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Pressure on Tihar: जेलों में बढ़ती भीड़ से बिगड़ रहा सामाजिक ताना-बाना

दिल्ली स्थित तिहाड़ जेल इन दिनों सुर्खियों में है. पिछले दिनों जेल के आंदर जाने के लिए कैदी लाइन में लगकर अपनी बारी का इंतजार करते दिखे. तिहाड़ में उसकी क्षमता के दोगुने से अधिक कैदी रह रहे हैं. जिसका असर समाजिक ताना-बाना पर भी पड़ रहा है. जेल में रहकर छोटे-मोटे अपराधी भी बड़े अपराधी बन रहे हैं.

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Published : Apr 12, 2023, 2:28 PM IST

नई दिल्ली: राजधानी की जेलों में कैदियों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है. हालत यह है कि राजधानी की जेलों में आज उसकी क्षमता के दोगुने से अधिक कैदी रह रहे हैं. ऐसे में जेल में बंद कैदियों को परेशानी हो रही है. वहीं इनके लिए शौचालय, सोने की जगह और खाना, पानी का इंतजाम करना भी जेल प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है. राजधानी में तीन जेल परिसर हैं, जिनमे कुल 16 जेल हैं. इन सभी जेलों में कुल 10026 कैदियों के रहने की क्षमता है, लेकिन इनमें 19,500 से अधिक कैदी रह रहे हैं. कोरोना लॉकडाउन के दौरान संक्रमण बढ़ने के खतरे को देखते हुए बड़ी संख्या में कैदियों को पैरोल और जमानत पर छोड़ा गया था. सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद उन कैदियों ने वापस आत्मसमर्पण करना शुरू किया, तो हालत और गंभीर हो गए हैं.

दिल्ली पुलिस के पूर्व उपायुक्त और एडवोकेट एलएन राव ने बताया कि जेल में दिन ब दिन बढ़ती कैदियों की संख्या से जेल प्रशासन की समस्याओं के साथ ही सामाजिक ताना-बाना भी प्रभावित होता है. सुधार की बजाय लंबे समय तक जेल में रहने के कारण छोटे-मोटे अपराधी भी बड़े अपराधियों के संपर्क में आ जाते हैं. लंबे समय में ऐसी संगति से वह भी बड़े अपराधी बनने लगते हैं. दिल्ली पुलिस की लंबी सेवा के दौरान उन्होंने ऐसे कई लोगों को देखा है जो छोटे अपराधों में जेल गए, लेकिन जब वह लंबे समय बाद बाहर आए तो बड़े अपराधियों की तरह व्यवहार करने लगे. दरअसल व्यक्ति जिस तरह के लोगों की संगति में रहता है उसका असर उसके जीवन पर जरूर पड़ता है.

ये भी पढ़ें : Prisoner in Tihar Jail: तिहाड़ के इतिहास में पहले नहीं आई ऐसी चुनौती

जेल में कैदियों की संख्या ज्यादा होती है, तो जेल प्रशासन के खर्च पर भी दबाव बढ़ता है. जेल में बहुत से ऐसे अपराधी भी होते हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती है. अदालत से जमानत मिल जाने के बाद भी उन्हें जेल में ही बंद रहना पड़ता है, क्योंकि उनके पास जमानत राशि तक नहीं होती है. वहीं कुछ अपराधी ऐसे भी होते हैं, जिन्हें जमानतदार नहीं मिलते हैं और उन्हें जमानत के बाद भी जेल में रहना पड़ता है. इस कारण जेल में कैदियों की संख्या लगातार बढ़ती जाती है, जिससे जेलों पर दबाव बढ़ता जाता है.

