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दिवाली 2020: इंतजार में है नुक्कड़ वाली दीयों की दुकान, घर लाएं देसी माटी का सामान

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Published : Oct 27, 2020, 2:19 PM IST

Updated : Oct 27, 2020, 7:38 PM IST

इस बार प्रजापति समाज (कुम्हार) को दिवाली से बहुत उम्मीदें हैं. कोरोना और लॉकडाउन की वजह से गरीब तबके ने बहुत परेशानी झेली है. अगर लोग इस दिवाली में मिट्टी के दीयों की खरीददारी करेंगे, तो ये कुम्हारों के लिए एक बड़ी मदद साबित हो सकती है.

delhi potters diwali 2020
उम्मीदों वाली दिवाली

नई दिल्ली: मिट्टी से खूबसूरत ढांचे बनाने वाले शिल्पकार भारतीय संस्कृति का वो हिस्सा हैं, जिन्हें आधुनिक दौर की चकाचौंध ने पीछे छोड़ दिया. इनकी कला समय के साथ और निखरी, लेकिन पहचान धूमिल होती गई. जबसे घरों में सजावट का जिम्मा चाइना बाजार पर पड़ा, तभी से प्रजापति समाज (कुम्हार) की रोजी-रोटी पर संकट के बादल छा गए. हालांकि इस बार दीपावली पर उन्हें दोहरा अवसर नजर आ रहा है. इसीलिए वो पूरे परिवार के साथ अपने परम्परागत काम में व्यस्त हो चुके हैं.

इस बार कुम्हारों की दिवाली को बनाएं खुशहाल

सालों बीत गए, बिक्री नाममात्र हुई, लेकिन शिल्पकारों ने अपनी कला के साथ समझौता नहीं किया. वो कहते हैं ना-

कला को पाने के लिए कला के सुपुर्द होना पड़ता है,

कला में भी सब्र और इंतज़ार का हाथ होता है.

शायद ये इंतजार अब खत्म होने को है. नवंबर में दिवाली है. इस बार कुम्हारों/शिल्पकारों को ज्यादा उम्मीद है कि उन्हें उनकी कला की सही कीमत मिलेगी. सोशल मीडिया पर भी कई कैंपेन चलाए जा रहे हैं, जहां लोगों से अपील की जा रही है कि इस बार दिवाली में मिट्टी के दीए जलाएं.

इस बार रेहड़ियों/नुक्कड़ की दुकानों के प्रति लोगों का झुकाव ज्यादा देखने को मिल रहा है. इसके कई कारण हो सकते हैं.

  • इस साल कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन किया गया. देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक नारा दिया- 'वोकल फॉर लोकल'. भारी शब्दों में देशवासियों से अपील की गई कि अपने देश में बनी वस्तुओं की ही खरीददारी करें.
  • इसी बीच जब गलवान घाटी में भारत-चीन विवाद हुआ, तो देश में जैसे क्रांति आ गई. चीन के सामान का खूब बहिष्कार किया गया. दुकानदारों ने तो अपनी दुकानों का सामान तक जला दिया. उम्मीद जताई जा रही है कि लोग इस बार त्योहार के समय भी स्वदेशी सामान अपनाएंगे.
  • इस बदलाव के पीछे प्रदूषण भी एक बड़ा कारण है. दिल्लीवासी प्रदूषण से निजात चाहते हैं. ऐसे में उनका झुकाव ईको-फ्रेंडली सामान की तरफ बढ़ा है. उम्मीद की जा रही है कि इस साल लोग मिट्टी के दीयों से दिवाली मनाएंगे. अगर साजो-सामान की बात करें, तो शिल्पकार मिट्टी से बेहद खूबसूरत चीजें बना रहे हैं. चाहे वो सजावट का सामान हो या फिर घर में इस्तेमाल होने वाली चीजें.

