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कभी देवीलाल का गढ़ हुआ करती थी बरोदा विधानसभा, अब चलता है हुड्डा का 'सिक्का'!

बरोदा उपचुनाव को लेकर हलचल तेज हो गई है. 3 नंबर को वोटिंग के बाद 10 नवंबर को बरोदा उपचुनाव का रिजल्ट घोषित किया जायेगा.

devilal connection in baroda byelection
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Published : Oct 7, 2020, 11:00 AM IST

चंडीगढ़ः हरियाणा में बरोदा विधानसभा उपचुनाव के लिए तमाम राजनीतिक दल मैदान में उतर आये हैं. ये सीट कांग्रेस के दिवंगत नेता श्रीकृष्ण हुड्डा की अकस्मात मौत के बाद खाली हुई है वो 2019 में बरोदा से लगातार तीसरी बार चुनाव जीते थे. जो बताता है कि कांग्रेस की इस सीट पर पकड़ कैसी है. और कांग्रेस से भी ज्यादा भूपेंद्र सिंह हुड्डा की. लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. एक ज़माने में बरोदा देवीलाल का गढ़ माना जाता था. ऐसा गढ़ जहां से देवीलाल ने जिसे भी लड़ा दिया वो जीत गया. चाहें देवीलाल प्रचार के लिए जायें या ना जायें.

कभी देवीलाल का गढ़ हुआ करती थी बरोदा विधानसभा, अब चलता है हुड्डा का 'सिक्का'!

1972 से 2005 तक...

देवीलाल की पकड़ इस विधानसभा पर कैसी थी इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि 1972 के बाद से 2000 तक देवीलाल ने जिसे भी यहां से उतारा वो जीतता रहा और कांग्रेस को यहां हर बार हार का सामना करना पड़ा. 2001 में देवीलाल की मौत के बाद जब 2005 में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की तब भी इस सीट पर देवीलाल की राजनीतिक विरासत ओढ़े इनेलो के उम्मीदवार ने जीत दर्ज की.

...फिर बदल गए हालात

2005 के चुनाव में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई और उसने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मुख्यमंत्री बनया. हुड्डा कांग्रेस का वो जाट चेहरा थे जिन्होंने कई मोर्चों में देवीलाल को सीधे मात दी थी. भूपेंद्र हुड्डा जब मुख्यमंत्री बन गए तो रोहतक और सोनीपत बेल्ट ने कांग्रेस की तरफ रुख किया. इसका नतीजा ये हुआ कि 2009 में हुड्डा के खास श्रीकृष्ण हुड्डा बरोदा से चुनाव जीते और तब से अब तक लगातार जीतते रहे.

इनेलो और जेजेपी दोनों देवीलाल के सहारे

अब क्योंकि श्रीकृष्ण हुड्डा की मौत हो चुकी है तो इनेलो और जेजेपी इसे मौके के तौर पर ले रही है. इन दोनों पार्टियों को लगता है कि देवीलाल की विरासत शायद फिर से हमें यहां से जीत दिला सकती है.

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक ?

प्रोफेसर गुरमीत सिंह कहते हैं कि देवीलाल की पकड़ का इनेलो या जेजेपी को कोई फायदा नहीं मिलने वाला है. क्योंकि एक वक्त में देवीलाल का पूरे हरियाणा में ही प्रभाव था. लेकिन अब उनका परिवार दो पार्टियों में बंट चुका है. दोनों ही देवीलाल की सियासी विरासत को अपना बनाते हैं. ऐसे में देवीलाल के नाम का फायदा मिलना आसान नहीं है. और तब से लेकर अब तक वक्त काफी बदल चुका है. जो बीजेपी यहां कभी दूसरे नंबर भी नहीं आती थी अब वो अच्छी पोजीश में दिखती है और कांग्रेस इस सीट को अपना गढ़ बना चुकी है.

बरोदा विधानसभा का राजनीतिक इतिहास

  • 1967 में कांग्रेस के आर धारी सिंह जीते
  • 1968 में विशाल हरियाणा पार्टी से श्याम चंद जीते
  • 1972 में फिर से श्याम चंद जीते लेकिन कांग्रेस की टिकट पर
  • 1977 में देवी लाल के नेतृत्व में जनता पार्टी के भाले राम जीते
  • 1982 में फिर भाले राम जीते लेकिन इस बार लोक दल से
  • 1987 में लोक दल के टिकट पर किरपा राम पूनिया जीते
  • 1991 में जनता पार्टी से रमेश कुमार खटक
  • 1996 में भी रमेश कुमार जीते लेकिन समता पार्टी के टिकट पर
  • 2000 में भी रमेश कुमार जीते लेकिन इनेलो के टिकट पर
  • 2005 में इनेलो के रामफल चिराना जीते
  • 2008 के परिसीमन में ये सीट अनारक्षित कर दी गई
  • 2009 में कांग्रेस के श्रीकृष्ण हुड्डा विधायक चुने गए
  • 2014 में भी कांग्रेस श्रीकृष्ण हु़ड्डा विधायक बने
  • 2019 में भी दिवंगत श्रीकृष्ण हुड्डा ने बीजेपी के पहलवान योगेश्वर दत्त को हराया

ये भी पढ़ेंः बुजुर्ग और कोरोना मरीज बैलेट पेपर से करेंगे मतदान, संवेदनशील बूथों की मैपिंग शुरू

2019 के चुनाव में पार्टियों का प्रदर्शन

2019 में बरोदा विधानसभा सीट पर कांग्रेस के श्रीकृष्ण हुड्डा लगातार तीसरी बार जीते थे. उन्हें 42,566(34.67%) वोट मिले थे. दूसरे नंबर बीजेपी के योगेश्वर दत्त थे जिन्हें 37,726(30.73%) वोट मिले थे. जेजेपी उम्मीदवार को 32,480(26.45) वोट मिले थे. जबकि इनेलो उम्मीदवार को मात्र 3145(2.56%) मतों से संतोष करना पड़ा था.

