भिवानी: हरियाणा के कृषि एवं पशुपालन मंत्री जयप्रकाश दलाल ने कहा कि केंद्र सरकार ने किसानों के लिए अध्यादेश लाकर फसल को ओपन मार्केट में बेचने का विकल्प दिया है. इससे किसानों को अपनी फसल देश के किसी भी कोने में ट्रैक्टर-ट्रॉली, रेहड़ी लगाकर बेचने का मौका मिलेगा. उसे मंडी के भाव पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं रहेगी तथा किसान अपनी फसल के ओपन मार्केट में ऊंचे से ऊंचे दाम ले सकेंगा. ये बात कृषि मंत्री ने भिवानी में पत्रकारों से बातचीत करते हुए कही.
'न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू रहेगा'
कृषि मंत्री ने किसानों से अपील की है कि कुछ किसान संगठन विपक्षी दलों के बहकावे में आकर न्यूनतम समर्थन मूल्य नए अध्यादेश के माध्यम से खत्म किए जाने का भ्रम फैला रहे है, जो बिल्कुल गलत है. उन्होंने स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार द्वारा किसानों के लिए नया अध्यदेश आने के बाद भी न्यूनतम समर्थन न केवल लागू रहेगा, बल्कि समय-समय पर पहले की तर्ज पर बढ़ता भी रहेगा.
उन्होंने कहा कि नया अध्यादेश लाने का उद्देश्य किसानों को खुले मार्केट में अपने उत्पाद बेचने की इजाजत देना है. इससे किसान के हाथ खुल गए है तथा वो अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में भी हिस्सा लेने के योग्य हो गया है. उन्होंने कहा कि मंडियों को ओर भी मजबूत बनाया जाएगा. नई मंडियों की स्थापना भी की जाएगी.
कृषि अध्यादेशों का हो रहा है विरोध
गौरतलब है कि भारतीय किसान यूनियन से विभिन्न किसान संगठनों ने पंजाब, हरियाणा सहित उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों में पिछले दिनों प्रदर्शन करके केंद्र सरकार के नए अध्यादेश का विरोध किया था, जिसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म किए जाने की चर्चा थी. अब हरियाणा के कृषि मंत्री जयप्रकाश दलाल ने स्पष्ट कर दिया है कि नए अध्यादेश के बाद भी न तो फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म किया जाएगा तथा न ही नई मंडियों को बनाने की प्रक्रिया को रोका जाएगा.
इन अध्यादेशों के खिलाफ हो रहा है प्रदर्शन
- एसेंशियल एक्ट 1955 में बदलाव
- फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस
- फॉर्मर्स अग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विस ऑर्डिनेंस- कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग
1. एसेंशियल एक्ट 1955 में बदलाव
पहले व्यापारी फसलों को किसानों के औने-पौने दामों में खरीदकर उसका भंडारण कर लेते थे और कालाबाजारी करते थे, उसको रोकने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 बनाया गया था जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गयी थी. अब इस नए अध्यादेश के तहत आलू, प्याज, दलहन, तिलहन व तेल के भंडारण पर लगी रोक को हटा लिया गया है.
किसान और किसान संगठनों का मानना है कि सरकार की इस नीति से किसानों को नुकसान होगा. किसानों का कहना है कि हमारे देश में 85% लघु किसान हैं, किसानों के पास लंबे समय तक भंडारण की व्यवस्था नहीं होती है यानी यह अध्यादेश बड़ी कम्पनियों द्वारा कृषि उत्पादों की कालाबाजारी के लिए लाया गया है. कम्पनियां और सुपर मार्केट अपने बड़े-बड़े गोदामों में कृषि उत्पादों का भंडारण करेंगे और बाद में ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बेचेंगे.
2. फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस
कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) अध्यादेश किसानों को उनकी उपज देश में किसी भी व्यक्ति या संस्था (APMC सहित) को बेचने की इजाजत देता है. किसान अपना प्रोडक्ट खेत में या व्यापारिक प्लेटफॉर्म पर देश में कहीं भी बेच सकते हैं. वहीं इसको लेकर किसानों को सबसे बड़ा डर मंडी एक्ट के प्रभाव को सीमित करने वाले अध्यादेश कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) को लेकर है. इसके जरिए राज्यों के मंडी एक्ट को केवल मंडी परिसर तक ही सीमित कर दिया गया है. यानी अब कहीं पर भी फसलों की खरीद-बिक्री की जा सकेगी. बस फर्क इतना होगा कि मंडी में खरीद-बिक्री पर मंडी शुल्क लगेगा, जबकि बाहर शुल्क से छूट होगी.
3. फॉर्मर्स अग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विस ऑर्डिनेंस- कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग
सरकार प्रवक्ता का कहना है कि व्यावसायिक खेती के समझौते वक्त की जरूरत है. विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों के लिए, जो ऊंचे मूल्य की फसलें उगाना चाहते हैं, मगर पैदावार का जोखिम उठाते और घाटा सहते हैं. इस अध्यादेश से किसान अपना यह जोखिम कॉरपोरेट खरीदारों को सौंपकर फायदा कमा सकेंगे. वहीं किसानों कहा कहना है कि इसके जरिये कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को आगे बढ़ाया जाएगा. कंपनियां खेती करेंगी और किसान मजदूर बनकर रह जाएगा. उसकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं होगी. हाल में सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की गाइडलाइन जारी की है. इसमें कॉन्ट्रैक्ट की भाषा से लेकर कीमत तय करने का फॉर्मूला तक दिया गया है. लेकिन कहीं भी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य का कोई जिक्र नहीं है, जिस पर किसान नेता सवाल उठा रहे हैं.
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