राष्ट्रपति अवॉर्ड से सम्मानित शिल्प गुरु हरकिशन ने लोगों से अपील की है कि वो इस बार मिट्टी से बने सामान की खरीददारी करें. उनका मानना है कि इससे देश का धन देश में ही रहेगा और कोरोना महामारी की वजह से मुसीबत झेल रहे कुम्हारों के लिए भी बहुत बड़ी मदद साबित होगा.

नई दिल्ली: मिट्टी से खूबसूरत ढांचे बनाने वाले शिल्पकार भारतीय संस्कृति का वो हिस्सा हैं, जिन्हें आधुनिक दौर की चकाचौंध ने पीछे छोड़ दिया. इनकी कला समय के साथ और निखरी, लेकिन पहचान धूमिल होती गई. जबसे घरों में सजावट का जिम्मा चाइना बाजार पर पड़ा, तभी से प्रजापति समाज (कुम्हार) की रोजी-रोटी पर संकट के बादल छा गए. हालांकि इस बार दीपावली पर उन्हें दोहरा अवसर नजर आ रहा है. इसीलिए वो पूरे परिवार के साथ अपने परम्परागत काम में व्यस्त हो चुके हैं.

इस बार कुम्हारों की दिवाली को बनाएं खुशहाल

सालों बीत गए, बिक्री नाममात्र हुई, लेकिन शिल्पकारों ने अपनी कला के साथ समझौता नहीं किया. वो कहते हैं ना-

कला को पाने के लिए कला के सुपुर्द होना पड़ता है,

कला में भी सब्र और इंतज़ार का हाथ होता है.

शायद ये इंतजार अब खत्म होने को है. नवंबर में दिवाली है. इस बार कुम्हारों/शिल्पकारों को ज्यादा उम्मीद है कि उन्हें उनकी कला की सही कीमत मिलेगी. सोशल मीडिया पर भी कई कैंपेन चलाए जा रहे हैं, जहां लोगों से अपील की जा रही है कि इस बार दिवाली में मिट्टी के दीए जलाएं.

इस बार रेहड़ियों/नुक्कड़ की दुकानों के प्रति लोगों का झुकाव ज्यादा देखने को मिल रहा है. इसके कई कारण हो सकते हैं.

  • इस साल कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन किया गया. देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक नारा दिया- 'वोकल फॉर लोकल'. भारी शब्दों में देशवासियों से अपील की गई कि अपने देश में बनी वस्तुओं की ही खरीददारी करें.
  • इसी बीच जब गलवान घाटी में भारत-चीन विवाद हुआ, तो देश में जैसे क्रांति आ गई. चीन के सामान का खूब बहिष्कार किया गया. दुकानदारों ने तो अपनी दुकानों का सामान तक जला दिया. उम्मीद जताई जा रही है कि लोग इस बार त्योहार के समय भी स्वदेशी सामान अपनाएंगे.
  • इस बदलाव के पीछे प्रदूषण भी एक बड़ा कारण है. दिल्लीवासी प्रदूषण से निजात चाहते हैं. ऐसे में उनका झुकाव ईको-फ्रेंडली सामान की तरफ बढ़ा है. उम्मीद की जा रही है कि इस साल लोग मिट्टी के दीयों से दिवाली मनाएंगे. अगर साजो-सामान की बात करें, तो शिल्पकार मिट्टी से बेहद खूबसूरत चीजें बना रहे हैं. चाहे वो सजावट का सामान हो या फिर घर में इस्तेमाल होने वाली चीजें.

राष्ट्रपति अवॉर्ड से सम्मानित शिल्प गुरु हरकिशन ने लोगों से अपील की है कि वो इस बार मिट्टी से बने सामान की खरीददारी करें. उनका मानना है कि इससे देश का धन देश में ही रहेगा और कोरोना महामारी की वजह से मुसीबत झेल रहे कुम्हारों के लिए भी बहुत बड़ी मदद साबित होगा.

Last Updated : Oct 27, 2020, 7:38 PM IST
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