आज की प्रेरणा

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जो व्यक्ति न तो प्रिय वस्तु को पाकर हर्षित होता है और न अप्रिय को पाकर विचलित होता है, जो स्थिर बुद्धि है, भगवद विद्या को जानने वाला है, वह पहले से ही ब्रह्म में स्थित रहता है. जो योगी परमात्मा को अभिन्न मानते हुए भक्तिपूर्वक सेवा करता है, वह हर प्रकार से परमात्मा में सदैव स्थित रहता है. जिसका मन उच्छृंखल है, उसके लिए आत्म-साक्षात्कार कठिन कार्य होता है किन्तु जिसका मन संयमित है और जो समुचित उपाय करता है, उसकी सफलता तय है. कल्याण-कार्यों में निरत योगी का न तो इस लोक में और न परलोक में ही विनाश होता है. भलाई करने वाले कभी बुरे से पराजित नहीं होते. वह व्यक्ति पूर्ण योगी है जो अपनी ही तरह समस्त प्राणियों के सुखों तथा दुखों में वास्तविक समानता का दर्शन करता है. जब योगी सच्ची निष्ठा से आगे प्रगति करने का प्रयास करता है, वह अनेकानेक जन्मों के अभ्यास के पश्चात सिद्धि-लाभ करके परम गन्तव्य को प्राप्त करता है. योगी तपस्वी से, ज्ञानी से तथा सकाम कर्मी से बढ़कर होता है. अतः मनुष्य को सभी प्रकार से योगी बनना चाहिए. सम्पूर्ण योगियों में भी जो श्रद्धावान भक्त परमात्मा में तल्लीन होकर मन से भजन करता है, वह सर्वश्रेष्ठ योगी है. असफल योगी पवित्रात्माओं के लोकों में वहां दीर्घकाल तक भोग करने के बाद शुद्ध आचरण वाले धनवानों के कुल में जन्म लेता है. कर्मयोग के बिना संन्यास सिद्ध होना कठिन है. मननशील कर्मयोगी शीघ्र ही ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है. निस्सन्देह चंचल मन को वश में करना अत्यंत कठिन है, किन्तु उपयुक्त अभ्यास तथा विरक्ति के द्वारा ऐसा संभव है.

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