नई दिल्ली: राजधानी में आयोजित इंडिया इंटरनेशनल ट्रेड फेयर में तंगलिया वीविंग को प्रदर्शित करने वाले व्यापारी भी आए हैं. इसमें कपड़ों की बुनाई के दौरान उसमें कढ़ाई नुमा लुक दी जाती है. वह अपनी साल भर की मेहनत को मेले प्रदर्शित करते हैं और मेला खत्म होने से पहले उनका सारा सामान बिक जाता है. गुजरात की सुरेंद्रनगर जिले से आए विनय कुमार मुकवाला ने बताया कि तंगलिया वीविंग की कला 700 पुरानी है.
पहले इसको एक विशेष सेफर्ड जनजाति के लोगों द्वारा पहना जाता था. बदलते फैशन के साथ उन्होंने इसको पहनना बंद कर दिया जिससे इस कपड़े की मांग कम हो गई. इसको अस्तित्व में बनाए रखने के लिए उन्होंने इसकी बिक्री ट्रेड फेयर में करनी शुरू की.
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विनय ने बताया कि पिछले 7 वर्षों से लगातार ट्रेड फेयर आ रहे हैं. अब ये कला पुनः जीवित हो रही है. उन्होंने बताया कि तंगलिया वीविंग से साड़ी, सूट, स्टॉल, कुर्ते आदि वस्त्र बनाए जाते हैं. इसमें जो डिजाइन की जाती है उसको देखकर यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि इसको वीविंग से तैयार किया गया है. इसमें कहीं भी जोड़ नहीं होता है.
दिल्ली वालों ने दिया खूब प्यार
विनय ने बताया कि ट्रेड फेयर में दिल्ली के ग्राहकों ने उन्हें जितना प्यार दिया है, किसी अन्य राज्य में वैसा देखने को नहीं मिला. साल भर की मेहनत को प्रगति मैदान में आयोजित ट्रेड फेयर में प्रदर्शित करते हैं. फेयर खत्म होने से पहले ही उनका सारा प्रोडक्ट बिक जाता है. विनय के पास दो तरह की साड़ियां हैं. जिस साड़ी में बॉर्डर है, उसकी कीमत 25 हजार रुपये है. वहीं जिस साड़ी में फुल वर्क है उसकी कीमत 35 हजार रुपये है.
इसके अलावा कुर्तियों की कीमत 25 सौ शुरू होती है जो उस पर की गई कारीगरी के अनुसार बढ़ती जाती है. विनय ने बताया कि दिल्ली वालों को उनका काम इतना पसंद है कि वे फोन पर अपने ऑर्डर बुक कराते हैं. अगर कोई डिजाइन देखना चाहता है तो वीडियो कॉल पर उसे नए डिजाइन दिखा दिए जाते हैं.
एक साड़ी को तैयार करने में लगता है डेढ़ महीने का समय
विनय ने बताया कि एक साड़ी को पूरी तरह से तैयार होने में डेढ़ महीने का समय लगता है. इसको दो कारीगर तैयार करते हैं. तंगलिया वीविंग बहुत बारीक काम है, इसलिए इसको ध्यानपूर्वक करना होता है.
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