नई दिल्ली: प्रख्यात इतिहासकार और पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित रोमिला थापर को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय प्रशासन ने सीवी जमा करने को कहा है. ताकि यह विचार किया जा सके कि क्या वह जेएनयू में एमेरिटा प्रोफेसर के रूप में जारी रहेंगी या नहीं.
जिसके बाद सीनियर फैकल्टी ने हैरानी जताई और कहा कि यह एक राजनीति से प्रेरित कदम है जो बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण है. उन्होंने कहा की एमेरिटस केवल एक पद का नाम ही नहीं बल्कि विश्वविद्यालय की सद्भावना से जुड़ा सम्मान भी है.
'प्रोफेसर की कार्य क्षमता का आकलन जरूरी'
जेएनयू प्रशासन ने अपने इस कदम को सही ठहराते हुए कहा कि 75 वर्ष की आयु पूरी कर लेने वाले प्रोफेसर के कार्य क्षमताओं का आंकलन जरूरी है.जेएनयू के रजिस्ट्रार प्रमोद कुमार ने पिछले महीने रोमिला थापर को पत्र लिखकर उनसे सीवी जमा करने को कहा था.
पत्र में लिखा था कि विश्वविद्यालय एक समिति का गठन करेगी जो थापर के कामों का आंकलन करेगी. जिसके बाद फैसला लिया जाएगा कि रोमिला प्रोफेसर एमेरिटा के तौर पर जारी रहेंगी या नहीं. आपको बता दें, रोमिला थापर केंद्र सरकार की नीतियों की घोर आलोचक रहीं हैं.
'राजनीति से प्रेरित कदम'
वहीं जेएनयू के सीनियर फैकल्टी ने इस पर हैरानी जताई है. क्योंकि एमेरिटा प्रोफेसरों को कभी भी सीवी जमा करने के लिए नहीं कहा जाता है. फैकल्टी का कहना है कि एक बार चुने जाने के बाद इस पद पर शैक्षिक जीवन अकादमिक पद जारी रहता है. उनका कहना है कि यह एक राजनीति से प्रेरित कदम है.
रोमिला थापर केन्द्र सरकार की नीतियों की आलोचक रहीं हैं यही कारण है कि सोची समझी रणनीति के तहत उनके साथ इस तरह का व्यवहार किया जा रहा है. जेएनयू फैकल्टी ने हैरानी जताते हुए कहा कि एक बार प्रोफेसर के पद पर चुने जाने के बाद शिक्षक आजीवन इस पद पर कार्यरत रहता है और उन्हें दोबारा कभी अपनी सीवी जमा नहीं करवानी होती.
जेएनयू प्रशासन ने बताया नीति संगत
वहीं जेएनयू प्रशासन ने अपने इस कदम पर सफाई देते हुए कहा कि इस तरह का कदम उठाना पूरी तरह नीति संगत है. उन्होंने कहा कि जो भी प्रोफेसर अपने 75 वर्ष पूरे कर लेते हैं उसके बाद उनकी कामों का आकलन करने के लिए यह पूरी प्रक्रिया रखी जाती है.
जेएनयू प्रशासन का कहना है कि जेएनयू की वेबसाइट पर मौजूद अध्यादेश 32 में इस प्रक्रिया को पूरी तरह से स्पष्ट रूप से बताया गया है जिसके अनुसार एक बार नियुक्ति होने के बाद चुनाव समिति एक नियुक्त अधिकारी के रूप में किसी भी प्रोफेसर के 75 वर्ष की आयु पूरी होने के बाद निरंतर उसकी समीक्षा करेगी.
वहीं जेएनयू प्रशासन का कहना है कि अन्य संभावित उम्मीदवारों के लिए रिक्त पद उपलब्ध हो सकें इसके लिए जरूरी है कि लंबे समय से कार्यरत प्रोफेसरों की वर्तमान स्थिति का आंकलन कर किसी भी निर्णय पर पहुंचा जाए. जेएनयू प्रशासन ने सफाई देते हुए कहा कि यह मामला किसी राजनीति से नहीं जुड़ा है बल्कि अध्यादेश 32 के अनुसार ही कार्य किया जा रहा है.