नई दिल्ली : कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में तक राजनीति होती रही है. पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के दौर से आज तक कश्मीर मुद्दे पर UN में कई अहम कार्यवाहियां हुई हैं. संयुक्त राष्ट्र की आम सभा (UNGA) में भारत और पाकिस्तान फिर आमने-सामने होंगे.
दरअसल, 27 सितंबर को नरेन्द्र मोदी और इमरान खान का संबोधन होना है. ऐसे में ये जानना काफी अहम है कि क्या है पूरा मामला, जो एक जनवरी, 1948 से आज तक UN में अक्सर उठाया जाता रहा है. क्या है UN में कश्मीर मुद्दे का इतिहास. जानने के लिए देखें ईटीवी भारत की रिपोर्ट.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने कश्मीर पर 23 संकल्प पारित किए
- 1948 से 1971 के बीच संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 23 प्रस्ताव पारित किए. इनका उद्देश्य मध्यस्थता करना और कश्मीर संघर्ष का समाधान प्रदान करना था.
- एक जनवरी, 1948- भारत ने संयुक्त राष्ट्र के चैप्टर छह के तहत शिकायत दर्ज कराई
- एक जनवरी, 1948 को भारत ने संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अध्याय छह के तहत एक शिकायत दर्ज कराई. इसमें पाकिस्तान पर जम्मू और कश्मीर में कबायली आक्रमण का समर्थन करने का आरोप लगाया.
- भारत ने विलय की संधि की शर्तों के तहत जम्मू -कश्मीर पर अपना अधिकार जताया.
- भारत ने दावा किया कि जम्मू और कश्मीर की पूरी रियासत कानूनी रूप से उसके शासक महाराजा हरि सिंह द्वारा हस्ताक्षरित संधि की संधि के आधार पर थी.
पाक का आरोप, भारत ने कश्मीर को जबरदस्ती मिलाया.
- पाकिस्तान ने हालांकि हमलावरों का समर्थन करने से इनकार कर दिया, और बदले में भारत पर कश्मीर पर कब्जा करने का आरोप लगाया.
- 17 जनवरी, 1948- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने संकल्प 38 पारित कर संयम बरतने को कहा.
- 17 जनवरी, 1948 को यूएनएससी ने संकल्प 38 पारित किया, जो कश्मीर पर पहला था, भारत और पाकिस्तान को संयम बरतने का आह्वान किया.
- पड़ोसियों का कहना था कि मध्यस्थता करने के लिए संयुक्त राष्ट्र आयोग की नियुक्ति हो.
20 जनवरी 1948- संयुक्त राष्ट्र की तीन सदस्यीय आयोग नियुक्त.
- 20 जनवरी को, यूएनएससी ने भारत और पाकिस्तान के लिए तीन-सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र आयोग का गठन करते हुए प्रस्ताव 39 पारित किया, जो विवाद और मध्यस्थता की 'जांच' करने के लिए था.
- 21 अप्रैल, 1948- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने संकल्प 47 पारित किया.
- संकल्प 47: यूएनसीआईपी के सदस्य तीन से बढ़ाकर पांच कर दिए गए.
- संकल्प 47: पाक को अपने सैनिकों और कबायलियों को वापस लौटने को कहा गया.
- संकल्प 47: शरणार्थियों को लौटाना, राजनीतिक बंदियों की रिहाई.
- संकल्प 47: संयुक्त राष्ट्र द्वारा जम्मू-कश्मीर में संचालित सार्वजनिक उपक्रम.
- संकल्प 47: भारत ने कानून और व्यवस्था के सहयोग के लिए सैनिक भेजे.
