नई दिल्ली: 2 मार्च को देशभर से आदिवासी राजधानी में मार्च करेंगे. जी हां- सुप्रीम कोर्ट के 13 फरवरी के फैसले के बाद बड़ी संख्या में आदिवासी परिवार जिस जगह पर रह रहे थे, उस जमीन से बेदखल हो जाएंगे. इस मामले पर दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों में भी भारी गुस्सा है. पूरी जानकारी के लिए पढ़ें पूरी खबर...
शिक्षकों ने बताया कि 2 मार्च को देशभर के आदिवासी मंडी हाउस से संसद भवन तक विरोध मार्च कर रहे हैं. शिक्षकों की सबसे बड़ी मांग है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जिन परिवारों के ऊपर बेदखली का संकट मंडरा रहा है, केंद्र सरकार उन्हें जमीन पर मालिकाना हक दिलाने के लिए अध्यादेश लाए और बेदखली पर तुरंत रोक लगाए.
13 फरवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने 21 राज्यों की सरकारों को आदेश दिया है कि वन भूमि पर आदिवासियों और पारंपरिक वन निवासी समुदाय के जिन परिवारों के आवेदन निरस्त कर दिए गए हैं, उन्हें 12 जुलाई 2019 तक बेदखल किया जाए.
बता दें कि भारतीय संविधान की अनुसूची 5 और 6 अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के बारे में उपबंध करती है. वहीं अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 देश के विभिन्न हिस्सों में निवास कर रहे आदिवासियों आदिम समुदायों और वन में निवास करने वाले परंपरागत समुदायों के जमीन पर मालिकाना अधिकार और वनों पर अधिकार को स्वीकार करता है.
विश्वविद्यालय के शिक्षकों का कहना है कि कोर्ट का फैसला इस मुल्क के मूल निवासियों को जंगल से बेदखल करने की साजिश है. शिक्षकों का कहना है कि यह बेदखली आदिवासियों की जीवन जीने के मानव अधिकार का हनन है. सम्मान पूर्वक जीने के संवैधानिक अधिकार का हनन है. बेदखली आदिवासी क्षेत्र में असंतोष को जन्म देगी यह वन अधिकार अधिनियम का उल्लंघन है.
शिक्षकों की मांग है कि अनुसूचित जनजाति एवं परंपरागत वन निवासी अधिनियम 2006 को लागू किया जाए. शिक्षक चाहते हैं कि जिन परिवारों ने अभी तक जमीन पर मालिकाना हक का दावा नहीं किया है, सरकार उन्हें भी अनुसूचित जनजाति एवं परंपरागत वन निवासी अधिनियम 2006 के तहत मालिकाना अधिकार और वन अधिकार प्रदान करें.