नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि सच्चे प्यार पर पुलिस का पहरा नहीं हो सकता है चाहे प्रेमी और प्रेमिका में से कोई वयस्क होने वाला हो. जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा की बेंच ने आरिफ नामक आरोपी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त करते हुए ये टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि न्याय का तराजू हमेशा गणित की तरह नहीं होता है. कभी-कभी न्याय के तराजू के एक तरफ कानून होता है और दूसरी तरफ बच्चे और उनकी खुशी होती है.
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दरअसल आरिफ नामक युवक एक नाबालिग लड़की के साथ भाग गया था. दोनों ने एक ही धर्म होने के नाते मुस्लिम रीति रिवाज से शादी कर ली थी. लड़की के माता-पिता ने आरिफ के खिलाफ जनवरी 2015 में अपहरण और रेप का केस दर्ज कराया था. पुलिस ने आरिफ को जून 2015 में गिरफ्तार कर लिया. आरिफ को अप्रैल 2018 में जमानत मिली. आरिफ के रिहा होने के बाद पति-पत्नी एक साथ रह रहे थे.
जब लड़की बरामद की गई उस समय वह पांच महीने की गर्भवती थी. लड़की ने अपना गर्भपात कराने से इनकार कर दिया. लड़की ने कहा कि उसका गर्भ उसके वैवाहिक संबंध और पति के प्यार की वजह से है. बाद में लड़की को एक बच्ची पैदा हुई. सुनवाई के दौरान जब कोर्ट ने लड़की से पूछताछ की तो उसने बताया कि वह सहमति से आरिफ के नजदीक आई थी और उससे संबंध बने थे.
लड़की ने कहा कि घटना के समय वह 18 साल की थी. अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि आरिफ और लड़की की प्रेम कहानी में पुलिस ने दुर्भाग्यपूर्ण रूप से बाधा डाली और इस सवाल पर विवाद किया कि उसकी उम्र 18 साल से कम थी. कोर्ट ने कहा कि अगर एफआईआर को निरस्त नहीं किया जाता तो पैदा हुई बेटी पर इसका गलत असर पड़ेगा.
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