ब्रिटेन और अमेरिका द्वारा नेतृत्व में, यूएनएससी ने 21 अप्रैल, 1948 को प्रस्ताव 47 पारित किया. जिसने यूएनसीआईपी की सदस्यता को 3 से 5 तक बढ़ा दिया, और भारत और पाकिस्तान के बीच शत्रुता को समाप्त करने, सभी पाकिस्तानी सैनिकों और जनजातियों को वापस लेने और शांति की अपील की. भारतीय सैनिकों, शरणार्थियों की वापसी, राजनीतिक कैदियों को रिहा करने और जम्मू-कश्मीर में संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में जनमत संग्रह की अनुमति. भारत को कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए कम से कम संख्या में सैनिकों को तैनात करने की अनुमति दी गई थी.
1949- संघर्ष विराम की घोषणा
- दोनों देशों ने संघर्ष विराम योजना को स्वीकार कर लिया और 1 जनवरी, 1949 से संयुक्त राष्ट्र को युद्ध विराम का पालन करने की अनुमति दी.
- पांच जनवरी, 1949- यूएन ने जम्मू कश्मीर में जनमतसंग्रह की बात कही.
- 5 जनवरी, 1949 को, पाकिस्तान की इस आशंका को दूर करने के लिए कि भारत जनमत संग्रह को प्रभावित करने की कोशिश कर सकता है, संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव दिया कि जम्मू-कश्मीर प्लीबसाइट प्रशासक के पूर्ण नियंत्रण में होना चाहिए.
- 1949- यूएनएससी प्रेसिडेंट मैक नॉघटन ने मध्यस्थता की असफल कोशिश की.
- दिसंबर 1949 में, यूएनएससी के अध्यक्ष जनरल एजीएल मैक नॉघटन ने भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने का असफल प्रयास किया.
- 1950: यूएन रिप्रेजेंटेटिव ओवन डिक्जॉन आए, यूएनसीआइपी खत्म
यूएनसीआइपी 1950 में संयुक्त राष्ट्र के एक प्रतिनिधि ओवेन डिक्सन द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था, जिन्होंने जल्द ही निष्कर्ष निकाला कि विसैन्यीकरण पर भारत-पाक समझौते के बारे में बहुत कम या कोई उम्मीद नहीं थी.
- डिक्जॉन ने कहा कि जनमत संग्रह सिर्फ घाटी के लिए हो या क्षेत्रीय स्तर पर ही.
- डिक्जॉन ने क्षेत्र के आधार पर या केवल 'संदिग्ध' क्षेत्र, कश्मीर घाटी में जनमत संग्रह का प्रस्ताव रखा.
- भारत और पाक दोनों ने डिक्जॉन के प्रस्ताव को खारिज कर दिया.
- भारत और पाकिस्तान डिक्जॉन के प्रस्तावों पर एक समझौते पर नहीं आ सके.
- फ्रैंक ग्राहम, गुनार जारिंग फ़ोलो ने भी कोशिश की, पर सफलता नहीं मिली.
- डिक्जॉन के बाद फ्रैंक ग्राहम आए. उसके बाद गुन्नार जारिंग आए. लेकिन उन्हें भी कोई सफलता नहीं मिली.
30 मार्च 1951- यूएनएमओजीआइपी ने युद्ध विराम की निगरानी के लिए बनाया गया.
- यूएनसीआईपी के शासनादेश के अनुसार, यूएनएससी ने 30 मार्च, 1951 को प्रस्ताव 91 पारित किया, जिसने संघर्ष विराम रेखा की निगरानी के लिए भारत और पाकिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह की स्थापना की, जिसे अब नियंत्रण रेखा कहा जाता है.
- यूएनएससी ने फिर एक और प्रस्ताव पारित किया, जिसने पहले के प्रस्तावों को दोहराया जो एक जनमत संग्रह के माध्यम से विवाद के अंतिम निपटान के लिए कहा गया.
1965 के युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र की भागीदारी कम हुई.
- हालांकि पाकिस्तान 60 के दशक में कश्मीर मुद्दे को उठाता रहा, लेकिन 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र की भागीदारी काफी कम हो गई.
