नई दिल्ली: पूरे भारत में जन्माष्टमी के धार्मिक पर्व की धूमधाम है. हर छोटे बड़े मंदिर में श्री कृष्ण जन्माष्टमी के लिए सजाया जा रहा है. मंदिरों में पूजा-अर्चना की जा रही है. इसी कड़ी में उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी गांव में बने प्राचीन खंडेश्वर शिव मंदिर के बारे में बताते हैं. जिसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है.
बुराड़ी गांव स्थित प्राचीन खांडेश्वर शिव मंदिर के इतिहास को जानने के लिए पांच हजार साल पीछे जाकर जानना होगा. यह मंदिर बड़ा ही पौराणिक है और इसकी मान्यता भी बहुत ज्यादा है.
5 हजार साल पुराना है बुराड़ी गांव का इतिहास
बताया जाता है कि महाभारत काल यानी करीब 5000 साल पहले दिल्ली के बुराड़ी गांव का नाम श्री मुरारी गांव हुआ करता था. बुराड़ी गांव में भगवान श्री कृष्ण से जुड़े इस इतिहास के बारे में जानने के लिए बुराड़ी गांव स्थित ऐतिहासिक खंडेश्वर नाथ शिव मंदिर में पहुंचे. प्राचीन काल मे यह जगह खंडेश्वर वन के नाम से प्रसिद्ध थी. महाभारत काल मे पांडवों के हिस्से खांडव वन आये थे तो पांडवों ने वनों को हटाकर रहने योग्य बनाया.
ऐसी मान्यता है कि उसी दौरान इन वनों में आग लगी थी और अग्नि देवता शांत होने का नाम नहीं ले रहे थे तो भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन ने मिलकर यहां एक शिवलिंग की स्थापना की थी. साथ ही यहां किदवंती है कि भगवान श्री कृष्ण ने यहां पर ब्रह्मा जी के सामने इसी शिव मंदिर में भगवान श्री कृष्ण ने अपनी 16000 शादियों में एक शादी भी की थी.
साथ ही भगवान श्री कृष्णा इस खंडेश्वर वन में अपनी गाय चराया करते थे और यमुना नदी के किनारे मुरारी घाट पर अपनी गायों को पानी पिलाया करते थे. बताया जाता है कि करीब सात दशक पहले इस प्राचीन खंडेश्वर शिव मंदिर में बारह साल का बालक आया और उसने यही पर रहना शुरू कर दिया. उस बालक का नाम नारायणदत्त देश पांडेय था जिन्होंने इसी मंदिर में रहकर उच्च शिक्षा ग्रहण की और आगे चलकर मंदिर के पुजारी बने.
1990 में फिर हुआ मंदिर का निर्माण
साल 1990 में एक बार मंदिर का जीर्णोद्धार कर पुनः स्थापित करने की शुरुआत हुई. जिस तरह इस प्राचीन मंदिर का जिक्र श्रीमदभागवत गीता, महाभारत और वेद पुराण में आया है. ठीक वैसे ही खुदाई के दौरान भगवान शिव से जुड़े कुछ अवशेष ओर पिंड मिले और उन्होंने फिर से यहां पर दोबारा शिव मंदिर स्थापित करने के लिए जो शिवलिंग भी मिला. शिवलिंग को ऊपर उठाने के लिए काफी खुदाई की गयी. लेकिन शिवलिंग की आखिर तक नहीं पहुंचा जा सका.
मंदिर के पुजारी ने करवाया था महायज्ञ
आखिरकार मंदिर के पुजारी श्री नारायणदत्त देशपांडे ने यहां 101 ब्राह्मणों द्वारा महायज्ञ कराया और किदवंती है कि शिवलिंग खुद ब खुद ही जरूरत के हिसाब से ऊपर उठने लगा और तब जाकर पुनः एक बार फिर भगवान शिव का मंदिर स्थापित हुआ. मंदिर का वहीं प्राचीन नाम भी श्री खंडेश्वर नाथ शिव मंदिर रखा गया. मंदिर की सेवा पुजारी श्री आचार्य खगेन्द्र कृष्ण जी कर रहे हैं.
इसी के पास एक और मंदिर स्थापित है जिसका नाम अनादेश्वर श्री शिव मंदिर शनि रखा. क्योंकि इस मंदिर के बारे में कोई भी नहीं जनता की इस मंदिर की स्थापना की युग में हुई और किसने की. लेकिन इस जगह का नाम जरूर श्रीमद्भागवत गीता और महाभारत काल में आया है.