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डॉ. दिगंबर बहरा को दिया जाएगा पद्मश्री सम्मान, कभी नंगे पैर कई किमी चलकर जाते थे स्कूल - डॉ. दिगंबर बहरा चंडीगढ़ पीजीआई

चंडीगढ़ पीजीआई में कार्यरत डॉ. दिगंबर बहरा को पद्मश्री सम्मान के लिए चुना गया है. डॉ. दिगंबर बहरा चंडीगढ़ पीजीआई में पिछले 43 सालों से अपनी सेवाएं दे रहे हैं. पलमोनरी चिकित्सा के क्षेत्र में बेहद महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए उन्हें इस सम्मान से नवाजा जाएगा.

dr digambar behera padma shri
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Published : Jan 26, 2020, 3:27 PM IST

चंडीगढ़: देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक पद्म पुरस्कारों की घोषणा कर दी गई है. यह पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है जिन्होंने मानव सेवा के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया हो और जिन्होंने समाज में बड़ा योगदान दिया हो.

चंडीगढ़ पीजीआई में कार्यरत डॉ. दिगंबर बहरा को पद्मश्री सम्मान के लिए चुना गया है. डॉक्टर बहरा को इस सम्मान के लिए चुने जाने के बाद ईटीवी भारत ने उनसे खास बातचीत की. जिसमें उन्होंने सबसे पहले चंडीगढ़ पीजीआई और चंडीगढ़ प्रशासन का धन्यवाद किया. जिन्होंने उनका नाम इस सम्मान के लिए केंद्र सरकार को भेजा. साथ ही उन्होंने उनके चुने जाने पर केंद्र सरकार का भी धन्यवाद किया.

डॉ. दिगंबर बहरा से खास बातचीत.

कभी नंगे पैर जाते थे स्कूल
उन्होंने कहा कि आज मुझे पद्मश्री सम्मान के लिए चुना गया है जिस पर मुझे बेहद गर्व है लेकिन एक समय वह भी था जब मेरे पास पैरों में पहनने के लिए जूते नहीं होते थे और मैं नंगे पैर पढ़ने के लिए जाता था. स्कूल बहुत दूर था लेकिन कभी हिम्मत नहीं हारी और पढ़ाई के लिए अपने जज्बे को बनाए रखा. इस तरह के संघर्षों को बहुत साल देखने के बाद मैं इस काबिल बन पाया कि मानवता की सेवा कर सकूं.

पढ़ें : गणतंत्र दिवस : वीरता पदकों की घोषणा, जम्मू-कश्मीर पुलिस सबसे आगे

'ऐसा सम्मान पाना सपने की तरह'
उन्होंने कहा कि ऐसा सम्मान पाना देश के हर नागरिक के लिए एक सपने की तरह ही होता है लेकिन मुझे इस सम्मान के लिए चुना जाना मेरे लिए बेहद गर्व की बात है. यह सम्मान मेरा नहीं बल्कि उन लोगों का है जिनकी वजह से मैं यहां तक पहुंचा हूं. मैं यह सम्मान अपने माता पिता, पीजीआई के अपने साथियों और मुझ में विश्वास जताने वाले अपने मरीजों को समर्पित करता हूं. वे ही इस सम्मान के ज्यादा हकदार हैं.

बेहद गरीबी में गुजरा बचपन
अपनी जिंदगी के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि मूल रूप से वे कटक, उड़ीसा के रहने वाले हैं. कटक के एक छोटे से गांव में उनका परिवार रहता था और उनका जीवन बेहद गरीबी में गुजरा. लेकिन पढ़ाई के प्रति उनकी दीवानगी इतनी ज्यादा थी कि कोई रुकावट उन्हें रोक नहीं सकी. आगे बढ़ते-बढ़ते चिकित्सा के क्षेत्र में आ गए. उन्होंने एमबीबीएस की डिग्री उड़ीसा से ही की. उसके बाद उनके मन में चाहत थी कि अब वे एमडी की डिग्री भी करें लेकिन उसके लिए उनके पास इतने पैसे नहीं थे लेकिन फिर भी उन्होंने चंडीगढ़ पीजीआई में अप्लाई किया और यहां पर उनका सिलेक्शन हो गया.

चंडीगढ़ पीजीआई में मिली थी स्कॉलरशिप
फीस न भर पाने का डर तो था ही लेकिन तभी पता चला कि यहां पर उन्हें स्कॉलरशिप मिल गई है जिससे उन्हें बहुत खुशी हुई. उन्होंने पूरी लगन के साथ चंडीगढ़ पीजीआई से एमडी की डिग्री की. एमडी करने के बाद फिर वे कहीं नहीं गए और चंडीगढ़ पीजीआई में रहकर ही लोगों की सेवा शुरू कर दी. उन्होंने कहा कि अब तक वे लाखों लोगों का इलाज कर चुके हैं. उन्होंने कभी अपना अस्पताल खोलने या प्राइवेट नौकरी करने के बारे में नहीं सोचा क्योंकि उनका लक्ष्य लोगों की सेवा करना था ना कि पैसे कमाना.