- 29 सितंबर 1965- भारत-पाक के बीच युद्ध विराम की घोषणा.
- अमेरिका और सोवियत संघ द्वारा लागू किए गए गहन दबाव के बाद, भारत और पाकिस्तान 29 सितंबर, 1965 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रायोजित संघर्ष विराम का पालन करने के लिए सहमत हुए.
ताशकंद समझौते से यूएन की दूरी.
यूएन को युद्ध के बाद रूस द्वारा कश्मीर विवाद से वस्तुतः तब बाहर कर दिया गया, जब उसने दोनों पड़ोसियों के बीच ताशकंद शांति समझौते पर बातचीत की.
1971 के युद्ध की पृष्ठभूमि में फिर से संकल्प पारित.
कश्मीर से संबंधित प्रस्तावों में से अंतिम संघर्ष विराम की मांग की गई और यह 1971 के बांग्लादेश युद्ध की पृष्ठभूमि में आया, जिसके कारण अंततः शिमला समझौता हुआ.
शिमला समझौता के बाद से भारत इसे द्विपक्षीय मामला बताता रहा है.
पाकिस्तान अब भी यूएन संकल्प को उठाता रहता है.
जबसे भारत ने कहा है कि शिमला समझौता कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र के सभी पूर्व प्रस्तावों को खत्म कर देता है, क्योंकि इसका मतलब था कि विवाद द्विपक्षीय रूप से सुलझा लिया जाएगा. हालांकि, पाकिस्तान को लगा कि इस समझौते से संयुक्त राष्ट्र की भागीदारी से इंकार नहीं किया गया है.
बता दें कि बीते 24 सितंबर को एक अहम घटनाक्रम में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच अहम द्विपक्षीय बैठक हुई. इस दौरान पीएम मोदी ने ट्रंप को भारत का दोस्त करार दिया है.
बैठक के दौरान ट्रंप ने कहा कि मुझे लगता है कि बहुत जल्द हम भारत के साथ व्यापार समझौता करेंगे. पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद से निपटने के बारे में पूछे जाने पर ट्रंप ने कहा कि पीएम मोदी जानते हैं कि इससे कैसे निपटना है.
वहीं बातचीत करते हुए मोदी ने कहा कि भारत और अमेरिका दोनों ही देश तेजी से आगे बढ़ रहे है. उन्होंने ट्रंप से कहा कि हमारी दोस्ती और मजबूत होगी.
इसके साथ ही मोदी ने डोनाल्ड ट्रंप से आतंकवाद के खिलाफ साथ मिलकर लड़ने की भी बात कही. फिलहाल दोनों नेताओं के बीच ट्रेड डील पर बातचीत जारी है.
आपकी जानकारी के लिए बता दें, दोनों देशों के बीच सात बिलियन इकनॉमी की डील होने जा रही है.
पढ़ें: पीएम मोदी आज अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ द्विपक्षीय बैठक करेंगे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र के मौके पर डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की और उनके साथ द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा की.
वहीं कश्मीर मुद्दे पर बात करते हुए ट्रंप ने कहा कि मोदी और इमरान बातचीत कर इस मामले को हल कर सकते हैं. दो परमाणु-सशस्त्र पड़ोसी देशों के बीच किसी भी मध्यस्थता से खुद को दूर करते हुए ट्रंप ने ये बात कही.
एक सवाल के जवाब में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि मुझे भरोसा है कि जब प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री खान एक दूसरे से मुलाकात करेंगे, तब वह कश्मीर मुद्दे को लेकर कुछ बेहतर सोच सकेंगे.
उन्होंने आगे कहा कि मुझे लगता है कि इस तरह दोनों नेताओं की बैठक से कुछ अच्छे परिणाम जरूर निकलेंगे. ट्रंप ने कहा कि ये बहुत अच्छा होगा कि मोदी और इमरान कश्मीर मुद्दे पर साथ मिलकर कुछ काम करें.