नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने तलाक के मामले में फैसला सुनाते हुए टिप्पणी की है कि जब व्यभिचार के आरोपों की बात आती है, तो हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के तहत पत्नी के अधिकार को उसके पति के निजता के अधिकार पर हावी होना चाहिए. कोर्ट ने ये भी कहा है कि एक पीड़ित महिला को अपने पति के खिलाफ तलाक के मामले में व्यभिचार को साबित करने के लिए सबूत या दस्तावेज मांगने का पूरा अधिकार है.
जस्टिस रेखा पल्ली ने कहा है कि निजता का अधिकार संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकार है, लेकिन यह पूर्ण अधिकार नहीं है. इस मामले कोर्ट ने कहा कि पति ने अपने कथित व्यभिचार के संबंध में पारिवारिक अदालत द्वारा पारित किए गए दो आदेशों को चुनौती दी थी. पत्नी ने व्यभिचार और क्रूरता के आधार पर तलाक के लिए एक होटल में अपने पति की मौजूदगी के सबूत का हवाला देते हुए तलाक के लिए अर्जी दी थी, जहां वह कथित रूप से व्यभिचारी संबंध में शामिल था.
फैमिली कोर्ट ने होटल से सीसीटीवी फुटेज के संरक्षण और होटल के कमरे के रिकॉर्ड को तलब करने के लिए उसके आवेदन को स्वीकृति दी थी.
इन्हीं दो आदेशों को चुनौती देने के लिए पति ने हाईकोर्ट का रुख किया और उनके वकील ने व्यभिचार और क्रूरता के आरोपों के खिलाफ ये तर्क दिया कि उनका मुवक्किल केवल एक दोस्त से मिलने आया था, जो अपनी बेटी के साथ होटल में रह रहा था. इसके अलावा उन्होंने अपने बचाव में कहा कि परिवार अदालत के निर्देश पर पत्नी द्वारा मांगी गई निजी जानकारी का प्रकटीकरण उनके निजता के अधिकार और इसमें शामिल अन्य व्यक्तियों के अधिकारों का उल्लंघन करना है.
अदालत ने यह भी कहा कि दूसरी महिला, जिसके साथ पति कथित रूप से व्यभिचार में रह रहा था और उसके नाबालिग बच्चे के निजता के अधिकार के उल्लंघन का कोई सवाल ही नहीं था, क्योंकि पारिवारिक अदालत से केवल अपने पति से संबंधित रिकॉर्ड मांगे थे ना कि किसी अन्य व्यक्ति के. दिल्ली हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने माना है कि परिवार अदालत के समक्ष, साक्ष्य मांगने के पत्नी के अधिकार को पति के निजता के अधिकार पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए. अदालत ने पाया कि पत्नी केवल अपने कानूनी रूप से विवाहित पति के बारे में जानकारी मांग रही थी. जिसपर उसने एक होटल के कमरे में दूसरी महिला के साथ व्यभिचार का आरोप लगाया था.
अदालत ने स्वीकार किया कि एक पति के पास निजता का अधिकार हो सकता है, पत्नी की उचित आशंका है कि उसका पति व्यभिचार में लिप्त था अदालत को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता थी. परिवार न्यायालय अधिनियम की धारा 14 अदालत को सबूतों पर विचार करने की अनुमति देती है, जो हो सकता है भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत स्वीकार्य या प्रासंगिक नहीं है.
ये भी पढ़ें: दिल्ली: शाहजहांपुर से आये मजदूरों को ट्रक ने मारी टक्कर, तीन की मौत
अदालत ने कहा कि निजता पूर्ण अधिकार नहीं है और इसे पति और पत्नी के परस्पर विरोधी अधिकारों के बीच संतुलन बनाना चाहिए. इस मामले में चूंकि पत्नी की प्रार्थना हिंदू विवाह अधिनियम और पारिवारिक न्यायालय अधिनियम के तहत दिए गए विशिष्ट अधिकारों पर आधारित थी, इसलिए अदालत ने विवादित आदेशों में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं पाया और कहा कि पत्नी का अधिकार प्रबल होना चाहिए.
ये भी पढ़ें: ग्रेटर नोएडाः टोलकर्मियों के साथ मारपीट करने वाले तीन आरोपियों को पुलिस ने किया गिरफ्तार