पढे़ं : 71वां गणतंत्र दिवस : राजपथ पर देश ने देखी सैन्य ताकत संग संस्कृति की झांकी

माता-पिता को याद कर हुए भावुक
अपने संघर्ष भरे दिनों को याद करते हुए कहा कि उनका बचपन भी काफी संघर्ष भरा था लेकिन उनके अंदर कुछ करने का जज्बा था. जिस वजह से वह आज इस मुकाम पर पहुंच पाए लेकिन उनके माता-पिता ने जो सहयोग किया उसके बिना वे कुछ नहीं कर पाते. उन्होंने कहा कि मेरे माता-पिता पढ़े-लिखे नहीं थे लेकिन फिर भी वे पढ़ाई की अहमियत को जानते थे और उन्होंने मुझे हमेशा पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. अपने माता-पिता को याद करते हुए डॉक्टर बहरा भावुक हो गए.

'मानवता की सेवा ही सबसे बड़ा अवार्ड'
लोगों को संदेश देते हुए उन्होंने यही कहा कि मानवता की सेवा करना ही सबसे बड़ा अवार्ड है. हम सबको मानवता की सेवा करनी चाहिए. हमारी वजह से अगर एक इंसान की जिंदगी भी समर्थ हो तो उससे बड़ा पुरस्कार कोई और नहीं हो सकता. मुझे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि सरकार मुझे इस पुरस्कार के लिए चुनेगी. मैं तो पिछले 43 सालों से चंडीगढ़ पीजीआई में सेवा करता आ रहा हूं और जब तक पीजीआई से जुड़ा रहूंगा तब तक ऐसे ही लोगों की सेवा करता रहूंगा. सरकार ने मुझे इस काबिल समझा इसके लिए मैं सरकार का धन्यवाद करता हूं.

पढ़ें- प्रधानमंत्री ने इंडिया गेट की जगह राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर दी शहीदों को श्रद्धांजलि

चंडीगढ़: देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक पद्म पुरस्कारों की घोषणा कर दी गई है. यह पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है जिन्होंने मानव सेवा के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया हो और जिन्होंने समाज में बड़ा योगदान दिया हो.

चंडीगढ़ पीजीआई में कार्यरत डॉ. दिगंबर बहरा को पद्मश्री सम्मान के लिए चुना गया है. डॉक्टर बहरा को इस सम्मान के लिए चुने जाने के बाद ईटीवी भारत ने उनसे खास बातचीत की. जिसमें उन्होंने सबसे पहले चंडीगढ़ पीजीआई और चंडीगढ़ प्रशासन का धन्यवाद किया. जिन्होंने उनका नाम इस सम्मान के लिए केंद्र सरकार को भेजा. साथ ही उन्होंने उनके चुने जाने पर केंद्र सरकार का भी धन्यवाद किया.

डॉ. दिगंबर बहरा से खास बातचीत.

कभी नंगे पैर जाते थे स्कूल
उन्होंने कहा कि आज मुझे पद्मश्री सम्मान के लिए चुना गया है जिस पर मुझे बेहद गर्व है लेकिन एक समय वह भी था जब मेरे पास पैरों में पहनने के लिए जूते नहीं होते थे और मैं नंगे पैर पढ़ने के लिए जाता था. स्कूल बहुत दूर था लेकिन कभी हिम्मत नहीं हारी और पढ़ाई के लिए अपने जज्बे को बनाए रखा. इस तरह के संघर्षों को बहुत साल देखने के बाद मैं इस काबिल बन पाया कि मानवता की सेवा कर सकूं.

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'ऐसा सम्मान पाना सपने की तरह'
उन्होंने कहा कि ऐसा सम्मान पाना देश के हर नागरिक के लिए एक सपने की तरह ही होता है लेकिन मुझे इस सम्मान के लिए चुना जाना मेरे लिए बेहद गर्व की बात है. यह सम्मान मेरा नहीं बल्कि उन लोगों का है जिनकी वजह से मैं यहां तक पहुंचा हूं. मैं यह सम्मान अपने माता पिता, पीजीआई के अपने साथियों और मुझ में विश्वास जताने वाले अपने मरीजों को समर्पित करता हूं. वे ही इस सम्मान के ज्यादा हकदार हैं.