विचाराधीन कैदियों को राहत : एडवोकेट एलएन राव ने बताया कि जेलों में सबसे ज्यादा संख्या विचाराधीन कैदियों की होती है. अगर विचाराधीन कैदियों को थोड़ी राहत दी जाए और ट्रायल के दौरान उनको जमानत पर रखा जाए, तो जेलों में बढ़ते दबाव को कम किया जा सकता है. हत्या, दुष्कर्म, अपहरण और डकैती जैसी संगीन अपराध में बंद आरोपियों को भले ही जमानत न दी जाए, लेकिन हल्के अपराधों में बंद आरोपियों को जमानत आसानी से दे देनी चाहिए ताकि जेलों में अनावश्यक दबाव न पड़े.

नई दिल्ली: राजधानी की जेलों में कैदियों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है. हालत यह है कि राजधानी की जेलों में आज उसकी क्षमता के दोगुने से अधिक कैदी रह रहे हैं. ऐसे में जेल में बंद कैदियों को परेशानी हो रही है. वहीं इनके लिए शौचालय, सोने की जगह और खाना, पानी का इंतजाम करना भी जेल प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है. राजधानी में तीन जेल परिसर हैं, जिनमे कुल 16 जेल हैं. इन सभी जेलों में कुल 10026 कैदियों के रहने की क्षमता है, लेकिन इनमें 19,500 से अधिक कैदी रह रहे हैं. कोरोना लॉकडाउन के दौरान संक्रमण बढ़ने के खतरे को देखते हुए बड़ी संख्या में कैदियों को पैरोल और जमानत पर छोड़ा गया था. सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद उन कैदियों ने वापस आत्मसमर्पण करना शुरू किया, तो हालत और गंभीर हो गए हैं.

दिल्ली पुलिस के पूर्व उपायुक्त और एडवोकेट एलएन राव ने बताया कि जेल में दिन ब दिन बढ़ती कैदियों की संख्या से जेल प्रशासन की समस्याओं के साथ ही सामाजिक ताना-बाना भी प्रभावित होता है. सुधार की बजाय लंबे समय तक जेल में रहने के कारण छोटे-मोटे अपराधी भी बड़े अपराधियों के संपर्क में आ जाते हैं. लंबे समय में ऐसी संगति से वह भी बड़े अपराधी बनने लगते हैं. दिल्ली पुलिस की लंबी सेवा के दौरान उन्होंने ऐसे कई लोगों को देखा है जो छोटे अपराधों में जेल गए, लेकिन जब वह लंबे समय बाद बाहर आए तो बड़े अपराधियों की तरह व्यवहार करने लगे. दरअसल व्यक्ति जिस तरह के लोगों की संगति में रहता है उसका असर उसके जीवन पर जरूर पड़ता है.

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जेल में कैदियों की संख्या ज्यादा होती है, तो जेल प्रशासन के खर्च पर भी दबाव बढ़ता है. जेल में बहुत से ऐसे अपराधी भी होते हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती है. अदालत से जमानत मिल जाने के बाद भी उन्हें जेल में ही बंद रहना पड़ता है, क्योंकि उनके पास जमानत राशि तक नहीं होती है. वहीं कुछ अपराधी ऐसे भी होते हैं, जिन्हें जमानतदार नहीं मिलते हैं और उन्हें जमानत के बाद भी जेल में रहना पड़ता है. इस कारण जेल में कैदियों की संख्या लगातार बढ़ती जाती है, जिससे जेलों पर दबाव बढ़ता जाता है.

विचाराधीन कैदियों को राहत : एडवोकेट एलएन राव ने बताया कि जेलों में सबसे ज्यादा संख्या विचाराधीन कैदियों की होती है. अगर विचाराधीन कैदियों को थोड़ी राहत दी जाए और ट्रायल के दौरान उनको जमानत पर रखा जाए, तो जेलों में बढ़ते दबाव को कम किया जा सकता है. हत्या, दुष्कर्म, अपहरण और डकैती जैसी संगीन अपराध में बंद आरोपियों को भले ही जमानत न दी जाए, लेकिन हल्के अपराधों में बंद आरोपियों को जमानत आसानी से दे देनी चाहिए ताकि जेलों में अनावश्यक दबाव न पड़े.

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