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गिद्धों को बचाने के लिए नासिक में खोले गये स्पेशल 'गिद्ध रेस्टोरेंट' - VULTURE RESTAURANT

गिद्धों के संरक्षण के लिए नासिक में सराहनीय कदम उठाए गए. इनकी संख्या में तेजी कमी पर्यावरण के लिए खतरा है.

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नासिक में खोले गये स्पेशल 'गिद्ध रेस्टोरेंट' (ETV Bharat Maharashtra Desk)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 9, 2025, 10:21 AM IST

नासिक: विलुप्त होने के कगार पर पहुंचे गिद्धों के संरक्षण के लिए नासिक में विशेष गिद्धों के लिए रेस्टोरेंट खोला गया है. गिद्धों की संख्या में तेजी से हो रही गिरावट पर्यावरण के लिए खतरा बन रही है. इसलिए नासिक में वन विभाग ने गिद्धों के संरक्षण के लिए 'गिद्धों के लिए रेस्तरां' की स्थापना की है. जिले में गिद्धों के संरक्षण के लिए वाइल्ड लाइफ सोसायटी ने पहल की है. वन विभाग ने जिले में पांच स्थानों पर विशेष रेस्टोरेंट स्थापित किए हैं.

देश में गिद्धों की नौ प्रजातियां हैं

वहां मृत पशुओं का मांस गिद्धों को खिलाया जाता है. देश में गिद्धों की नौ प्रजातियां हैं, जिनमें से पांच प्रजातियां नासिक जिले में पाई जाती है. प्रणव भनोसे ने राय व्यक्त की है कि उनके संरक्षण के लिए एक सार्वजनिक आंदोलन महत्वपूर्ण है क्योंकि गिद्धों की संख्या दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है.

गिद्धों के बारे में जानकारी

वन विभाग के साथ ही वाइल्ड लाइफ सोसायटी ने भी गिद्धों के संरक्षण के लिए पहल की है, जो वन्यजीवों की खाद्य श्रृंखला की अहम कड़ी हैं. यह चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि गिद्धों की संख्या दिनोंदिन कम होती जा रही है.

ऐसे में अब वन विभाग ने जिले के बोरगद, अंजनेरी, हरसूल, पेठ में गिद्धों के संरक्षण के लिए विशेष स्थान बनाए हैं, जिन्हें रेस्टोरेंट कहा जाता है. सड़क हादसों में मरने वाले जानवरों को यहां फेंक दिया जाता है.

इन मृत जानवरों को गिद्ध 20 मिनट में खा जाते हैं. इनमें सड़े हुए मांस को पचाने की क्षमता होती है. साथ ही, इस रेस्टोरेंट में उनके लिए पानी और बैठने के लिए उपयुक्त जगह भी उपलब्ध कराई गई है. चूंकि गिद्धों का प्रजनन काल एक साल का होता है, इसलिए उनकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है. वर्तमान में नासिक जिले में करीब एक हजार गिद्ध हैं. इसलिए उन्हें सुरक्षित रखने के लिए प्रयास करने की जरूरत है, ऐसा वन्यजीव प्रेमी प्रणव भनोसे ने बताया.

मृत पशुओं को भोजनालय में ले जाया जाए

नासिक नगर निगम को प्राकृतिक मौत या सड़क दुर्घटना में मरने वाले पशुओं को उठाकर वन विभाग के गिद्ध भोजनालय में ले जाने की व्यवस्था करनी चाहिए. इसके लिए जल्द ही आयुक्त मनीषा खत्री को एक बयान सौंपा जाएगा, ऐसा यशवंतराव चव्हाण केंद्र के समन्वयक भूषण काले ने कहा.

'इन' कारणों से आई गिद्धों की संख्या में कमी

एक गिद्ध का जीवनकाल 50 से 60 साल होता है. हालांकि, किसान अक्सर मवेशियों को डाइकोफिनाक इंजेक्शन देते हैं. इस तरह के इंजेक्शन दिए जाने से मरे हुए जानवरों को खाने से गिद्धों में किडनी और लीवर की बीमारियां हो जाती हैं. इससे वे जल्दी मर जाते हैं. 1992 से 2002 के दस सालों में गिद्धों की संख्या में 96 प्रतिशत की कमी आई थी. कुछ वन्यजीव संगठनों की मांग पर सरकार ने इस इंजेक्शन पर प्रतिबंध लगा दिया था.

गिद्धों की कमी से कुत्तों की संख्या बढ़ी

प्रणव भनोसे ने बताया कि इस वजह से अब गिद्धों की संख्या बढ़ने में मदद मिल रही है. इसलिए कुत्तों की संख्या बढ़ी है. नासिक में बड़े पैमाने पर शहरीकरण हुआ है. इसकी वजह से कई ऊंचे पेड़ कट गए. इसकी वजह से गिद्धों को अब शहर में आश्रय नहीं मिल रहा है. शुरुआती दिनों में गिद्धों को शहर में आसानी से भोजन मिल जाता था. लेकिन वन्यजीव प्रेमियों का कहना है कि अब जब गिद्धों को भोजन नहीं मिल रहा है, तो गिद्धों जैसे मांसाहारी भोजन करने वाले कुत्तों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है.