बेहद गरीबी में गुजरा बचपन
अपनी जिंदगी के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि मूल रूप से वे कटक, उड़ीसा के रहने वाले हैं. कटक के एक छोटे से गांव में उनका परिवार रहता था और उनका जीवन बेहद गरीबी में गुजरा. लेकिन पढ़ाई के प्रति उनकी दीवानगी इतनी ज्यादा थी कि कोई रुकावट उन्हें रोक नहीं सकी. आगे बढ़ते-बढ़ते चिकित्सा के क्षेत्र में आ गए. उन्होंने एमबीबीएस की डिग्री उड़ीसा से ही की. उसके बाद उनके मन में चाहत थी कि अब वे एमडी की डिग्री भी करें लेकिन उसके लिए उनके पास इतने पैसे नहीं थे लेकिन फिर भी उन्होंने चंडीगढ़ पीजीआई में अप्लाई किया और यहां पर उनका सिलेक्शन हो गया.

चंडीगढ़ पीजीआई में मिली थी स्कॉलरशिप
फीस न भर पाने का डर तो था ही लेकिन तभी पता चला कि यहां पर उन्हें स्कॉलरशिप मिल गई है जिससे उन्हें बहुत खुशी हुई. उन्होंने पूरी लगन के साथ चंडीगढ़ पीजीआई से एमडी की डिग्री की. एमडी करने के बाद फिर वे कहीं नहीं गए और चंडीगढ़ पीजीआई में रहकर ही लोगों की सेवा शुरू कर दी. उन्होंने कहा कि अब तक वे लाखों लोगों का इलाज कर चुके हैं. उन्होंने कभी अपना अस्पताल खोलने या प्राइवेट नौकरी करने के बारे में नहीं सोचा क्योंकि उनका लक्ष्य लोगों की सेवा करना था ना कि पैसे कमाना.

पढे़ं : 71वां गणतंत्र दिवस : राजपथ पर देश ने देखी सैन्य ताकत संग संस्कृति की झांकी

माता-पिता को याद कर हुए भावुक
अपने संघर्ष भरे दिनों को याद करते हुए कहा कि उनका बचपन भी काफी संघर्ष भरा था लेकिन उनके अंदर कुछ करने का जज्बा था. जिस वजह से वह आज इस मुकाम पर पहुंच पाए लेकिन उनके माता-पिता ने जो सहयोग किया उसके बिना वे कुछ नहीं कर पाते. उन्होंने कहा कि मेरे माता-पिता पढ़े-लिखे नहीं थे लेकिन फिर भी वे पढ़ाई की अहमियत को जानते थे और उन्होंने मुझे हमेशा पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. अपने माता-पिता को याद करते हुए डॉक्टर बहरा भावुक हो गए.

'मानवता की सेवा ही सबसे बड़ा अवार्ड'
लोगों को संदेश देते हुए उन्होंने यही कहा कि मानवता की सेवा करना ही सबसे बड़ा अवार्ड है. हम सबको मानवता की सेवा करनी चाहिए. हमारी वजह से अगर एक इंसान की जिंदगी भी समर्थ हो तो उससे बड़ा पुरस्कार कोई और नहीं हो सकता. मुझे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि सरकार मुझे इस पुरस्कार के लिए चुनेगी. मैं तो पिछले 43 सालों से चंडीगढ़ पीजीआई में सेवा करता आ रहा हूं और जब तक पीजीआई से जुड़ा रहूंगा तब तक ऐसे ही लोगों की सेवा करता रहूंगा. सरकार ने मुझे इस काबिल समझा इसके लिए मैं सरकार का धन्यवाद करता हूं.

पढ़ें- प्रधानमंत्री ने इंडिया गेट की जगह राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर दी शहीदों को श्रद्धांजलि

Intro:देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक पद्म पुरस्कारों की घोषणा कर दी गई है। यह पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है जिन्होंने मानव सेवा के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया हो और जिन्होंने समाज में बड़ा योगदान दिया हो।
चंडीगढ़ पीजीआई में कार्यरत डॉ दिगंबर बहरा को भी पद्मश्री सम्मान के लिए चुना गया है। डॉ दिगंबर बहरा चंडीगढ़ पीजीआई में पिछले 43 सालों से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। पलमोनरी चिकित्सा के क्षेत्र में बेहद महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए उन्हें इस सम्मान से नवाजा जाएगा।


Body:आज मुझे पद्मश्री सम्मान के लिए चुना गया है। जिस पर मुझे बेहद गर्व है ।लेकिन एक समय वह भी था जब मेरे पास पैरों में पहनने के लिए जूते नहीं होते थे और मैं नंगे पैर पढ़ने के लिए जाता था। स्कूल बहुत दूर था। लेकिन कभी हिम्मत नहीं हारी और पढ़ाई के लिए अपने जज्बे को बनाए रखा। इस तरह के संघर्षों को बहुत साल देखने के बाद मैं इस काबिल बन पाया कि मानवता की सेवा कर सकूं। यह कहना है पद्मश्री सम्मान पाने वाले चंडीगढ़ पीजीआई में कार्यरत डॉ दिगंबर बहरा का।

