ऐसी स्थिति से अवगत करवाते हुए मदद भी मांगी है. उम्मीद है केंद्र सरकार मदद करेगी और यदि ऐसा नहीं हुआ तो इस नुकसान की भरपाई प्रदेश सरकार अपने संसाधनों से पूरा करेगी. मगर कृषि कानूनों का इस्तेमाल कर प्रदेश के किसान अपनी फसल सरकारी मंडियों और बाहर बेचने के लिए स्वतंत्र हैं.

धान की खरीद को लेकर हरियाणा सरकार का बड़ा दांव

हरियाणा सरकार भी इस प्रयास में है कि किसान अपनी फसल लेकर सरकारी मंडियों में ही पहुंचे. ताकि फीस के रूप में होने वाली आय का नुकसान न हो. इसके लिए प्रदेश ने बड़ा दांव खेला है. जिसके तहत दो प्रतिशत मार्केट फीस और दो प्रतिशत हरियाणा रूरल डेवलपमेंट फीस को आधा-आधा प्रतिशत कर दिया है. हालांकि इसमें भी सरकार को ही नुकसान है. मगर सरकार चाहती है कि किसी तरह से किसान अपना अनाज सरकारी मंडियों में ही लाकर बेचे. जिससे आशांकित नुकसान में कुछ हद तक कम हो सके. बहरहाल अब देखना होगा कि प्रदेश सरकार का प्रयास कितना कारगर साबित होता है और कितने किसान नए कृषि कानूनों का इस्तेमाल कर प्राइवेट ट्रेडर्स के साथ अपनी फसलों की डील करते हैं.

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