ये भी पढ़ें- कभी 5 करोड़ से भी ज्यादा होती थी गिद्धों की आबादी, और अब इनकी घटती संख्या ने इंसानों को कर दिया परेशान

नासिक: विलुप्त होने के कगार पर पहुंचे गिद्धों के संरक्षण के लिए नासिक में विशेष गिद्धों के लिए रेस्टोरेंट खोला गया है. गिद्धों की संख्या में तेजी से हो रही गिरावट पर्यावरण के लिए खतरा बन रही है. इसलिए नासिक में वन विभाग ने गिद्धों के संरक्षण के लिए 'गिद्धों के लिए रेस्तरां' की स्थापना की है. जिले में गिद्धों के संरक्षण के लिए वाइल्ड लाइफ सोसायटी ने पहल की है. वन विभाग ने जिले में पांच स्थानों पर विशेष रेस्टोरेंट स्थापित किए हैं.

देश में गिद्धों की नौ प्रजातियां हैं

वहां मृत पशुओं का मांस गिद्धों को खिलाया जाता है. देश में गिद्धों की नौ प्रजातियां हैं, जिनमें से पांच प्रजातियां नासिक जिले में पाई जाती है. प्रणव भनोसे ने राय व्यक्त की है कि उनके संरक्षण के लिए एक सार्वजनिक आंदोलन महत्वपूर्ण है क्योंकि गिद्धों की संख्या दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है.

गिद्धों के बारे में जानकारी

वन विभाग के साथ ही वाइल्ड लाइफ सोसायटी ने भी गिद्धों के संरक्षण के लिए पहल की है, जो वन्यजीवों की खाद्य श्रृंखला की अहम कड़ी हैं. यह चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि गिद्धों की संख्या दिनोंदिन कम होती जा रही है.

ऐसे में अब वन विभाग ने जिले के बोरगद, अंजनेरी, हरसूल, पेठ में गिद्धों के संरक्षण के लिए विशेष स्थान बनाए हैं, जिन्हें रेस्टोरेंट कहा जाता है. सड़क हादसों में मरने वाले जानवरों को यहां फेंक दिया जाता है.

इन मृत जानवरों को गिद्ध 20 मिनट में खा जाते हैं. इनमें सड़े हुए मांस को पचाने की क्षमता होती है. साथ ही, इस रेस्टोरेंट में उनके लिए पानी और बैठने के लिए उपयुक्त जगह भी उपलब्ध कराई गई है. चूंकि गिद्धों का प्रजनन काल एक साल का होता है, इसलिए उनकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है. वर्तमान में नासिक जिले में करीब एक हजार गिद्ध हैं. इसलिए उन्हें सुरक्षित रखने के लिए प्रयास करने की जरूरत है, ऐसा वन्यजीव प्रेमी प्रणव भनोसे ने बताया.

मृत पशुओं को भोजनालय में ले जाया जाए

नासिक नगर निगम को प्राकृतिक मौत या सड़क दुर्घटना में मरने वाले पशुओं को उठाकर वन विभाग के गिद्ध भोजनालय में ले जाने की व्यवस्था करनी चाहिए. इसके लिए जल्द ही आयुक्त मनीषा खत्री को एक बयान सौंपा जाएगा, ऐसा यशवंतराव चव्हाण केंद्र के समन्वयक भूषण काले ने कहा.

'इन' कारणों से आई गिद्धों की संख्या में कमी

एक गिद्ध का जीवनकाल 50 से 60 साल होता है. हालांकि, किसान अक्सर मवेशियों को डाइकोफिनाक इंजेक्शन देते हैं. इस तरह के इंजेक्शन दिए जाने से मरे हुए जानवरों को खाने से गिद्धों में किडनी और लीवर की बीमारियां हो जाती हैं. इससे वे जल्दी मर जाते हैं. 1992 से 2002 के दस सालों में गिद्धों की संख्या में 96 प्रतिशत की कमी आई थी. कुछ वन्यजीव संगठनों की मांग पर सरकार ने इस इंजेक्शन पर प्रतिबंध लगा दिया था.

गिद्धों की कमी से कुत्तों की संख्या बढ़ी

प्रणव भनोसे ने बताया कि इस वजह से अब गिद्धों की संख्या बढ़ने में मदद मिल रही है. इसलिए कुत्तों की संख्या बढ़ी है. नासिक में बड़े पैमाने पर शहरीकरण हुआ है. इसकी वजह से कई ऊंचे पेड़ कट गए. इसकी वजह से गिद्धों को अब शहर में आश्रय नहीं मिल रहा है. शुरुआती दिनों में गिद्धों को शहर में आसानी से भोजन मिल जाता था. लेकिन वन्यजीव प्रेमियों का कहना है कि अब जब गिद्धों को भोजन नहीं मिल रहा है, तो गिद्धों जैसे मांसाहारी भोजन करने वाले कुत्तों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है.

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