डॉक्टर डी बहरा को इस सम्मान के लिए चुने जाने के बाद ईटीवी भारत ने उनसे खास बातचीत की। जिसमें उन्होंने सबसे पहले चंडीगढ़ पीजीआई और चंडीगढ़ प्रशासन का धन्यवाद किया। जिन्होंने उनका नाम इस सम्मान के लिए केंद्र सरकार को भेजा। साथ ही उन्होंने उनके चुने जाने पर केंद्र सरकार का भी धन्यवाद किया।
उन्होंने कहा कि ऐसा सम्मान पाना देश के हर नागरिक के लिए एक सपने की तरह ही होता है । लेकिन मुझे इस सम्मान के लिए चुना जाना मेरे लिए बेहद गर्व की बात है। यह सम्मान मेरा नहीं बल्कि उन लोगों का है । जिनकी वजह से मैं यहां तक पहुंचा हूं। मैं यह सम्मान अपने माता पिता, पीजीआई के अपने साथियों और मुझ में विश्वास जताने वाले अपने मरीजों को समर्पित करता हूं। वे ही इस सम्मान के ज्यादा हकदार हैं।

अपनी जिंदगी के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि मूल रूप से वे कटक, उड़ीसा के रहने वाले हैं। कटक के एक छोटे से गांव में उनका परिवार रहता था और उनका जीवन बेहद गरीबी में गुजरा।
उनके पास स्कूल जाने के लिए जूते तक नहीं थे । वे नंगे पैर ही हर रोज कई किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाते थे। लेकिन पढ़ाई के प्रति उनकी दीवानगी इतनी ज्यादा थी , कि कोई रुकावट उन्हें रोक नहीं सकी।
आगे बढ़ते बढ़ते चिकित्सा के क्षेत्र में आ गए। उन्होंने एमबीबीएस की डिग्री उड़ीसा से ही की। उसके बाद उनके मन में चाहत थी कि अब वे एमडी की डिग्री भी करें। लेकिन उसके लिए उनके पास इतने पैसे नहीं थे। लेकिन फिर भी उन्होंने चंडीगढ़ पीजीआई में अप्लाई किया और यहां पर उनका सिलेक्शन हो गया।
फीस न भर पाने का डर तो था ही लेकिन तभी पता चला कि यहां पर उन्हें स्कॉलरशिप मिल गई है ।बजिससे उन्हें बहुत खुशी हुई।उन्होंने पूरी लगन के साथ चंडीगढ़ पीजीआई से एमडी की डिग्री की। एमडी करने के बाद फिर वे कहीं नहीं गए और चंडीगढ़ पीजीआई में रहकर ही लोगों की सेवा शुरू कर दी। उन्होंने कहा कि अब तक लाखों लोगों का इलाज कर चुके हैं। उन्होंने कभी अपना अस्पताल खोलने या प्राइवेट नौकरी करने के बारे में नहीं सोचा ।क्योंकि उनका लक्ष्य लोगों की सेवा करना था ना कि पैसे कमाना।

माता-पिता को याद कर हुए भावुक
अपने संघर्ष भरे दिनों को याद करते हुए कहते हैं क्यों उनका बचपन भी काफी संघर्ष में भरा था लेकिन उनके अंदर कुछ करने का जज्बा था। जिस वजह से वह आज इस मुकाम पर पहुंच पाए लेकिन उनके माता-पिता ने जो सहयोग किया । उसके बिना वे कुछ नहीं कर पाते। उन्होंने कहा कि मेरे माता-पिता पढ़े-लिखे नहीं थे लेकिन फिर भी वे पढ़ाई की अहमियत को जानते थे और उन्होंने मुझे हमेशा पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। अपने माता-पिता को याद करते हुए डॉक्टर बहरा भावुक हो गए।

लोग को संदेश देते हुए उन्होंने यही कहा कि मानवता की सेवा करना ही सबसे बड़ा अवार्ड है। हम सबको मानवता की सेवा करनी चाहिए। हमारी वजह से अगर एक इंसान की जिंदगी भी समर्थ ही हो तो उससे बड़ा पुरस्कार कोई और नहीं हो सकता।
मुझे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि सरकार मुझे इस पुरस्कार के लिए चुनेगी। मैं तो पिछले 43 सालों से चंडीगढ़ पीजीआई में सेवा करता आ रहा हूं और जब तक पीजीआई से जुड़ा रहूंगा तब तक ऐसे ही लोगों की सेवा करता रहूंगा ।सरकार ने मुझे इस काबिल समझा इसके लिए मैं सरकार का धन्यवाद करता हूं।

one 2 one with पद्मश्री डॉक्टर डी बहरा, पीजीआई ,चंडीगढ़


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