चंडीगढ़ः हरियाणा में बरोदा विधानसभा उपचुनाव के लिए तमाम राजनीतिक दल मैदान में उतर आये हैं. ये सीट कांग्रेस के दिवंगत नेता श्रीकृष्ण हुड्डा की अकस्मात मौत के बाद खाली हुई है वो 2019 में बरोदा से लगातार तीसरी बार चुनाव जीते थे. जो बताता है कि कांग्रेस की इस सीट पर पकड़ कैसी है. और कांग्रेस से भी ज्यादा भूपेंद्र सिंह हुड्डा की. लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. एक ज़माने में बरोदा देवीलाल का गढ़ माना जाता था. ऐसा गढ़ जहां से देवीलाल ने जिसे भी लड़ा दिया वो जीत गया. चाहें देवीलाल प्रचार के लिए जायें या ना जायें.

कभी देवीलाल का गढ़ हुआ करती थी बरोदा विधानसभा, अब चलता है हुड्डा का 'सिक्का'!

1972 से 2005 तक...

देवीलाल की पकड़ इस विधानसभा पर कैसी थी इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि 1972 के बाद से 2000 तक देवीलाल ने जिसे भी यहां से उतारा वो जीतता रहा और कांग्रेस को यहां हर बार हार का सामना करना पड़ा. 2001 में देवीलाल की मौत के बाद जब 2005 में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की तब भी इस सीट पर देवीलाल की राजनीतिक विरासत ओढ़े इनेलो के उम्मीदवार ने जीत दर्ज की.

...फिर बदल गए हालात

2005 के चुनाव में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई और उसने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मुख्यमंत्री बनया. हुड्डा कांग्रेस का वो जाट चेहरा थे जिन्होंने कई मोर्चों में देवीलाल को सीधे मात दी थी. भूपेंद्र हुड्डा जब मुख्यमंत्री बन गए तो रोहतक और सोनीपत बेल्ट ने कांग्रेस की तरफ रुख किया. इसका नतीजा ये हुआ कि 2009 में हुड्डा के खास श्रीकृष्ण हुड्डा बरोदा से चुनाव जीते और तब से अब तक लगातार जीतते रहे.

इनेलो और जेजेपी दोनों देवीलाल के सहारे

अब क्योंकि श्रीकृष्ण हुड्डा की मौत हो चुकी है तो इनेलो और जेजेपी इसे मौके के तौर पर ले रही है. इन दोनों पार्टियों को लगता है कि देवीलाल की विरासत शायद फिर से हमें यहां से जीत दिला सकती है.

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक ?

प्रोफेसर गुरमीत सिंह कहते हैं कि देवीलाल की पकड़ का इनेलो या जेजेपी को कोई फायदा नहीं मिलने वाला है. क्योंकि एक वक्त में देवीलाल का पूरे हरियाणा में ही प्रभाव था. लेकिन अब उनका परिवार दो पार्टियों में बंट चुका है. दोनों ही देवीलाल की सियासी विरासत को अपना बनाते हैं. ऐसे में देवीलाल के नाम का फायदा मिलना आसान नहीं है. और तब से लेकर अब तक वक्त काफी बदल चुका है. जो बीजेपी यहां कभी दूसरे नंबर भी नहीं आती थी अब वो अच्छी पोजीश में दिखती है और कांग्रेस इस सीट को अपना गढ़ बना चुकी है.

बरोदा विधानसभा का राजनीतिक इतिहास

  • 1967 में कांग्रेस के आर धारी सिंह जीते
  • 1968 में विशाल हरियाणा पार्टी से श्याम चंद जीते
  • 1972 में फिर से श्याम चंद जीते लेकिन कांग्रेस की टिकट पर
  • 1977 में देवी लाल के नेतृत्व में जनता पार्टी के भाले राम जीते
  • 1982 में फिर भाले राम जीते लेकिन इस बार लोक दल से
  • 1987 में लोक दल के टिकट पर किरपा राम पूनिया जीते
  • 1991 में जनता पार्टी से रमेश कुमार खटक
  • 1996 में भी रमेश कुमार जीते लेकिन समता पार्टी के टिकट पर
  • 2000 में भी रमेश कुमार जीते लेकिन इनेलो के टिकट पर
  • 2005 में इनेलो के रामफल चिराना जीते
  • 2008 के परिसीमन में ये सीट अनारक्षित कर दी गई
  • 2009 में कांग्रेस के श्रीकृष्ण हुड्डा विधायक चुने गए
  • 2014 में भी कांग्रेस श्रीकृष्ण हु़ड्डा विधायक बने
  • 2019 में भी दिवंगत श्रीकृष्ण हुड्डा ने बीजेपी के पहलवान योगेश्वर दत्त को हराया

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2019 के चुनाव में पार्टियों का प्रदर्शन

2019 में बरोदा विधानसभा सीट पर कांग्रेस के श्रीकृष्ण हुड्डा लगातार तीसरी बार जीते थे. उन्हें 42,566(34.67%) वोट मिले थे. दूसरे नंबर बीजेपी के योगेश्वर दत्त थे जिन्हें 37,726(30.73%) वोट मिले थे. जेजेपी उम्मीदवार को 32,480(26.45) वोट मिले थे. जबकि इनेलो उम्मीदवार को मात्र 3145(2.56%) मतों से संतोष करना पड़ा था.

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