नई दिल्लीः हाल ही में हमने देखा कि कैसे 'बाबा का ढाबा' को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से बड़ी पहचान मिली. उसके साथ ही बड़ी तादाद में लोग उनकी मदद के लिए भी पहुंचे. लेकिन हमारे बीच केवल एक बाबा का ढाबा नहीं है, बल्कि कई ऐसे बुजुर्ग लोग हैं जो अपने परिवार का पेट पालने के लिए उम्र को पीछे छोड़ते हुए सड़क पर काम करने को मजबूर हैं.
पिछले 30 सालों से लगा रहे गोलगप्पे की रेहड़ी
ऐसे ही एक बुजुर्ग बूढ़े बाबा से ईटीवी भारत ने बात की जो दिल्ली के लाजपत नगर स्थित सेंटर मार्केट के बाहर गोलगप्पे का ठेला लगाते हैं. पिछले करीब 30 सालों से वह उसी जगह पर गोलगप्पे चाट पापड़ी का ठेला लगाकर अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं. ईटीवी भारत को बुजुर्ग देवी दास ने बताया कि उनकी उम्र 60 साल है और घर में दो बेटियां हैं, और पत्नी है. कमाने के लिए कोई और शख्स नहीं है. इसीलिए वो गोलगप्पे की रेहड़ी लगाकर अपने परिवार का पेट पालते हैं.
कोरोना काल में लोग नहीं खाने आ रहे गोलगप्पे
बुजुर्ग देवी दास ने कहा कि दोपहर 1 बजे वह अपनी रेहड़ी लेकर सेंटर मार्किट आते हैं और रात के 9 बजे तक वह ग्राहकों का इंतजार करते हैं. लेकिन जहां कोरोना से पहले तक कुछ लोग आकर गोलगप्पे खाते थे, लेकिन अब तो एक या दो लोग ही आ रहे हैं. ऐसे में कोई 10 रुपये का खाकर चला जाता है या फिर 20 रुपये का. रोजाना 100-50 रुपये से ज्यादा की कमाई नहीं हो पाती. ऐसे में घर चलाना यहां तक की रोटी खाना तक मुश्किल हो रहा है.
कोरोना को लेकर बरत रहे सभी सावधानियां
देवी दास कहा कि कोरोना कोरोना वायरस से बचाव के लिए रेहड़ी पर उन्होंने सैनिटाइजर भी रखा हुआ है और मास्क, ग्लव्स आदि का इस्तेमाल भी कर रहे हैं, लेकिन लोग नहीं आ रहे. उन्होंने कहा कि यह सामान खरीद कर लाते हैं, ऐसे में कई बार सामान नहीं बिक पाता तो काफी नुकसान हो जाता है.
ईटीवी माध्यम के जरिए लगाई मदद की गुहार
बुजुर्ग देवी दास को लोग बूढ़े बाबा भी कहते हैं और वह लाजपत नगर मेट्रो स्टेशन से बाहर निकलकर सेंट्रल मार्केट की मुख्य सड़क के पास में अपनी गोलगप्पे की रेहड़ी पिछले करीब 30 सालों से लगा रहे हैं. उन्होंने ईटीवी भारत के माध्यम से इस कोरोना काल में लोगों से मदद की अपील की है. कहा कि लोग उनके पास गोलगप्पे खाने के लिए आए जिससे उनकी कुछ मदद हो सके. वह सभी सावधानियों के साथ गोलगप्पे बेच रहे हैं.